'लड़कियों के लिए बेहतर समाज' बनाना है, तो लड़कों की परवरिश में रखें इन 5 बातों का ध्यान

इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं बेटों की परवरिश के 5 तरीके, जिससे संभवतः वो बड़े होकर लड़कियों और महिलाओं का सम्मान करना सीखेंगे।

Anurag Anubhav
Written by: Anurag AnubhavUpdated at: Dec 18, 2019 17:42 IST
'लड़कियों के लिए बेहतर समाज' बनाना है, तो लड़कों की परवरिश में रखें इन 5 बातों का ध्यान

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आज देशभर में निर्भया रेप केस की चर्चा है। इस केस के 4 दोषियों में से एक नाबालिग है, जिसे फांसी की सजा दी जानी है। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस दोषी की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। पिछले दिनों हैदराबाद से भी एक वीभत्स रेप की घटना सामने आई थी, जिसमें 27 साल की डॉक्टर को 4 दरिंदों ने रेप के बाद जिंदा जला दिया था। इस मामले में भी 4 में से 3 आरोपी 20 साल से कम उम्र पाए गए थे। लड़कियों के साथ रेप, छेड़छाड़, धमकी आदि की ऐसी न जाने कितनी घटनाएं रोज सामने आती हैं, जिसमें आरोपी 'युवा' होते हैं और खासकर 'लड़के' होते हैं। इन घटनाओं के कारण ही एक बहस तेजी से उभरी है कि क्या लड़कों की परवरिश में समाज कोई गलती कर रहा है या लड़कों का मनोविज्ञान किन्हीं अन्जान चीजों से प्रभावित हो रहा है, जिसके कारण ऐसी घटनाएं तेजी से सामने आ रही हैं?

आज हम आपको बता रहे हैं लड़कों की परवरिश में ध्यान रखी जाने वाली वो 5 बातें, जो संभवतः उनके मन में लड़कियों को देखने के नजरिए को बदल सकें, जिससे हो सकता है हमारा आने वाला समाज लड़कियों के लिए ज्यादा बेहतर, ज्यादा सुरक्षित और ज्यादा संवेदनशील हो।

बच्चों के सामने झगड़ा न करें

पति-पत्नी के बीच छोटी-मोटी तकरार हर घर में होती है। मगर छोटे बच्चों का दिमाग बेहद सेंसिटिव होता है इसलिए आपको उनके सामने कभी भी झगड़ना नहीं चाहिए। घर में जब बच्चा ये देखता है कि मां-बाप लड़ रहे हैं और उसमें जीत उसकी हो रही है, जो तेज बोल रहा है या चिल्लाकर गुस्सा जाहिर कर रहा है, तो उनके अवचेतन मस्तिष्क पर इसका गलत पड़ता है। उनके दिमाग में यह बात घर कर जाती है कि तेज बोलने और गुस्सा करने से आप अपनी बातें मनवा सकते हैं।

इसके अलावा ज्यादातर घरों में लड़ाई होने पर अंत में पुरुष की जीत होती है (ध्यान दें इसे जनरलाइज न करें, अमूमन ऐसा होता है) और औरत को झुकना पड़ता है। एक-दो बार ऐसा देखने पर भले ही ये सामान्य लगे, मगर बच्चा यदि अपने आसपास अक्सर ऐसी घटनाएं कई बार देखता है, तो धीरे-धीरे उसके अवचेतन मस्तिष्क में यह बात घर करने लगती है कि महिलाएं कमजोर होती हैं या पुरुष उन्हें अपने गुस्से से दबा सकते हैं।

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लड़के को भी सिखाएं बैड टच

आमतौर पर लोग यही कवायद करते हैं कि लड़कियों को बचपन से ही गुड टच-बैड टच के बारे में समझाना चाहिए। मगर यह बात लड़कों को भी समझानी बहुत जरूरी है। दरअसल जब आप लड़कों को उनके प्राइवेट पार्ट्स, गुड टच, बैड टच आदि के बारे में बताते हैं कि उन्हें यह भी धीरे-धीरे समझ आना शुरू हो जाता है कि दरअसल बैड टच सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि हर किसी के लिए बुरा है। इस तरह बड़े होने पर कम से कम वो दूसरों के बैड टच का भी ख्याल रख सकते हैं।

