
आयुर्वेद के अनुसार वर्षा ऋतु में 'शरीर की अग्नि' मंद हो जाती है। वात दोष की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इस कारण पाचन संस्थान (हाजमा) पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इस मौसम में जल प्रदूषण के कारण भी बीमारियां तेजी से फैलती हैं। बरसात में संग्रहित दूषित जल में उपस्थित जीवाणु विभिन्न रोगों के संक्रमण को तेजी से फैलाते हैं।
बरसात के मौसम में आर्द्रता के स्तर आमतौर पर अधिक होते हैं क्योंकि शरीर की पाचन क्षमता कम हो जाती है। इसलिए, भारी और तेल खाने से बचें क्योंकि यह परेशान पेट का कारण बन सकता है। बाहर बिकने वाले खाद्य पदार्थ बेहद अस्पष्ट और सेवन के लिए हानिकारक है क्योंकि कोई भी इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री पर नियंत्रण नहीं रख सकता है। आप घर में स्वस्थ्य तरीके से पकवान बनाकर खा सकते हैं लेकिन अत्यधिक सेवन करने से बचें।
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इन सुझावों पर करें अमल
- हल्का सुपाच्य व ताजा गर्म भोजन करें।
- स्वच्छ जल (उबाल कर ठंडा कर) का प्रयोग आवश्यक है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अस्वच्छ जल के कारण ही जलजनित बीमारियां उत्पन्न होती हैं।
- दही और छाछ का प्रयोग सेंधा नमक के साथ करें।
- सब्जियों का सूप शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
- छिलके वाली दाल, मूंग की दाल और अंकुरित आहार प्रोटीन की कमी को दूर करता है।
- लौकी, तोरई, टमाटर, खीरा आदि को अपने खानपान में वरीयता दें।
- सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, दालचीनी और तेज पत्ता त्वचा के संक्रमण में और सर्दी जुकाम में लाभदायक हैं।
- बड़ी हरड़ के साथ सेंधा नमक पाचन शक्ति की वृद्धि करता है।
- तुलसी व काली मिर्च युक्त चाय का प्रयोग करें।
- नींबू में विटामिन सी पाया जाता है। इसका सेवन करें।
- शहद का प्रयोग उपयोगी है।
- कम वसा युक्त आहार का प्रयोग लाभप्रद है।
इनपुट्स- डॉ. अर्पिता सी. राज, एम.डी. (आयुर्वेद)
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