Cervix Cancer: गर्भाशय के मुख पर होने वाले कैंसर से जुड़े 10 सवाल और उनके जवाब, जरूर जानें

गर्भाशय मुख पर होने वाले इस कैंसर को लेकर महिलाओं के मन में कई तरह के सवाल होते हैं, जिनके जवाब जानते हैं एक्सपर्ट के साथ।
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Cervix Cancer: गर्भाशय के मुख पर होने वाले कैंसर से जुड़े 10 सवाल और उनके जवाब, जरूर जानें

गर्भाशय ग्रीवा (Cervix Cancer/Cervical Cancer) गर्भाशय (गर्भ) का निचला हिस्सा है। प्रारंभिक अवस्था में पता चलने पर गर्भाशय ग्रीवा में उत्पन्न होने वाले कैंसर संभावित रूप से ठीक हो जाते हैं। इसलिए, जल्दी पता लगाना अस्तित्व को बेहतर बनाने की कुंजी है। गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के दो सबसे सामान्य प्रकार स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा और गर्भाशय ग्रीवा के एडेनोकार्सिनोमा हैं। 

 

सर्विक्स कैंसर के लक्षणों को कैसे पहचाना जा सकता है?

पीडि़त स्त्री को बिना पीरियड के भी ब्लीडिंग हो सकती है। कई बार सेक्स के बाद भी ऐसी समस्या होती है। गंभीर अवस्था होने पर वज़न में कमी आ सकती है, ज़्यादा या अनियमित ब्लीडिंग के कारण एनीमिया भी हो सकता है। 

क्या यह सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिज़ीज़ की श्रेणी में आता है?

वैसे तो इस बीमारी के लिए एचपीवी नामक वायरस को जि़म्मेदार माना जाता है पर वास्तव में यह सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज ही है। सेक्स के दौरान स्किन कॉन्टेक्ट होने कारण स्त्रियों में यह बीमारी फैल सकती है। अगर 30 वर्ष से कम आयु में किसी स्त्री के शरीर में यह वायरस आ जाए तो उस उम्र में शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता इतनी मज़बूत होती है कि इलाज की ज़रूरत नहीं पड़ती और यह वायरस अपने आप शरीर से बाहर निकल जाता है लेकिन उम्र बढऩे के बाद यह वायरस शरीर में ही बना रहता है, जो बाद में कैंसर का कारण बन सकता है।       

क्या आनुवंशिकता की वजह से भी सर्विक्स कैंसर हो सकता है?

नहीं, यह जेनेटिक कैंसर नहीं है।

किस उम्र की महिलाओं में सर्विक्स कैंसर की आशंका अधिक होती है?

दुर्भाग्यवश यह कैंसर युवावस्था में होता है। अगर किसी स्त्री के शरीर में 30 की उम्र में इसका वायरस आ जाए तो इसके तकरीबन 10 साल बाद उसमें कैंसर पनपने की आशंका रहती है। इस हिसाब से 40-45 वर्ष की आयु में इसकी आशंका अधिक होती है। 

क्या खानपान की गलत आदतों से भी यह समस्या हो सकती है?

अब तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि इसके लिए खानपान की आदतें जि़म्मेदार हैं। 

सर्विक्स कैंसर जांच कैसे की जाती है? उसकी प्रक्रिया जयादा तकलीफदेह तो नहीं होती?

सर्विक्स कैंसर की जांच के लिए पैपस्मीयर टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही वायरस के लिए स्क्रीनिंग की जाती है। इसमें कोई दर्द नहीं होता। स्त्री रोग विशेषज्ञ जांच करते समय सर्विक्स (बच्चेदानी के मुख) से पानी ले लेते हैं। इसमें दर्द की कोई आशंका नहीं होती। इसके अलावा एचपीवी जांच से यह मालूम किया जाता है कि किसी स्त्री को सर्विक्स कैंसर होने की आशंका तो नहीं है? रिपोर्ट पॉजि़टिव हो तो प्री-कैंसर की अवस्था में सही इलाज शुरू करके बीमारी को आगे बढऩे से रोका जा सकता है।

अगर शुरुआती अवस्था में उपचार शुरू किया जाए तो क्या इस बीमारी को दूर किया जा सकता है?

जी हां, अगर प्री-कैंसर स्टेज में ही इलाज शुरू कर दिया जाए तो मरीज़ को कैंसर से ही बचाया जा सकता है। इसके अलावा कैंसर की पहचान के बाद भी अगर जल्दी निदान हो जाए तो इसके बुरे परिणामों को कम किया जा सकता है और उपचार के बाद स्त्री स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकती है।

इसके उपचार के लिए क्या तरीका अपनाया जाता है?

अगर कैंसर होने के बाद शुरुआती अवस्था में इसका निदान हो तो यूट्रस निकाला जा सकता है या रेडियोथेरेपी भी दी जा सकती है। डॉक्टर, मरीज़ और उसके घरवाले आपसी बातचीत से यह तय करते हैं कि मरीज़ के लिए कौन सा इलाज सही रहेगा? शुरुआती अवस्था में ही अगर यूट्रस निकाल दिया जाए तो किसी और इलाज की जरूरत नहीं पड़ती। हालांकि, कई बार यूट्रस रिमूवल के बावजूद रेडियोथेरेपी की ज़रूरत पड़ सकती है।

क्या इससे बचाव के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध है?

हां, कई वर्षों से एचपीवी वैक्सीन बाज़ार में उपलब्ध है। अगर यह टीका कम उम्र में लगाया जाए तो यह अधिक प्रभावशाली होता है क्योंकि  युवावस्था में स्त्री का शरीर बीमारियों से लडऩे में जयादा सक्षम होता है। ऐसे में स्त्री को वैक्सीन देने से उसके शरीर में एंटीबॉडीज़ बन जाते हैं और कैंसर की आशंका 70 फीसदी तक कम हो जाती है। यह तक कि 10-11 साल की लड़कियों को भी यह वैक्सीन लगाई जा सकती है। फिर शादी के बाद जब वे सेक्सुअली एक्टिव होती हैं तो यह टीका इस समस्या से बचाव में मददगार साबित होता है। हालांकि यह 40-45 साल की स्त्रियों को भी लगाया जा सकता है लेकिन इसका पूरा फायदा लेने के लिए इसे कम उम्र में लगवाना बेहतर होगा।

पहले से ही किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि किसी को ऐसी समस्या न हो?

हर एक-दो साल के अंतराल में स्त्री रोग विशेषज्ञ से जांच करवाएं। अगर  समस्या की आशंका हो तो उसे शुरुआती दौर में ही नियंत्रित किया जा सकता है। 

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किसी स्त्री को यह बीमारी हो जाए तो उपचार के दौरान और उसके बाद किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? 

सबसे पहले डॉक्टर की सलाह से सही इलाज करवाएं। सेहत के मामले में ज़रा भी लापरवाही न बरतें। अन्यथा, मजऱ् बढऩे के बाद अच्छे इलाज के विकल्प कम होते जाएंगे। उपचार के दौरान संतुलित और पौष्टिक आहार, फल, मल्टीविटमिन आदि का सेवन करें और डॉक्टर के सभी निर्देशों का पूरी तरह पालन करें।

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