जीवन की जटिलताओं और चुनौतियों ने जिन मनोवैज्ञानिक समस्याओं को जन्म दिया है, डिप्रेशन भी उनमें से एक है। इसके बारे में ऐसी धारणा बनी हुई है कि यह केवल मन से जुड़ी समस्या है पर बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि हमारे शरीर के विभिन्न अंगों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि हमारे ब्रेन का एक खास हिस्सा, जो हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है, गहरी उदासी या डिप्रेशन की स्थिति में वह शिथिल पड़ जाता है। आइए जानते हैं, यह मनोवैज्ञानिक समस्या शरीर के किन हिस्सों को प्रभावित करती है।
कमजोर इम्यून सिस्टम
डिप्रेशन की स्थिति में तनाव बढ़ाने वाले हॉर्मोन कार्टिसोल का सिक्रीशन तेज़ी से होने लगता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के शरीर में मौज़ूद एंटीबॉडीज़ नष्ट होने लगते हैं, जिससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता तेज़ी से घटने लगती है। इसी वजह से डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों को सर्दी-ज़ुकाम, खांसी और बुखार जैसी समस्याएं बार-बार परेशान करती हैं।
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दिल पर असर
डिप्रेशन के चलते हमारे शरीर में नॉरपिनेफ्राइन (Norepinephrine) नामक हॉर्मोन का स्राव बढ़ जाता है, जिसके प्रभाव से व्यक्ति का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। ऐसे में दिल तेज़ी से धड़कने लगता है, हृदय की रक्वाहिका नलियां सिकुड़ जाती हैं, खून का प्रवाह तेज़ हो जाता है, जिससे दिल पर दबाव बढ़ता है, व्यक्ति को पसीना और चक्कर आने लगता है। लंबे समय तक डिप्रेशन में रहने वाले लोगों में हार्ट अटैक की भी आशंका बढ़ जाती है।
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पाचन तंत्र पर प्रभाव
आपने भी यह महसूस किया होगा कि जब हम किसी बात को लेकर बहुत ज्य़ादा चिंतित या उदास होते हैं तो हमारा पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं करता। दरअसल डिप्रेशन के दौरान सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम की सक्रियता के कारण आंतों में हाइड्रोक्लोरिक एसिड का सिक्रीशन बढ़ जाता है, जिससे पेट में दर्द और सूजन, सीने में जलन, कब्ज़ या लूज़ मोशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
सांस लेने में तकलीफ
डिप्रेशन की स्थिति में कभी तेज़ सांस चलती है तो कभी इसकी गति बहुत धीमी हो जाती है। ये दोनों ही स्थितियां सेहत के लिए ठीक नहीं हैं। डिप्रेशन में फेफड़े की नलियां सिकुड़ जाती हैं। इससे सांस लेने में कठिनाई और घबराहट महसूस होती है। अगर किसी को पहले से एस्थमा हो तो डिप्रेशन की स्थिति में उसकी यह तकलीफ और बढ़ जाती है।
लिवर पर असर
तनाव और चिंता की स्थिति में लिवर में ग्लूकोज का सिक्रीशन बढ़ जाता है। इसके अलावा कॉर्टिसोल हॉर्मोन शरीर में फैट की मात्रा और भूख भी बढ़ा देता है। इसी वजह से डिप्रेशन में कुछ लोग मोटे हो जाते हैं तो कुछ के शरीर में शुगर का लेवल बढ़ जाता है। अगर किसी को ज्य़ादा लंबे
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