शोधकर्ताओं ने एक नई किस्म की खून जांच का पता लगाया है, जो यह बता सकता है कि कुछ रोगियों को दिल का दौरा पड़ने के बाद जान पर ज्यादा खतरा क्यों बना रहता है। शोधकर्ता ने कहा कि नोवल थैरेपी कोरोनरी सिंड्रोम वाले रोगियों में फाइब्रिन थक्का विश्लेषण इस रोग का सही निदान हो सकता है। यूके की शेफील्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रॉब स्टोरे ने कहा, 'हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि क्यों कुछ रोगियों को दिल का दौरा पड़ने के बाद अधिक खतरा होता है। हम आने वाले समय में नए उपचारों के साथ इसका निदान कैसे कर सकते हैं।'
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यूरोपियन हार्ट जरनल में प्रकाशित एक अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने तीव्र कोरोनरी सिंड्रोम के साथ 4,300 से ज्यादा अस्पताल से निकले मरीजों के रक्त प्लाज्मा नमूनों का विश्लेषण किया। उन्होंने थक्का के अधिकतम घनत्व को मापा और बताया कि थक्का बनने में लगे वाले समय को- क्लॉट लेसिस टाइम भी कहा जाता है।
अध्ययन में पाया गया कि सबसे लंबे समय तक थक्का रोग के रोगियों को हृदय रोग के कारण मायोकार्डियल इंफेक्शन या मृत्यु का 40 प्रतिशत ज्यादा जोखिम होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह शोध उन जोखिमों को कम करने के लिए नए लक्ष्य की पहचान करने में मदद कर सकता है और अधिक प्रभावी उपचार भी कर सकता है।
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