भारत में सिजेरियन (सी-सेक्शन) ऑपरेशन के मामलों में वृद्धि के साथ-साथ अब इस्थमोसील का होना दुर्लभ घटना नहीं है। इस्थमोसील को सी-सेक्शन स्कार दोष के रूप में भी जाना जाता है। इसके बारे में पर्याप्त जागरूकता की कमी के कारण इससे जुड़ी जटिलताओं में लगातार इजाफा हो रहा है। सनराइज हॉस्पिटल में स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं लैप्रोस्कोपिस्ट्स डॉ. निकिता त्रेहन के अनुसार, “मेरे पास प्रत्येक महीने इस्थमोसील के लगभग दो-तीन मामले आते हैं। हाल ही में गर्भाशय इस्थमोसील से पीड़ित 34 वर्षीय महिला का इलाज किया गया है। जो अनियमित मासिकधर्म के बाद दर्द एवं रक्तस्राव संबंधित शिकायतों के साथ सामान्य स्वस्थ जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रही थी। ढाई साल पहले उनका सिजेरियन हुआ था और वह लगभग पिछले दो साल से इस हालत से पीड़ित थी।”
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उन्होंने कहा, “उनकी अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में सिजेरियन निशान के पास एक भरा हुआ तरल पाउच दिखाई दे रहा था। उसकी योनि में फायब्रॉइड भी था, वहीं उनका हिमोग्लोबीन स्तर भी छह के निचले स्तर पर आ गया था जिसके बाद वह हमने उनके गर्भाशय इस्थोमोसील के मामले में सफलतापूर्वक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की, उसके बाद रीना अब पूरी तरह ठीक हो गई है।”
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उन्होंने कहा, “हमने पिछले एक साल में लगभग 30 से ज्यादा इस्थमोसील के मामलों के इलाज किए हैं। इनमें ज्यादातर मामले उत्तर भारत से हैं। इस्थमोसील के मामलों में 15-20 प्रतिशत तक बढ़ोतरी की सूचना दर्ज की गई है, लेकिन मामले इससे और अधिक भी हो सकते हैं, क्योंकि सभी मामले डॉक्टरों के पास नहीं आ पाते, या फिर उनका इलाज नहीं हो पाता।” डॉ. निकिता ने कहा, “जब लैप्रोस्कोपिक के माध्यम से उपचार किया जा सकता है, तो ओपेन सर्जरी की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। लैप्रोस्कोपिक आज सुरक्षित हाथों में है। इस तकनीक की मदद से कई अत्यधिक कठिन मामलों का भी सफलतापूर्वक प्रबंधन किया जा सका है।”
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