रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) में स्थित इंटर वर्टिब्रल डिस्क (आई वी डी) पर ज्यादा दबाव पड़ने से कालांतर में डीजनरेटिव डिस्क डिजीज (थ्री डी) की समस्या उत्पन्न हो जाती है, लेकिन आर्टीफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट तकनीक के प्रचलन में आने से अब इस समस्या का स्थाई और सही इलाज उपलब्ध हो गया है। डॉक्टरों का मानना है कि अगर थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो आप इस समस्या से बच सकते हैं। इसके लिए यह जरूरी है कि आप नियमित तौर पर व्यायाम करें। अगर आप अपने ऑफिस में कुर्सी पर करीब आठ घंटे बैठते हैं तो यह सुनिश्चित करें कि सही तरीके से बैठे। बैठते समय सिर और पीठ सीधी रखें। आपके जूते सही नाप के होने चाहिए। ज्यादा टाइट जूते भी आपके स्पाइन के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
क्या है कारगर इलाज
क्या आपको मालूम है कि सीधे खड़े होने या झुकने की सभी स्थितियों को सुचारु रूप से संचालित करने में डिस्क का महत्वपूर्ण योगदान है। ऐसी डिस्क को इंटर वर्टिब्रल डिस्क (आईवीडी) कहते हैं। रीढ़ की हड्डी में स्थित ये इंटर वर्टिब्रल डिस्क हमारी गर्दन से लेकर कमर के निचले हिस्से के दाहिनी ओर तक जाती है।
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आईवीडी के प्रमुख कार्य
इंटर वर्टिब्रल डिस्क का प्रमुख कार्य कमर या रीढ़ पर पड़ने वाले भार को बर्दाश्त करना है। साथ ही चलने-फिरने पर विभिन्न झटकों को बर्दाश्त करना है। रीढ़ में लचीलेपन और गतिशीलता की स्थितियां आईवीडी पर निर्भर हैं। आईवीडी पर पड़ने वाले लगातार दबाव के कारण इसकी क्षीण व कमजोर होने की प्रक्रिया कहींज्यादा तेजी से होती है। शरीर के अन्य जोड़ों (ज्वाइंट्स) की तुलना में आईवीडी 15 से 20 साल पहले ही क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
आधुनिक इलाज
अभी तक डीजनरेटिव डिस्क डिजीज (थ्री डी) की समस्या से छुटकारा पाने के लिए फ्यूजन सर्जरी का सहारा लिया जाता है। इस सर्जरी से मरीज को आराम तो मिलता है, लेकिन यह थ्री डी समस्या का स्थाई और कारगर समाधान नहीं है। थ्री डी की समस्या का आधुनिक इलाज आर्टीफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट या डिस्क रिप्लेसमेंट आर्थोप्लास्टी है। इस सर्जिकल प्रक्रिया के अंतर्गत क्षतिग्रस्त इंटर वर्टिब्रल डिस्क को आर्टीफिशियल डिस्क के जरिए बदल दिया जाता है। इस आर्टीफिशियल डिस्क में एक बॉल और सॉकेट ज्वाइंट होता है, जिसमें बॉल सॉकेट के अंदर चक्कर लगाती है। यह बॉल 360 डिग्री तक मूवमेंट कर सकती है।
खूबियां आर्टीफिशियल डिस्क की
- आर्टिफिशियल डिस्क के लग जाने के बाद डीजनरेटिव डिस्क डिजीज से पीड़ित व्यक्ति आगे-पीछे झुक सकता है और उसके रीढ़ की हड्डी का लचीलापन व गतिशीलता रोग होने से पहले की तरह बढ़ जाती है।
- रीढ़ की हड्डी पर पड़ने वाले झटकों को बर्दाश्त करने की क्षमता बढ़ जाती है। सच तो यह है कि क्षतिग्रस्त आईवीडी का यह एक कारगर समाधान है।
- आर्टिफिशियल डिस्क जीवनभर काम करती है। इस डिस्क के प्रत्यारोपण के बाद मरीज 40 साल बाद भी सुचारु रूप से कार्य कर सकता है।
- डिस्क रिप्लेसमेंट में इंडोस्कोपी की मदद से एक छोटा चीरा लगाकर आर्टीफिशियल डिस्क प्रत्यारोपित की जाती है।
- डिस्क रिप्लेसमेंट सर्जरी में संक्रमण का खतरा भी कम होता है और जटिलताएं भी कम होती हैं।
- मरीज को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है।
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थ्री डी के लक्षण
- कमर में दर्द होेना और इसमें कड़ापन महसूस होना।
- कुछ लोगों में यह दर्द बांहों के निचले भाग से पैरों के निचले भाग तक होता है, जिसे सियाटिका के दर्द का एक प्रकार कह सकते हैं।
- हाथ और पैरों में सुन्नपन और भारीपन महसूस होना और इसके साथ ही जलन और फटन महसूस होना।
- बांहों में कमजोरी व वस्तुओं को पकड़ने में दिक्कत महसूस करना।
- लिखने और वजन उठाने में दिक्कत महसूस करना।
- रोग की गंभीर स्थिति के कुछ मामलों में बांहों और पैरों में लकवा लग सकता है।
- मरीज का नित्य क्रियाओं पर नियंत्रण खत्म हो जाता है।
रोग के कारण
ऑफिसों में डेस्क पर या कंप्यूटर के सामने बैठकर देर तक काम करना और भारी वजन उठाना ‘आई वी डी’ में आए विकारों (डिफेक्ट्स) का एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा व्यायाम का अभाव, अत्यधिक शराब पीना और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली डिस्क की समस्या बढ़ने के कुछ प्रमुख कारण हैं।
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