15 से 20 साल तक के बच्चों को कभी नहीं खाने चाहिए ये 2 फूड

इस उम्र में अगर बच्चों के खानपान में लापरवाही बरती गई तो उसका खामियाजा बच्चों को जिंदगी भर भुगतना पड़ता है। उम्र के इस दौर में शरीर में कई बदलाव आते हैं। ये बदलाव न केवल शारीरिक, बल्कि भावनात्मक एवं मानसिक भी होते हैं।
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15 से 20 साल तक के बच्चों को कभी नहीं खाने चाहिए ये 2 फूड


हर व्यक्ति के जीवन में किशोरावस्था सबसे महत्वपूर्ण होती है। जिस तरह पेरेंट्स इस उम्र में अपने बच्चों की संगत पर नजर गढ़ाए बैठे रहते हैं कि कहीं उनका बच्चा गलत संगत में तो नहीं जा रहा, ठीक उसी तरह इस उम्र में बच्चों की डाइट का भी इसी गंभीरता के साथ ख्याल रखना जरूरी है। इस उम्र में अगर बच्चों के खानपान में लापरवाही बरती गई तो उसका खामियाजा बच्चों को जिंदगी भर भुगतना पड़ता है। उम्र के इस दौर में शरीर में कई बदलाव आते हैं। ये बदलाव न केवल शारीरिक, बल्कि भावनात्मक एवं मानसिक भी होते हैं। इस लिहाज से यह जरूरी है कि आहार में पर्याप्त पोषक तत्व मौजूद हों। यहां दी गई कुछ बातों का ध्यान रखकर फिट और स्वस्थ रहा जा सकता है। आज हम आपको बता रहे हैं कि टीनेजर बच्चों को किस तरह की डाइट लेनी चाहिए।

ब्रेकफास्ट हो हैवी

दिन की शुरुआत अच्छे ब्रेकफस्ट से करना पोषण संबंधी समस्याओं को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है। जब जरूरी पोषक तत्व दिन की शुरुआत में ही शरीर को मिल जाएं तो चीजें सारे दिन सामान्य रह पाती हैं। ब्रेकफस्ट में भरवां रोटी या दलिया, ओट्स या कोई एक सीरियल होना जरूरी है। साथ ही 1 ग्लास बनाना, मैंगो या मिल्क शेक।

कैलोरी युक्त डाइट

कैंटीन या कैफेटेरिया में सप्ताह में दो बार से अधिक भोजन न करें। कैंटीन में आम तौर पर उपलब्ध चिप्स या समोसे के बजाय इडली, राजमा-चावल, कढी-चावल का चयन ज्यादा ठीक होगा। बेहतर होगा कि कोई एक फल खाएं। मसलन सेब, संतरा, अंगूर या केला। 15-20 वर्ष की आयु के बीच पर्याप्त कैलरी जरूरी डाइट से मिलती है। जरूरत से कम या जरूरत से ज्यादा भोजन, दोनों ही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। हालांकि आमतौर पर यह माना जाता है कि अल्प पोषण तब होता है, जब पर्याप्त भोजन नहीं मिलता, लेकिन हैरत की बात है कि अल्पपोषण तब भी होता है जब भोजन काफी मात्रा में लिया जाए।

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घर का खाना खाएं

घर से खाना ले जाना इस उम्र को गंवारा नहीं होता है। बच्चों की शिकायत होती है कि घर से खाना लाने पर उनके साथी उन्हें चिढ़ाते हैं। इस स्थिति में माता—पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चों के टिफिन/लंच पैक को अधिक आकर्षक बनाएं। जिससे बच्चे खुल के अपना लंच खा सके। भरवां पराठे आज ज्यादातर बच्चों को उबाऊ लगते हैं, लेकिन उसी परांठे को अगर काठी रोल स्टाइल में तैयार किया जाए तो हर कोई खाने को तैयार हो जाएगा।

पैकेट बंद फूड को कहें 'नो,

शोध से पता चला है कि फैटी धारियां जो रक्त वाहिकाओं में निर्मित होती हैं, उम्र के इस पड़ाव पर अपने आप विकसित होने लगती हैं। ऐसे में साल्टेड स्नैक्स, पैकेट बंद फूड से जहां तक हो सके, दूर रहना जरूरी है। ये न सिर्फ बीमारियों को निमंत्रण देते हैं बल्कि इनसे मोटापा और छोटी उम्र में ही बच्चे ओबेसिटी का शिकार होते हैं। एक शोध में साफ हुआ है कि जो महिलाएं अपनी टीनएज में हद से ज्यादा पैकेट बंद फूड का सेवन करती हैं तो उनके बच्चों में ओबेसिटी के शिकार होने के चांस बढ़ जाते हैं।

स्नेक्स भी हो हेल्दी

परांठे अलग-अलग अनाज के आटों को मिलाकर बनाए जा सकते हैं। परांठों में पैटी का मसाला, पनीर, स्प्राउट्स, काले चने या राजमा की स्टफिंग करके उन्हें अधिक पौष्टिक और लाजवाब बनाया जा सकता है। इसी तर्ज पर भुनी हुई शकरकंदी, मक्का या सिके हुए आलुओं से स्नैक्स तैयार किए जा सकते हैं।

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कैल्शियम और आयरन युक्त हो आहार

इस उम्र में कैल्शियम और आयरन की कमी आम बात है और भारत में तो यह समस्या काफी है। दूध की जगह अन्य पेय पदार्थ जैसे टैंग, सोडा या कोल्ड ड्रिंक के सेवन से आहार में कैल्शियम की कमी लाजिमी है। इस आयु में हड्डियों का विकास होता है। हड्डियों के विकास के लिए आहार में कम से कम 1200 मिग्रा कैल्शियम जरूरी है। इसलिए अपने साथ शेकर या कप क्लासेज में मिल्क शेक, जूस छाछ या लस्सी ले सकते हैं।

प्रोसेस्ड फूस है जरूरी

उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल का स्तर भारत में हाल ही में देखी गई दो समस्याएं हैं। रक्तचाप बढने का मुख्य कारण आहार में प्रोसेस्ड फूड का होना है। प्राकृतिक रूप से मिलने वाले पदार्थ में सोडियम का स्तर प्रोसेस्ड फूड की अपेक्षा 3 से 4 गुना अधिक होता है। किशोरों में बढे हुए कोलेस्ट्रॉल का कारण अधिक सैचुरेटेड और ट्रांस फैट वाले आहार के साथ-साथ कम शारीरिक गतिविधि करना है।

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