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क्या आईवीएफ से होने वाले बच्चों में जन्मजात बीमारियां होने का जोखिम ज्यादा रहता है? एक्सपर्ट से जानें

आईवीएफ ट्रीटमेंट से जन्मे बच्चों में नेचुरल तरीके से पैदा हुए बच्चों की तुलना में क्या बर्थ डिफेक्ट ज्यादा होता है? जानें, एक्सपर्ट की राय। 
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क्या आईवीएफ से होने वाले बच्चों में जन्मजात बीमारियां होने का जोखिम ज्यादा रहता है? एक्सपर्ट से जानें


Are Birth Defects More Common With IVF In Hindi: आईवीएफ ट्रीटमेंट ने न जाने आज तक कितने परिवारों के सपनों को पूरा किया है। सबसे पहला आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलिटी बर्थ 1978 में हुआ था। रिप्रोडक्टिव साइंस सेंटर के अनुसार, "2023 तक 5 मिलियन बच्चों का जन्म आईवीएफ के जरिए हो चुका है। वे सभी बच्चे नेचुरल तरीके से जन्में बच्चों की तरह स्वस्थ हैं और अच्छी जिंदगी जी रहे हैं।" इतनी सफलता हासिल करने के बावजूद यह सवाल जरूर उठता है कि आईवीएफ ट्रीटमेंट के जरिए जन्मे बच्चे में बर्थ डिफेक्ट यानी जन्मजात बीमारियों का रिस्क नेचुरल तरीके से जन्में बच्चों की तुलना में ज्यादा होता है? इस संबंध में हमने मुंबई स्थित नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी की फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉ. रितु हिंदुजा से बात की। 

क्या आईवीएफ से होने वाले बच्चों में जन्मजात बीमारियों का जोखिम ज्यादा रहता है?

birth defect of ivf treatment

सबसे पहले, आपको यह बता दें कि आईवीएफ ट्रीटमेंट के जरिए आमतौर पर मल्टीपल बर्थ होने की संभावना ज्यादा होती है। मल्टीपल बर्थ के कारण, जन्में शिशुओं का वजन सामान्य से कम होता है और बहुत आसानी से ये संक्रमण या बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।

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वहीं, यह बात भी समझने की जरूरत है कि आमतौर पर महिलाएं आईवीएफ ट्रीटमेंट की मदद तभी लेती हैं, जब वे सभी नेचुरल तरीके से प्रेग्नेंट होने का प्रयास कर चुकी होती हैं। इसके अलावा, कई तरह के अलग-अलग तरह के ट्रीटमेंट भी आजमाए जाते हैं। यह सभी करते हुए अक्सर महिलाओं की उम्र बढ़ जाती है और जब वे आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरु करती हैं, तब तक वे 30 से 32 साल की उम्र पार कर चुकी होती हैं। ऐसी महिलाओं के बच्चों में बर्थ डिफेक्ट का रिस्क बढ़ जाता है।

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इसके अलावा, एक मुख्य बात यह भी है कि जो लोग आईवीएफ ट्रीटमेंट की मदद लेते हैं, वे किसी न किसी परेशानी के कारण ऐसा करते हैं। इन लोगों को इनफर्टिलिटी की परेशानी हो सकती है। ऐसे लोग जब आईवीएफ ट्रीटमेंट के जरिए पैरेंट्स बनते हैं, तो उनके बच्चे में किसी न किसी तरह के डिफेक्ट का रिस्क बना रहता है। ऐसा इसलिए भी माना जाता है, क्योंकि एग या स्पर्म में किसी न किसी तरह की कमी होती है। जिन पुरुषों में स्पर्म काउंट कम होता है, उनमें क्रोमोसोमल असामान्यता का रिस्क होता है, जो उनके बच्चों तक ट्रांसफर हो सकता है।

कुल मिलाकर कहने की बात ये है कि अब तक पूरी तरह से यह नहीं कहा जा सकता है कि आईवीएफ ट्रीटमेंट के जरिए जन्में बच्चों में बर्थ डिफेक्ट का रिस्क ज्यादा होता है। इस पर अभी काफी शोध और अध्ययन किए जाने चाहिए। अब तक आईवीएफ ट्रीटमेंट के जरिए, जो बच्चे जन्में हैं, वे सामान्य हैं और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।

image credit: freepik

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