बच्चों का इम्यूनिटी सिस्टम वयस्कों की तुलना में कमजोर होता है। यही कारण है कि वो किसी भी संक्रमण के सम्पर्क में जल्दी आ जाते हैं। प्रदूषण भी इनके फेफडों पर ज्यादा जल्दी असर करता है इसलिए बच्चे अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी के शिकार बन जाते हैं। ऐसे में माता-पिता बच्चों की साधारण खांसी को भी अस्थमा समझ बैठते हैं। पर ऐसा नहीं है। बच्चों में अस्थमा के लक्षण अलग होते हैं। क्या आप जानते हैं कि अगर आपके बच्चे का जन्म पतझड़ में हुआ है तो उसे बुखार, अस्थमा या खानपान से संबंधित एलर्जी हो सकती है?
बता दें कि हाल ही में एक शोध सामने आया है। ये शोध कोलोराडो की नेशनल ज्यूइश हेल्थ की शोधकर्ता डॉक्टर जेसिका द्वारा किया गया है। उन्होंने अपने शोध के बारे में बताया कि जो बच्चे हमारे क्लीनिक अपना इलाज कराने आते थे, हमने उन बच्चों पर अध्ययन किया और पाया कि जिन बच्चों का जन्म पतझड़ में हुआ है वे हर प्रकार की एलर्जी का शिकार हुए हैं। साथ ही उनमें अस्थमा के लक्षण भी देखे गए हैं। अभी अध्ययन पूरा नहीं हुआ है। ऐसा क्यों हो रहा है, इसका पता शोधकर्ताओं द्वारा लगाया जा रहा है। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों के साथ ऐसा होने के पीछे स्किन पर मौजूद बैक्टीरिया भी हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, पतझड़ में जो बच्चे पैदा होते हैं उनकी त्वचा बेहद कमजोर और हल्की होती है। यही कारण है कि वे जल्दी किसी एलर्जी की चपेट में आ जाते हैं।
ध्यान दें कि ब्रिटेन में 20 फीसदी से ज्यादा आबादी (बच्चों में) किसी न किसी एक एलर्जी विकार से जूझ रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि एलर्जी बचपन में ज्यादा अटैक करती है क्योंकि संबंधित रोगाणु सूखी त्वचा के जरिये आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। इसकी प्रक्रिया को एटॉपिक मार्च यानि एलर्जी की एक श्रृखंला की उत्पत्ति कहते हैं।
अब बात करते हैं अस्थमा और एलर्जी के आम लक्षणों की। बार-बार खांसी, सांस छोड़ते वक्त आवाज़ों का आना, सांस लेने में दिक्कत, सीने में चुभन या दर्द, सीने में बलगम जमा होना आदि अस्थमा के आम लक्षण हैं। इसके अलावा खांसी और घुटन के कारण नींद पूरी नहीं होना भी अस्थमा के लक्षणों का हिस्सा है। वहीं अगर बच्चों में एलर्जी के कारणों की बात करें तो बच्चे को जुकाम होना या नाक में खुजली होना आदि से एलर्जी हो सकती है।
किन बातों का रखें ख्याल
- अपने बच्चे को धूम्रपान करने वालों से दूर रखेँ। इसके अलावा श्वसन संक्रमण, धूल, मिट्टी, प्रदूषण और खास कर जानवरों को बच्चे के आसपास न आने दें।
- देश में उत्पन्न हुई परिस्थिति को देखते हुए बच्चे की दिनचर्या में हाथ धोने और सैनिटाजर अपने पास रखने की आदत को जोड़ें।
- भीड़ में अपने बच्चे को न जाने दें। साथ ही अपने बच्चे को किसी बीमार व्यक्ति के पास न जाने दें।
- अस्थमा में कीटनाशक का इस्तेमाल अटैक को ट्रिगर कर सकता है। ऐसे में सफाई के लिए कीटनाशक का प्रयोग न करें।
अस्थमा का प्रभाव काफी लंबे समय तक रहता है। अस्थमा की जड़ों को काटना संभव नहीं लेकिन थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो इसे रोका जरूर जा सकता है। देखा गया है कि करीब 50 फीसदी बच्चे जिन्हें अस्थमा है, उनमें किशोरावस्था तक आते आते अस्थमा के लक्षण कम दिखाई देने लगते हैं। ऐसे में माता-पिता को अपने बच्चे की उचित देखभाल करनी जरूरी है।
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