ग्राइप वाटर शिशुओं के लिए कितने सुरक्षित होते हैं? शिशु को ग्राइप वाटर देते समय बरतें ये 5 सावधानियां

ग्राइप वाटर का इस्तेमाल छोटे शिशुओं के पेट की समस्याओं, ज्यादा रोने, पेट में मरोड़, हिचकी आदि से राहत दिलाने के लिए किया जाता है। मगर क्या आपने यह जानने की कोशिश की है कि ग्राइप वाटर आपके शिशु के लिए कितने सुरक्षित होते हैं?
  • SHARE
  • FOLLOW
ग्राइप वाटर शिशुओं के लिए कितने सुरक्षित होते हैं? शिशु को ग्राइप वाटर देते समय बरतें ये 5 सावधानियां


शिशुओं के रोने की समस्या, पेट दर्द, दांत आने के समय दर्द, पेट के मरोड़, हिचकी आदि समस्याओं में अक्सर उन्हें ग्राइप वाटर पिलाने की सलाह दी जाती है। बाजार में बहुत सारे ब्राण्ड्स के ग्राइप वाटर उपलब्ध हैं। कुछ मां-बाप ग्राइप वाटर को शिशु की हर समस्या का जादुई इलाज मान लेते हैं, इसलिए बच्चे के रोने पर उसे चुप कराने के लिए ग्राइप वाटर दे देते हैं। आमतौर पर ग्राइप वाटर 1 साल से बड़े बच्चों को ही पिलाना चाहिए, मगर भारत में 6 महीने से भी छोटे बच्चों को भी लोग ग्राइप वाटर पिलाना शुरू कर देते हैं। मगर क्या आपने कभी जानने की कोशिश की है कि सचमुच ग्राइप वाटर्स आपके शिशु के लिए फायदेमंद होते हैं या नहीं? और शिशु को ग्राइप वाटर पिलाना कितना सुरक्षित है?

क्या सचमुच ग्राइप वाटर से शिशु को आराम मिलता है?

अब तक ऐसी कोई भी वैज्ञानिक रिसर्च सामने नहीं आई है कि ग्राइप वाटर शिशु की समस्याओं में उन्हें आराम दिलाता है। ग्राइप वाटर का इस्तेमाल ज्यादातर ऐसे मौकों पर किया जाता है, जब रोते हुए बच्चे को चुप कराना होता है। मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि रिसर्च में ऐसे प्रमाण मिले हैं कि कुछ ग्राइप वाटर में नशीले पदार्थों का प्रयोग किया जाता है, जिसके प्रभाव से, बच्चे रोना छोड़कर सो जाते हैं या चुप हो जाते हैं।

इसे भी पढ़ें:- घर में आया है नन्हा शिशु, तो पहले ही खरीद लें ये 10 जरूरी बेबी केयर प्रोडक्ट्स

ग्राइप वाटर शिशुओं के लिए कितने सुरक्षित?

ऐसे बहुत से ब्राण्ड्स हैं, जो ग्राइप वाटर बनाने में एल्कोहल का इस्तेमाल करते हैं। एल्कोहल के प्रभाव से शिशु को दर्द महसूस होने बंद हो जाता है या वो रोते-रोते सो जाते हैं। इससे मां-बाप को लगता है कि ग्राइप वाटर ने शिशु का दर्द खत्म कर दिया। कुछ ब्राण्ड्स ऐसे भी हैं, जो यह दावा करते हैं कि उनका ग्राइप वाटर एल्कोहल फ्री है। मगर शोध बताते हैं कि एल्कोहल फ्री ग्राइप वाटर भी शिशुओं के लिए सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे ग्राइप वाटर में सोडियम बाई कार्बोनेट की मात्रा ज्यादा होने के कारण शिशुओं को एल्केलॉसिस होने का खतरा होता है। आपको बता दें कि शिशुओं के अंग शुरुआत में अविकसित होते हैं, जिनका विकास धीरे-धीरे होता है। इसलिए इस उम्र में एल्कोहल की थोड़ी सी मात्रा भी उनके लिए खतरनाक हो सकती है।

कैसे बनाए जाते हैं ग्राइप वाटर्स?

आमतौर पर इन ग्राइप वाटर्स में कई तरह के प्राकृतिक तत्व मिलाए जाते हैं, जिनसे छोटे शिशुओं की तमाम समस्याएं ठीक हो जाती हैं। आमतौर पर ग्राइप वाटर में सोडियम बाईकार्बोनेट, इलायची, अदरक, मुलेठी, लौंग आदि हर्ब्स का रस मिलाया जाता है। मगर क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि ये ग्राइप वाटर शिशुओं के लिए कितने सुरक्षित होते हैं?

इसे भी पढ़ें:- रोते हुए शिशुओं में दिखने वाले ये 5 लक्षण हो सकते हैं सांस की बीमारी के संकेत

शिशुओं को ग्राइप वाटर देने से पहले ध्यान रखें ये बातें

  • 1 साल से कम उम्र के शिशु को ग्राइप वाटर न मिलाएं। ये उनके लिए सुरक्षित नहीं होते हैं। 6 माह की उम्र तक शिशु के लिए सिर्फ मां का दूध ही उसका आहार और दवाएं, सबकुछ है।
  • हमेशा डॉक्टर से सलाह लेकर ही शिशु को ग्राइप वाटर पिलाएं
  • ग्राइप वाटर खरीदने से पहले उसके इंग्रीडिएंट्स पढ़ लें। अगर उसमें एल्कोहल है या सोडियम बाई कार्बोनेट की मात्रा बहुत ज्यादा है, तो आपको इसे नहीं लेना चाहिए।
  • शिशु को हर छोटी-छोटी बात पर ग्राइप वाटर नहीं पिलाना चाहिए। रोते शिशु को चुप कराने के लिए अन्य उपाय अपनाएं।
  • शिशु को दूध पिलाने से पहले ग्राइप वाटर न पिलाएं। उनका पेट छोटा होता है, इसलिए ग्राइप वाटर से पेट भर जाने पर वो दूध नहीं पिएंगे या खाना नहीं खाएंगे।

Read more articles on Newborn Care in Hindi

Read Next

शिशुओं के बेहतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है योग का अभ्यास

Disclaimer

How we keep this article up to date:

We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.

  • Current Version