ग्लूकोमा छीन सकता है आपके आंखों की रोशनी, ये 6 लक्षण दिखने पर कराएं आंखों की जांच

ग्लूकोमा आंखों की एक खतरनाक बीमारी है, जो आपके आंखों की रोशनी भी छीन सकती है। इस साल 10 मार्च से 16 मार्च तक विश्व ग्लूकोमा सप्ताह यानी वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक मनाया जा रहा है, ताकि ग्लूकोमा के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके। ग्लूकोमा को काला मोतियाबिंद भी कहते हैं। आमतौर पर ग्लूकोमा का खतरा 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को होता है।
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ग्लूकोमा छीन सकता है आपके आंखों की रोशनी, ये 6 लक्षण दिखने पर कराएं आंखों की जांच

ग्लूकोमा आंखों की एक खतरनाक बीमारी है, जो आपके आंखों की रोशनी भी छीन सकती है। इस साल 10 मार्च से 16 मार्च तक विश्व ग्लूकोमा सप्ताह यानी वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक मनाया जा रहा है, ताकि ग्लूकोमा के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके। ग्लूकोमा को काला मोतियाबिंद भी कहते हैं। आमतौर पर ग्लूकोमा का खतरा 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को होता है। लेकिन कई बार परिवार में ग्लूकोमा का इतिहास होने पर या किसी अन्य बीमारी के कारण कम उम्र में भी ग्लूकोमा हो सकता है।

ग्लूकोमा होने पर ऑप्टिक तंत्रिका में नुकसान होने की वजह से व्यक्ति की आंखों की रोशनी प्रभावित होती है। ऑप्टिक तंत्रिकाएं (ऑप्टिक नर्व्स) वो तंत्रिकाएं हैं, जो आंखों द्वारा इकट्ठा की गई सूचनाओं को दिमाग तक ले कर जाती है, जिससे आप चीजों को देख पाते हैं। ज्यादातर दशाओं में ऑप्टिक तंत्रिका में क्षति तब होती है जब आंख के सामने वाले हिस्से में द्रव्य का दवाब बढ़ जाता है। पर ग्लूकोमा सम्बंधित आंख की क्षति तब भी हो सकती है जब द्रव्य का दबाव सामान्य होता है।

अगर आपकी आंखों में कोई समस्या हो और ये लक्षण दिखाई दें, तो ग्लूकोमा का खतरा हो सकता है। इसलिए एक बार चिकित्सक से जांच जरूर करवा लेना चाहिए।

ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षण

ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। मगर यदि इन लक्षणों के दिखने पर आप चिकित्सक के पास जाकर आंखों की जांच करवाएं, तो आंखों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है।

  • बार-बार सिरदर्द होना
  • आंखों के चश्मे का नंबर जल्दी-जल्दी बढ़ना
  • अंधेरे कमरे (जैसे थियेटर या सिनेमा हॉल) में आंखों का एडजस्ट न हो पाना। दरअसल आंखें सामान्य होने पर अंधेरे कमरे में कुछ समय रहने के बाद आंखें सेट हो जाती हैं और आपको पहले से कुछ कम अंधेरा दिखाई देता है, जबकि ग्लूकोमा के मरीजों की आंखें सेट नहीं हो पाती हैं।
  • सफेद रोशनी के आसपास इंद्रधनुष जैसे रंग दिखाई देना। (सफेद रोशनी की तरफ देखने पर तमाम रंगों का रोशनी से बिखरते हुए दिखाई देना)
  • आंखों में तेज दर्द और कई बार चेहरे के हिस्से में भी दर्द महसूस होना।
  • जी मिचलाना, उल्टी और सिरदर्द की समस्या
  • कई बार आपको ग्लूकोमा के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। ऐसे में आपको नियमित जांच से ही आंखों में ग्लूकोमा के बारे में पता चल सकता है।

यह बहुत महत्वपूर्ण हैं कि आप ग्लूकोमा की पहचान प्रारंभिक अवस्था में ही कर लें क्योंकि एक बार ग्लूकोमा पूरी तरह होने के बाद इसको ठीक करना काफी मुश्किल हो जाता है। लेकिन समय रहते यदि ग्लूकोमा के लक्षणों को पहचान लिया जाए तो मरीज को नेत्रहीन होने से बचाया जा सकता है।

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दूसरी आंख को भी पहुंच सकता है नुकसान

जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता जाता है आंखों की ऊपरी सतह और देखने की क्षमता प्रभावित होने लगती हैं। कई बार काला मोतिया गंभीर हो जाता है, जिस कारण अंधापन भी हो सकता है। अक्सर लोग इस बीमारी पर आंखों की कार्यक्षमता कम होने तक ध्यान नहीं देते। काले मोतिया या मोतियाबिंद के दौरान आंख की मस्तिष्क को संकेत भेजने वाली ऑप्टिक तंत्रिकाएं बुरी तरह प्रभावित होती है। और उनकी कार्यक्षमता धीमी हो जाती है। इससे दूसरी आंख पर अधिक दबाव पड़ता है यह स्थिति काफी खतरनाक होती है।

1 करोड़ 20 लाख मरीज हैं ग्लूकोमा का शिकार

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में करीब 70 करोड़ लोग ग्लूकोमा से ग्रस्त हैं। वहीं इस रोग के संबंध में हुए सर्वे और अनुसंधानों से पता चला है कि आज देश में लगभग 1 करोड़ 20 लाख लोग ग्लूकोमा के शिकार हैं।

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सिर्फ सर्जरी है ग्लूकोमा का इलाज

ग्लूकोमा का एकमात्र इलाज है सर्जरी। इसके बिना ग्लूकोमा से छुटकारा नहीं मिल सकता है। ग्लूकोमा की सर्जरी भी अब काफी आसान व दर्दरहित हो गई है। और सर्जरी के बाद मरीज की आंखों की रोशनी में बहुत तेजी से सुधार होता है। इस सर्जरी के तुरंत बाद लोग सामान्य कामकाज कर सकते हैं। स्टेलैरिस-माइक्रो इनसीजन कैटरैक्ट नामक सर्जरी (एस- एमआईसीएस) पूरी तरह से सुरक्षित है और कम समय लेती है। इसमें आंखों में एक चीरा लगया जाता है जो अपने आप समय के साथ ठीक हो जाता है। इसमें दर्द ना के बराबर होता है। अधिकतर रोगी पहले की तुलना में बेहतर देखने लगते हैं। साथ ही इसके कोई दुष्प्रभाव भी नहीं है।

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