
कहते हैं कि प्रोटीन के सेवन से लोग वजन पर काबू पा सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रोटीन अगर आपके खून में बढ़ता है, तो वह भी आपके लिए एक समस्या साबित हो सकती है। खून में प्रोटीन की अधिक मात्रा या हाइपरप्रोटीनेमिया कई बीमारियों को दावत दे सकत
कहते हैं कि प्रोटीन के सेवन से लोग वजन पर काबू पा सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रोटीन अगर आपके खून में बढ़ता है, तो वह भी आपके लिए एक समस्या साबित हो सकती है। खून में प्रोटीन की अधिक मात्रा या हाइपरप्रोटीनेमिया कई बीमारियों को दावत दे सकता है। ज्यादा फैट और शुगर वाला खाना खाने से शरीर में सूजन होने लगती है, जो सी-रिएक्टिव प्रोटीन के स्तर को बढ़ा देता है।
खाने में कुछ भी खा लेने से भी आपको कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। खाने के अलावा ब्लड में प्रोटीन की मात्रा बढ़ने से भी कई स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। जब व्यक्ति के खून में अधिक मात्रा में प्रोटीन जमा होने लगता है, तो डॉक्टर प्रोटीन के कारणों का पता लगाने के लिए मरीज को ब्लड टेस्ट कराने की सलाह देते हैं।
उसी ब्लड टेस्ट के आधार पर डॉक्टर मरीज में बोनमैरो के लक्षणों का पता लगाते हैं। खून में अधिक मात्रा में प्रोटीन के कारण होने वाली बीमारियों और उनके लक्षणों के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, ज़रा गौर करें...
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खून में प्रोटीन बढ़ने के लक्षण
खून में जब जरूरत से ज्यादा प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है, तो उसके कई लक्षण हो सकते हैं। जैसे भूख न लगना, ज्यादा थकान महसूस करना, पाचन समस्या जैसे दस्त अचानक से लगना और वजन घटना, लगातार बुखार रहना, खड़े होने या बैठने पर चक्कर आना, इसके अलावा हाथ और पैर की उंगलियों में झनझनाहट होना आदि। अगर आप में से किसी को इनमें से कोई भी लक्षण अपने शरीर में दिखाई देते हैं, तो तुरंत विशेषज्ञ की सलाह लें।
खून में प्रोटीन बढ़ने के नुकसान
खून में प्रोटीन की अधिक मात्रा लीवर खराब होने या लीवर संबंधी बीमारी की वजह बन सकती है। लीवर संबंधी बीमारी के शुरूआती दौर में लीवर में सूजन, कमजोर और बड़ा हो जाता है। लीवर में सूजन यह संकेत देता है कि हमारा शरीर किसी संक्रमण से लड़ने या घाव भरने की कोशिश कर रहा है। खराब लीवर ब्लड में दो मुख्य प्रोटीन (एएलटी - एलेनिन ट्रांसमिनेज और एएसटी - एस्पार्टेट ट्रांसमिनेज) को प्रवेश करा देते हैं। लीवर इन दोनों प्रोटीनों को उत्पन्न करता है जो आमतौर पर अमीनो एसिड को मेटाबोलाइज करने में सहायता करता है। हाई ट्राइग्लिसराइड्स, मोटापे, मधुमेह, सिरोसिस, हेपेटाइटिस, ऑटोइम्यून लीवर रोग और ड्रग्स या विषाक्त पदार्थों के कारण लीवर खराब होने से लीवर कोशिकाओं के भीतर वसा जमा होने से इन प्रोटीनों की मात्रा बढ़ सकती है।
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इसके अलावा जब व्यक्ति को चोट लगती है या इन्फ्लेमेशन होता है, तो इम्यून सिस्टम सी-रिएक्टिव नामक प्रोटीन पैदा करती है। यह प्रोटीन रोगाणुओं से लड़ने के लिए अन्य प्रोटीनों को भी सक्रिय करता है। सी -रिएक्टिव प्रोटीन उत्पन्न होने से रक्त में प्रोटीन का स्तर बढ़ने लगता है। सर्दी या फ्लू जैसे सामान्य संक्रमण और आर्थराइटिस जैसी समस्याएं इन्फ्लेमेशन के सामान्य लक्षण हैं जो प्रोटीन को बढ़ाते हैं। इन्फ्लेमेशन की वजह से कोशिकाएं डैमेज होती है। सैचुरेटेड फैट और कोलेस्ट्रॉल का अत्यधिक खपत धमनियों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे उसमें सूजन हो सकती है। यह सी-रिएक्टिव प्रोटीन उत्पन्न होने के कारण होता है।
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