हाल के एक अनुसंधान से ये पता चला है कि एंटी-एलएपी एंटीबॉडीज से कैंसर से लड़ने की क्षमता तो बढ़ती ही है साथ ही उससे उसका विकास की गति भी रूकती है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि एक एंटीबॉडी कैंसर से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा सकती है और कैंसर के विकास को रोक सकती है। इसे मूल रूप से ऑटोइम्यून की स्थिति मल्टीपल स्केलेरोसिस से विकसित किया गया है। इस शोध का प्रकाशन ‘जर्नल साइंस इम्यूनोलॉजी’ में किया गया है।
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शोधकर्ताओं कहना है कि एंटीबॉडी से कैंसर की वृद्धि मेलेनोमा (त्वचा कैंसर), ग्लिओब्लास्टोमा (ब्रेन कैंसर) व कोलोरेक्टल कार्सिनोमा में कम हो जाती है। एंटीबॉडी खासतौर से टी कोशिकाओं को लक्षित करता है जो इसके बदले में प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में सहायता करता है। टी-कोशिकाएं खुद की बर्दाश्त करने की प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाएं रखने में मददगार होती है, जो अनजाने में शरीर को प्रतिरक्षा प्रणाली की पहचान कर व कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर कैंसर की वृद्धि को रोकती हैं।
ब्रिघम के न्यूरोलॉजिस्ट होवर्ड वेनियर व बोस्टन के महिला अस्पताल के शोधकर्ताओं ने कहा कि वे एंटीबॉडी का इस्तेमाल कर ट्रेग्स को लक्ष्य बनाते हैं। इस दल ने तथाकथित एंटी-एलएपी एंटीबॉडी को विकसित किया है, जो मल्टीपल स्केलेरोसिस के विकास की जांच के लिए विकसित की गई। लेकिन उन्होंने पाया कि यह कैंसर के शोध में भी कारगर है। इस शोध में टीम ने एंटी एलएपी एंटीबॉडीज के ट्रेग की जरूरी क्रियाविधि को रोकने व कैंसर से लड़ने में प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को बहाल करने की भूमिका के बारे में अध्ययन किया है।
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