डेंगू और चिकनगुनिया का प्रकोप अब गांवों में भी

डेंगू और चिकनगुनिया का प्रकोप अब राष्ट्रीय राजधानी से निकलकर गांव तक में पहुंच गया है। इसलिए गांव के लोगों को विशेष तौर पर सावधान रहने की जरूरत है।
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डेंगू और चिकनगुनिया का प्रकोप अब गांवों में भी

क्या शहर, क्या गांव... क्या दिल्ली, क्या नरकटिया गंज... मच्छरों के लिए हर जगह, हर शहरी और हर क्षेत्र ग्रामीण बराबर हैं। जिस कारण डेंगू औऱ चिकनगुनिया का प्रकोप अब गांवों तक में पहुंच गया है। मच्छरों के लिए केवल शहरी क्षेत्र ही उनके प्रिय नहीं रहे और अब गांवों में भी डेंगू औऱ चिकनगुनिया के मामले मिल रहे हैं। ऐसे में अब ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि शहर में असपताल नजदीक में है लेकिन कई गांव में नजदीकी अस्पताल की सुविधा नहीं है। ऐसे में ग्रामीणवासी अपने आसपास गंदा पानी जमा ना होने दें।


पुणे की जिला परिषद् के स्वास्थ्य विभाग को डेंगू के 18 औऱ चिकनगुनिया के चार मामले मिले हैं। अब तक कुल 649 मामले जिले के ग्रामीण क्षेत्र से मिले हैं। कातेवाड़ी ( बारामती तालुका), बैगवान (इंदापुरा तालुका) और मांछर (अम्बेगांव तालुका) में सेकई डेंगु के मामले मिले हैं। सरकारी सवास्थ विभाग को डेंगू और चिकनगुनिया के 125 संदेहास्पद मामले मिले हैं। चिकनगुनिया के इन संदेहास्पद मामलों के मिलने के लिए डेंगू कार्यकर्ता इसके लिए गांव के लोकल ग्राम पंचायत को दोषी ठहरा रही है। 

नहीं मरते घर के घर के अंदर के मच्छर

आज देश में मच्छरों को नियंत्रित करना सबसे बड़ी समस्या बन गई है। अब इसके लिए प्रत्येक घर, स्कूल, कार्यालय, फैक्ट्री आदि निजी जगहों को खुद जिम्मेदारी उठानी होगी और ध्यान रखना होगा की उनके आसपास के क्षेत्र में कोई गंदगी का जमाव औऱ प्लास्टिक बैग्स व गंदे पानी का जमाव ना हो।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी के वैज्ञानिक का कहना है कि "गली-मोहल्लों व सार्वजनिक क्षेत्र में किए गए मच्छर नाशक दवाईयों का छिड़काव घर के अंदर के मच्छरों को नहीं मारते। तो लोगों को खुद ही मच्छरों से बचने की जिम्मेदारी उठानी होगी।"

 

डेंगू और चिकनगुनिया के बाद अब जापानी इंफेलाइटिस भी

डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया के बाद अब देश में एक और वायरस ‘जापानी इंफेलाइटिस’ भी तेजी से फैल रहा है। जापानी इंफेलाइटिस मस्तिष्क ज्वर का प्रमुख कारण होता है जो सीधे दिमाग में असर करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस बीमारी में 20 से 30 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है।

 

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