शिशु के जन्म के बाद उन्हें तमाम तरह के इंफेक्शन और स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा होता है। इसका कारण ये है कि गर्भ से बाहर आने पर शिशु को बाहरी वातावरण के साथ एडजस्ट करने में समय लगता है। इसके अलावा नवजात शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होती है, जिसके कारण वे वायरस और बैक्टीरिया की चपेट में जल्दी आते हैं। बुखार एक सामान्य समस्या है, जो ज्यादातर नवजात शिशुओं को होती है। पहली बार बुखार आने पर मां-बाप कई बार घबरा जाते हैं। 6 महीने से छोटे शिशुओं में बुखार की समस्या कई बार गंभीर हो सकती है इसलिए बुखार के दौरान सही देखभाल जरूरी है। अगर शिशु को तेज बुखार आए, तो मां-बाप उठाएं ये जरूरी कदम।
शिशु का बुखार कैसे चेक करें?
आमतौर पर अस्वस्थ होने पर शिशु में कई तरह के बदलाव आते हैं, जैसे- दूध न पीना, रोना, चिड़चिड़ापन, सोने के समय जाग जाना आदि। इन समस्याओं के दिखने पर बुखार की आशंका होने पर हाथ से शिशु का माथा छूकर बुखार जानने की कोशिश करें। अगर आपको शिशु के माथे में गर्माहट महसूस होती है, तो थर्मामीटर से शिशु का बुखार चेक करना जरूरी है। शुरुआती सालों में बुखार शिशु की एक सामान्य समस्या है, इसलिए अपने घर पर अच्छी क्वालिटी का थर्मामीटर जरूर रखें।
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- शिशु का बुखार चेक करने से पहले थर्मामीटर को साफ करना जरूरी है। इसके लिए थर्मामीटर को साबुन के गुनगुने पानी के घोल में या एल्कोहल में डुबोएं और फिर रूई या साफ कपड़े से साफ करें।
- अब शिशु का बुखार जांचने के लिए शिशु के गुदा द्वार में आधा इंच तक थर्मामीटर डालें।
- इसके अलावा आप शिशु का बुखार उसके कांख यानी बगल में थर्मामीटर लगाकर भी चेक कर सकते हैं।
- थर्मामीटर को लगाने के बाद कम से कम 1 मिनट तक इंतजार करें या डिजिटल थर्मामीटर में बीप की आवाज आने तक इंतजार करें।
- अगर शिशु का तापमान 100.4 डिग्री फारेनहाइट या इससे ज्यादा है, तो शिशु को बिना देर किए डॉक्टर के पास ले जाएं।
शिशु को स्तनपान जरूर कराएं
शिशु के लिए मां के दूध से बढ़कर कोई दूसरी दवा नहीं है। इसलिए अस्वस्थ होने के कारण शिशु अगर रो भी रहा है, तो उसे दूध पिलाएं। 6 माह से छोटे शिशु के लिए मां का दूध ही उसका संपूर्ण आहार है। इसलिए शिशु को किसी भी स्थिति में दूध पिलाना नहीं छोडें। इससे शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और उसके शरीर को संक्रमण से लड़ने की ताकत मिलेगी।
घरेलू उपाय न करें ट्राई
कुछ घरों में महिलाएं और बुजुर्ग कुछ प्रचलित घरेलू नुस्खे अपनाते हैं, जिसे वो सही मानते हैं। मगर शिशुओं के मामले में आपके लिए लापरवाही बरतना खतरनाक हो सकता है। शुरुआती 3 महीने में शिशु को किसी भी तरह की दवा, घरेलू नुस्खे, सिरप, स्किन क्रीम, मलहम, लोशन आदि बिना डॉक्टर की सलाह के न लगाएं। दरअसल शिशुओं को बुखार आने के कई अलग-अलग कारण हो सकते हैं, जिन्हें डॉक्टर आसानी से समझ सकते हैं इसलिए उनसे सलाह लेना जरूरी है।
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सिर पर रखें गर्म पट्टियां
अगर अस्पताल घर से दूर है या डॉक्टर तक पहुंचने में समय लग रहा है, तो शिशु के सिर पर गुनगुने पानी में भीगी पट्टियां रखें। इससे बुखार शिशु के मस्तिष्क तक नहीं पहुंचेगा और खतरा भी कम होगा। जरूरी होने पर शिशु के मुंह, बाजू और पैरों पर भी गुनगुने पानी की पट्टियां रखें।
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