
वैशाख के महीने में मनाया जाने वाले पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती के नाम से जाना जाता है... मतलब की आज बुद्ध पूर्णिमा है।
कई लोगों ने परंपरा का पालन करते हुए आज व्रत रखा होगा। लेकिन इस दिन व्रत क्यों रखे जाते हैं और इसके क्या फायदे होते हैं, इस पर शायद ही कभी लोगों ने ध्यान दिया होगा।
बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए तो बुद्ध पूर्णिमा सबसे बड़ा त्यौहार होता है। इस दिन बौद्ध धर्मावलम्बी और व्रत धारी तिल के तेल का ही दीपक जलाते हैं। कई बार लोग बोधीवृक्ष (पीपल) पर भी तिल के तेल का दीपक जलाते हैं। इस दिन विशेष तौर पर तिल के तेल का ही दीपक जलाया जाता है।
लेकिन ऐसा क्यों? तो चलिए आज इस लेख में इस बात पर चर्चा करते हैं।
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बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
बौद्ध पूर्णिमा के लिए ये इन तीन कारणों से काफी महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है-
- महात्मा बुद्ध का इस दिन जन्म हुआ था।
- इसी दिन उन्हें ज्ञान की भी प्राप्ति हुई थी।
- और इसी दिन ही उनको निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।
मानसिक शांति के लिए जलाते हैं तिल के तेल का दीपक
इस दिन पाठ करने और दान देने का विशेष महत्व होता है। लेकिन सबसे अधिक महत्व इस दिन तिल के तेल का दीपक जलाने का होता है खासकर बोधीवृक्ष के समीप। अन्य त्यौहारों और पूर्णिमा के अवसर पर घी का या सरसों के तेल का दीपक जलाने का महत्व होता है। लेकिन इस दिन तिल के तेल का दीपक जलाया जाता है।
तिल की खुशबू मानसिक शांति देती है और इससे सिरदर्द भी गायब होता है और बुद्ध जी भी मानिसक शांति पाने पर विशेष जोर देते थे। इसलिए इस दिन विशेष तौर पर तिल के तेल का दीपक जलाने का विशेष प्रावधान है।
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इसलिए पीपल को माना जाता है बोधीवृक्ष
बैसले तो बोधि वृक्ष बिहार राज्य के गया जिले में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित एक पीपल का वृक्ष है। इसी वृक्ष के नीचे इसा पूर्व 531 में भगवान बुद्ध को बोध (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। लेकिन सामान्य तौर पर बुद्ध पूर्णिमा के दिन पीपल वृक्ष को ही बोधी वृक्ष मानकर इसकी पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में भी पीपल वृक्ष में औषधिय गुण होने के कारण इसे देवों का देव माना गाया है। इस साइंटिफिक रिज़न के कारण बुद्ध पूर्णिमा के दिन ये इस वृक्ष की पूजा करने की मान्यता है।
तो आज शाम स्नान कर तिल के तेल का दीपक जलाकर पीपल की पूजा करें और मानसिक शांति प्राप्त करें।
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