
ज्ञान मुद्रा में ध्यान का अभ्यास करने से एकाग्रता बढ़ती है जिससे व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति करता है | इसको करने की विधि और लाभ के बारे में विस्तार से जानने ने के लिए ये स्लाइडशो पढ़े।
ज्ञान मुद्रा किसी भी आसन या स्थिति में की जा सकती है| ध्यान के समय इसे पद्मासन में करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है| इसे आप दोनों हाथों से, चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते-जागते, गृहस्थी के कार्य करते समय या आराम के क्षणों में, जब चाहें किसी भी समय, किसी भी स्थिति में और कहीं भी कर सकते हैं|ज्ञान का ज्ञान या इशारे का इशारा, पीनियल ग्रंथि को सक्रिय करता है, दिमाग को आराम और एकाग्रता में सुधार करता है। यह आधुनिक विज्ञान के साथ संतों के ज्ञान को जोड़ती है और हमें स्वास्थ्य लाभ पहुंचाती है।
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- मुद्रा संपूर्ण योग का सार स्वरूप है। इसके माध्यम से कुंडलिनी या ऊर्जा के स्रोत को जाग्रत किया जा सकता है। इससे अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है।
- इसको करने के लिए हाथ की तर्जनी (अंगूठे के साथ वाली) अंगुली के अग्रभाग (सिरे) को अंगूठे के अग्रभाग के साथ मिलाकर रखने और हल्का-सा दबाव देने से ज्ञान मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में दबाना जरूरी नहीं है| बाकी उंगलियां सहज रूप से सीधी रखें। यह अत्यधिक महत्वपूर्ण अंगुली-मुद्रा है|
- ज्ञान मुद्रा विज्ञान में जब अँगुलियों का रोगानुसार आपसी स्पर्श करते हैं, तब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुन: जाग देती है और हमारा शरीर निरोग होने लगता है। तर्जनी अंगुली और अंगूठा जहां एक एक दूसरे को स्पर्श करते हैं, हल्का-सा नाड़ी स्पन्दन महसूस होता है।
- इसमें ध्यान लगाने से चित्त का भटकना बंद होकर मन एकाग्र हो जाता है| ज्ञान मुद्रा विद्यार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है| इससे स्मरण-शक्ति का विकास होता है और ज्ञान की वृद्धि होती है, पढ़ने में मन लगता है।
- इस मुद्रा के अभ्यास से आमाशयिक शक्ति बढ़ती है जिससे पाचन सम्बन्धी रोगों में लाभ मिलता है | इससे मस्तिष्क के स्नायु मजबूत होते हैं, सिरदर्द दूर होता है तथा अनिद्रा का नाश, स्वभाव में परिवर्तन, अध्यात्म-शक्ति का विकास और क्रोध का नाश होता है।
- इन मुद्राओं को प्रतिदिन तीस से पैंतालीस मिनट तक करने से पूर्ण लाभ होता है। एक बार में न कर सकें तो दो-तीन बार में भी किया जा सकता है। इस मुद्रा के लिए समय की कोई सीमा नहीं है। खान-पान शुद्ध रखना चाहिये, धुम्रपान का सेवन न करें। बहुत गरम और बहुत ठंडी चीजें ना खाएं।
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मन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। शरीर में कहीं भी यदि ऊर्जा में अवरोध उत्पन्न हो रहा है तो मुद्राओं से वह दूर हो जाता है और शरीर हल्का हो जाता है।
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