4 साल तक मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकती है करीबी दोस्त की मौत, जानें कैसे

करीबी दोस्त की मृत्यु के कारण होनी वाली मानसिक क्षति पिछले अध्ययनों के मुकाबले चार गुना अधिक समय तक सहन करनी पड़ सकती है। करीबी दोस्त की मृत्यु कम से कम चार साल तक किसी व्यक्ति को शारीरिक, मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकती है।   
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 4 साल तक मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकती है करीबी दोस्त की मौत, जानें कैसे

एक करीबी दोस्त की मृत्यु के कारण होनी वाली मानसिक क्षति पिछले अध्ययनों के मुकाबले चार गुना अधिक समय तक सहन करनी पड़ सकती है। पीएलओएस वन नामक पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन से सामने आया है कि करीबी दोस्त की मृत्यु कम से कम चार साल तक किसी व्यक्ति को शारीरिक, मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा उसके सामाजिक कल्याण पर भी काफी असर पड़ता है।

पीएलओएस वन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से सामने आया है कि करीबी दोस्त की मृत्यु के कारण हुई मानसिक क्षति चार गुना अधिक समय तक सहन करनी पड़ सकती है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि वक्त का पता नहीं चल पाने की कमी के कारण लोगों को अपने करीबी दोस्त की मृत्यु के शोक से उबरने की प्रक्रिया के दौरान अपर्याप्त समर्थन नहीं मिला पाना भी इसका सबसे बड़ा कारण है।

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इस अध्ययन में 26,515 ऑस्ट्रेलियाई नागरिक शामिल थे, जिनमें से 9,586 ने कम से कम अपने एक करीबी दोस्त की मृत्यु का अनुभव किया था।

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) के एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन के लेखक वाइ-मैन (रेमंड) लियू का कहना है कि अध्ययन में पाया गया कि अपने करीबी दोस्त की मृत्यु से दुखी होने पर लोगों के शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्थिरता और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई।

उन्होंने कहा, ''हमने पाया कि पिछले चार वर्षों के दौरान जिस किसी व्यक्ति ने अपने करीबी दोस्त को खोने का अनुभव किया, उसके स्वास्थ्य और सुखद पलों में गंभीर गिरावट दर्ज की गई।''

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लियू ने कहा, ''हम सभी जानते हैं कि जब कोई भी व्यक्ति अपना करीबी साथी, माता-पिता या बच्चे को खोता है, तो उस व्यक्ति को एक वक्त तक दुख भोगना पड़ सकता है। इसी दौरान उसके शारीरिक स्वास्थ्य व मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आती है और उसके पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। हमें में से अधिकांश लोग, जो एक करीबी दोस्त की मृत्यु का अनुभव करते हैं उस समान स्तर की गंभीरता नियोक्ताओं, डॉक्टरों और समुदाय में नहीं देखी जाती है।''

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