चेचक या चिकनपॉक्स त्वचा पर होने वाला एक रोग है। इस रोग में शरीर में पानी युक्त लाल दाने उभर आते हैं, जो संक्रामक होते हैं। गर्मियों और बरसात में इसके होने की ज्यादा संभावना होती है। आमतौर पर ये रोग खांसने, छींकने, छूने या रोगी के सीधे संपर्क में आने से फैलता है। इस बीमारी के दौरान पूरे शरीर पर दाग-धब्बे हो जाते हैं और तेज बुखार, सिरदर्द और ड्राई कफ की समस्या रहती है। अगर ये नियंत्रित न हो तो दिमाग और लिवर तक इसका असर पहुंच जाएगा। इसके बाद दूसरी बीमारियां आपको अपनी गिरफ्त में लेने लगती हैं।
कैसे फैलता है चेचक
चेचक या चिकनपॉक्स वेरीसेला जोस्टर नामक वायरस वायरस के कारण फैलता है। इस विषाणु के शिकार लोगों के पूरे शरीर में फुंसियों जैसी चक्तियां हो जाती हैं। याद रखें कि हवा और खांसी के माध्यम से संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के शरीर तक पहुंच जाता है। बच्चों को विशेष रूप से चिकन पॉक्स के रोगी से दूर रखें। चिकन पॉक्स के रोगी घर से कम से कम निकलें। इससे एक परिवार का संक्रमण दूसरे परिवार तक पहुंचने से रुकेगा। रोगी के पास खूब सफाई रखें, जिससे संक्रमण बढ़ने न पाए।
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क्या है चेचक के लक्षण
चिकन पॉक्स की शुरुआत से पहले पैरों और पीठ में पीड़ा और शरीर में हल्का बुखार, हल्की खांसी, भूख में कमी, सर में दर्द, थकावट, उल्टियां वगैरह जैसे लक्षण नज़र आते हैं, और 24 घंटों के अन्दर पेट या पीठ और चेहरे पर लाल खुजलीदार फुंसियां उभरने लगती हैं, जो बाद में पूरे शरीर में फैल जाती हैं जैसे कि खोपड़ी पर, मुहं में, नाक में, कानों और गुप्तांगो पर भी।
आरम्भ में तो यह फुंसियां दानों और किसी कीड़े के डंक की तरह लगती हैं, पर धीरे धीरे यह तरल पदार्थ युक्त पतली झिल्ली वाले फफोलों में परिवर्तित हो जाती हैं।
चिकन पॉक्स के फफोले एक इंच चौड़े हो सकते हैं और उनका तल लाल किस्म के रंग का होता है और 2 से 4 दिनों में पूरे शरीर में तेज़ी से फैल जाते हैं।
प्रेगनेंसी में चेचक है खतरनाक
गर्भावस्था के समय महिला को चिकन पॉक्स होने पर नवजात शिशु में संक्रमण का खतरा 70 प्रतिशत बढ़ जाता है। कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को भी यह वायरस आसानी से शिकार बना लेता है, इसलिए गर्भ ठहरने के 14 हफ्ते के बाद दी गई पावर बूस्टर डोज को वैरिसैला वायरस के बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
बच्चों में चेचक
चिकित्सक सलाह देते हैं कि चिकन पॉक्स के निवारण के लिये 12 से 15 महीनों की उम्र के बीच बच्चों को चिकन पॉक्स का टीका, और 4 से 6 वर्ष की उम्र के बीच बूस्टर टीका लगवा लेना चाहिये। यह टीका चिकन पॉक्स के हल्के संक्रमण को रोकने के लिये 70 से 80 प्रतिशत असरदार होता है और गंभीर रूप से संक्रमण को रोकने के लिये 95 प्रतिशत असरदार होता है। इसीलिए हालांकि कुछ बच्चों ने टीका लगवा लिया होता हैं फिर भी उनमे इस रोग से ग्रसित होने के लक्षण होते हैं, बनिबस्त उन बच्चों के जिन्होंने यह टीका नहीं लगवाया होता है।
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चेचक का इलाज
चेचक का कोई इलाज नहीं है। लेकिन परेशान करने वाले लक्षणों से छुटकारा पाने और खुजली वाली त्वचा को ठीक करने के लिए कुछ तरीके ज़रूर हैं। कई लोग जौ का आटा इस्तेामल करने का सुझाव देते हैं, या तो पेस्ट लगाकर या संभव हो तो इसमें नहाकर। नीम के पेड़ की डाल से मरीज़ को हल्के से हवा करना भी एक तरीका है। इस डाल की पत्तियां हल्के से मरीज़ के शरीर को छुआने से खुजली में राहत मिलती है। त्वचा को न रगड़कर और अपने नाखून छोटे रखकर भी आप त्वचा के संक्रमणों से बच सकते हैं।
बुखार का इलाज किया जा सकता है लेकिन एस्पिरिन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, खासकर बच्चों के मामले में क्योंकि यह गंभीर प्रतिक्रियात्मक स्थिति बना सकती है। चेचक के कारण आने वाले बुखार के सही इलाज के लिए अपने डॉक्टर की सलाह लें। इस रोग से ग्रस्त उन लोगों को कभी-कभी एंटिवायरल इलात भी दिया जाता है जिनमें किसी और गंभीर रोग के होने की आशंका हो। इस बारे में जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें। इस श्रेणी में वे लोग हैं जिन्हें पहले पहले चेचक नहीं हुआ, जिनका प्रतिरोधी तंत्र कमज़ोर है, जिनकी उम्र 12 साल से ज़्यादा है या जो गर्भवती हों। कुछ और लक्षणों के दिखने पर आप तुरंत अधिक चिकित्सकीय परामर्श लें जैसे अगर बुखार चार दिन से या 102 डिग्री फैरेनहाइट से ज़्यादा हो, पस के कारण दिखने वाले बैक्टीरियल संक्रमण, लगातार उल्टी, सांस में तकलीफ और अन्य किसी रोग के गंभीर संकेत।
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