
सामान्य रूप से बुखार होने पर दी जाने वाली दवा एस्पिरिन ट्यूमर को बढ़ने से रोकती है और आंत के कैंसर को वृद्धि पर अंकुश लगाने का काम करती है। एक नए अध्ययन के मुताबिक, ये जानकारी इस घातक बीमारी के लिए नए रोकथाम तकनीकों की ओर ले जाएगी। अमेरिका के एक गैर लाभकारी संस्थान और रिसर्च सेंटर सिटी ऑफ होप के शोधकर्ताओं का कहना है कि एस्पिरिन में कैंसर, अल्जाइमर, पार्किंसन और अर्थराइटिस जैसी लंबे वक्त से रही बीमारियों की रोकथाम की क्षमता है।
कैंसर के उपचार में कितनी मात्रा प्रभावी?
अध्ययन के सह-लेखक अजय गोयल का कहना है, ''वर्तमान में इन बीमारियों को रोकने के लिए एस्पिरिन का उपयोग नहीं किया जा रहा है क्योंकि किसी भी एंटी-इंफ्लेमेटरी दवा का अधिक सेवन पेट में बलगम की परत को खाना शुरू कर देता है, जिसके कारण पेट में गैस और अन्य समस्याएं हो जाती हैं।'' उन्होंने कहा कि हम इस बात का पता लगाने के बहुत करीब है कि दिन में कितनी मात्रा बिना किसी साइड इफेक्ट के कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार और रोकथाम में काम आ सकती है।
एस्पिरिन के डोज पर निर्भर
अध्ययन के हिस्से के रूप में वैज्ञानिकों ने अमेरिका और यूरोप में क्लीनिकल ट्रायल किए, जिसमें लोगों द्वारा ली गई रोजाना की एस्पिरिन की मात्रा को चूहों पर प्रयोग किया। उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे एस्पिरिन का डोज बढ़ाया गया, वैसे-वैसे कोशिकाओं का नष्ट होना भी बढ़ गया जबकि कोशिकाओं की विभाजन दर में कमी दर्ज की गई।
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ट्यूमर की कोशिकाओं के नष्ट होने की संभावना
इसके आधार पर शोधकर्ताओं ने बताया कि एस्पिरिन के प्रभाव के अंतर्गत ट्यूमर कोशिकाओं के नष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है और उनकी संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं होती है। गोयल ने कहा, ''हम डेटा के विश्लेषण के लिए उन मानव क्लीनिकल ट्रायल करने वाले लोगों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और मैथामैटिकल मॉडलिंग का प्रयोग कर रहे हैं।'' ये प्रक्रिया निष्कर्षों के प्रति विश्वास जगाएगी और भविष्य में होने वाले शोधों का मार्गदर्शन करेगी।
कैसे किया गया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए 432 चूहों को चार समूहों में विभाजित किया। इनमें से एक कंट्रोल समूह था, जिसे किसी प्रकार की कोई दवा नहीं दी गई, जबकि एक समूह को एस्पिरिन का कम डोज, तीसरे को एस्पिरिन का उससे ज्यादा और चौथे समूह को एस्पिरिन का हाई डोज दिया गया।
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अध्ययन का निष्कर्ष
शोधकर्ताओं ने कहा कि चूहों को दिए गए ये डोज मनुष्यों द्वारा लिए गए 100 मिलीग्राम, 300 मिलीग्राम और 600 मिलीग्राम के डोज के बराबर थे। इसके बाद तीन, 5, 7, 9, 11वें दिन पर वैज्ञानिकों ने हर समूह के तीन चूहों की जांच की। जांच में ये विश्लेषण किया गया कि कैसे इन चूहों में कोशिकाएं ’अपोप्टोसिस’ नाम की एक प्राकृतिक मृत्यु प्रक्रिया से गुजरती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि मरने वाली कोशिकाओं का प्रतिशत सभी समूहों में बढ़ गया।
शोधकर्ताओं ने कहा हालांकि वास्तव में कितनी कोशिकाएं मृत होती है ये आपके द्वारा ली गई एस्पिरिन की मात्रा पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि बुखार में काम आने वाली दवा सभी प्रकार की कोलोरेक्टल कोशिकाओं में कोशिकाओं के नष्ट होने के दूरगामी प्रभावों को बढ़ाती हैं।
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