
लंबे समय तक पैरों के सहारे बैठने पर अक्सर पैरों में भारीपन, सुस्ती, झुनझुनाहट और अजीब सी पिन या सुई चुभने जैसा महसूस होने लगता है, यानी आपके पैर सो जाते हैं। क्या आप इसके असली कारण के बारे में जानते हैं, अगर नहीं तो यह आर्टिकल आप
पैर का सोना, हममें से लगभग सभी ने कभी न कभी जरूर अनुभव किया होगा। पैर का सोना बड़ा ही कष्टदायक होता है क्योंकि ऐसे में फिर आपका कहीं मन नहीं लगता। लेकिन क्या आप पैर के सोने के असली कारण के बारे में जानते हैं, अगर नहीं तो यह आर्टिकल आपके लिए मददगार हो सकता है।
पैर सोने के कारण
- कुछ लोगों का मानना है कि पैरेस्थेसिया में पैरों के सोने से उसमें भारी, सुस्त, झुनझुनाहट और अजीब सी पिन या सुई चुभने जैसा महसूस होता है- ऐसा पैरों में पर्याप्त रूप से ब्लड के न पहुंचने के कारण होता है। वास्तव में, आपके पैर तंत्रिकाओं (नर्वस) के कारण सोते हैं। नर्वस आपके शरीर में चलने वाले छोटे तारों की तरह होते है। नर्वस आगे ओर पीछे आपके ब्रेन और शरीर के कई हिस्सों के बीच संदेश ले जाने का काम करता है।
- अगर आप लंबे समय के लिए अपने पैर के सहारे बैठते हैं तो उस हिस्से की नर्वस पर दबाव पड़ता हैं। ऐसा शरीर के अन्य भागों में भी हो सकता है। लोग समय-समय पर पैर, हाथ और बाजू ऐसा अनुभव करते हैं। यानी शरीर का कोई अंग यदि किसी दबाव में ज्यादा समय तक रहता है, तो वह सुन्न हो जाता है। वस्तुतः यह दबाव हाथ या पैर की नर्वस पर पड़ता है।
- ये नर्वस कोशीय फाइबर से बनी होती है और प्रत्येक एक कोशीय फाइबर अलग-अलग संवेदनाओं को मस्तिष्क तक पहुंचाने का कार्य करता है। इन फाइबरों की मोटाई भी कम-ज्यादा होती है। इसका कारण माइलिन नामक श्वेत रंग के पदार्थ द्वारा बनाई गई झिल्ली है। इन पर दबाव पड़ने से ब्रेन तक नसों द्वारा पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन और रक्त का संचरण नहीं हो पाता है और ब्रेन तक उस अंग के बारे में पहुंचने वाली जानकारी रक्त और आक्सीजन के अभाव में अवरूद्ध हो जाती है। इस कारण वहां संवेदना महसूस नहीं हो पाती और वह अंग सो हो जाता है। जब उस अंग से दबाव हट जाता है तो रक्त और आक्सीजन का संचरण नियमित हो जाने से वह अंग पुनः संवेदनशील हो जाता है।
प्रत्येक व्यक्ति को समय-समय पर इन भावनाओं का अनुभव होता है, और ये पूरी तरह से सामान्य हैं। इससे आपके शरीर को चोट नहीं पहुंचती, लेकिन यकीनन कुछ समय के लिए आपको अजीब महसूस हो सकता है, जब तक कि आपका ब्रेन और शरीर दोबारा बातचीत शुरू नहीं कर देता।
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