हर साल लगभग दो करोड़ से ज्यादा बच्चे समय से पूर्व जन्म लेते हैं या फिर जन्म के समय उनका वजन सामान्य से कम होता है। समय से पूर्व जन्मे बच्चों की मृत्यु दर भारत में विश्व में सबसे अधिक है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर घंटे लगभग 450 ऐसे बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
मरने वाले इन बच्चों में से अधिकतर को केवल उनके नाजुक शरीर को पर्याप्त उष्णता देकर बचाया जा सकता है। पर्याप्त उष्णता देने के लिए बेबी-वार्मर को 2009 में बेंगलुरु में विकसित किया गया। भारत में इसकी कीमत 3,000 डॉलर (1,80,000 रुपए) है। इस तरह के परंपरागत यंत्रों से यह करीब 70 प्रतिशत सस्ता है। इसमें बिजली की भी कम खपत होती है।
बीबीसीडॉटकॉम की खबर के मुताबिक बेंगलुरु के वाणीविलास अस्पताल स्थित नियो-नैटल आईसीयू में इस समय ढेरों ऐसे बच्चे हैं जिन्हें ग्रामीण इलाके में जन्म लेने के बाद इस अस्पताल में लाया गया। जीई हेल्थकेयर के रवि कौशिक कहते हैं, कि "बेबी-वार्मर विकसित करने के लिए भारत से बेहतर और कौन सी जगह होती, यहां हर सेकेंड एक बच्चे का जन्म होता है।"
मुकेश मानते हैं कि भारत इस तरह के यंत्रों के विकास के लिए आदर्श जगह है. भारत में 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है जबकि 30 प्रतिशत आबादी शहरी है।
वर्ष 2007 में स्टैनफोर्ड इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन के चार छात्रों जेन शेन, लाइनस लियांग, नागानंद मुर्ति और राहुल पानिक्कर को उनकी कक्षा में असाइनमेंट के रूप में सस्ते इनक्यूबेटर (बच्चों के शरीर का तापमान बनाए रखने वाला यंत्र) बनाने की चुनौती मिली। छात्रों के इस समूह ने हाईस्कूल की भौतिकी का प्रयोग करते हुए एक यंत्र बनाया जो कि देखने में स्लीपिंग बैग जैसा था। इस नए यंत्र से नवजात और समय पूर्व जन्म लेने वाले करीब 22,000 बच्चों की जान बचाई जा सकेगी।
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