बच्चे को बताएं लड़का होना लड़की होने से अलग नहीं है

भारतीय समाज में बचपन से ही लड़के और लड़कियों को आपस में घुलने-मिलने देने के बजाय दूर रखने की कोशिश की जाती है। इसी के चलते लड़के और लड़कियों के खेल अलग-अलग किए गए हैं, उनके घूमने फिरने और दोस्ती करने का दायरा अलग-अलग रखा गया है, जिसके कारण बड़े होने के तक लड़के लड़कियों के बारे में न तो ठीक से जान पाते हैं और न ही समझ पाते हैं। बड़े होने पर जब उन्हें सेक्स और वासना जैसी चीजों का पता चलता है, तो वो अपने दिमाग में तरह-तरह की फैंटेसी बनाने लगते हैं। इस फैंटेसी को आजकल का इंटरनेट, गलत लोगों की संगत से पोषण मिलता है और लड़के का दिमाग, लड़कियों को लेकर दूषित होता जाता है

वहीं अगर आप बचपन से ही अपने बच्चे को लड़कियों से घुलने-मिलने, साथ खेलने और दोस्ती करने की इजाजत देते हैं, तो वो लड़कियों को अपने से अलग नहीं समझते हैं। दो छोटे बच्चे जब आपस में खेल रहे हों, तो हम भले ही उन्हें लड़का और लड़की के रूप में देख रहे हों, मगर वो दोनों एक-दूसरे को हमउम्र दोस्त ही समझते हैं। ऐसी परवरिश से संभव है कि बड़े होकर वो एक-दूसरे को समझें और एक-दूसरे की मौजूदगी को कोई स्पेशल घटना या मौका न समझकर नॉर्मल व्यवहार कर पाएं।

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5 से 12 साल की उम्र में बच्चों पर रखें नजर

आमतौर पर 5 साल की उम्र के बाद बच्चे चीजों को अपनी स्वतंत्र दृष्टि से देखना शुरू कर देते हैं। अगर आप अपने बच्चे की परवरिश सही रखना चाहते हैं, तो आपको 5 साल से 12 साल की उम्र के बच्चों पर विशेष नजर रखनी चाहिए।

बच्चा मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, टैबलेट मिलते ही क्या कौन से वीडियोज देखना, कौन से गेम खेलना पसंद करता है। हिंसक और मार-धाड़ वाले वीडियोज और गेम्स बच्चे के मस्तिष्क पर बुरा असर डालते हैं। इसके अलावा कई बार 9-10 साल की उम्र के बच्चों को अपने साथ वाले बच्चों से पॉर्न वीडियोज, फिल्मों के एडल्ट सीन्स और सेक्स से जुड़ी आधी-अधूरी जानकारियां मिलती रहती हैं। अगर बच्चे टीवी या वीडियोज देखते समय ऐसे सीन्स पर अलग तरह से रिएक्ट करें, तो चैनल बदलने के बजाय उन्हें तुरंत इन चीजों के बारे में सही बातें बताएं और समझाएं।

एक सबसे जरूर बात जो आपको अपने बच्चे को सिखानी चाहिए वो ये है कि--- उन्हें दूसरों के दुख और तकलीफ को महसूस करना सिखाएं। जो बच्चे सामने वाले की तकलीफ, दर्द और दुख को समझकर उसपर इमोशनल हो सकते हैं, वो कभी जानबूझकर किसी के साथ गलत नहीं करेंगे।

आमतौर पर 3 साल से बड़ी उम्र के बच्चे जिद्दी हो जाते हैं, जिसके कारण अपनी मनपसंद खाने की चीज न मिलने, मनपसंद टीवी चैनल न देखने देने और पसंद का खिलौना न मिलने पर वो गुस्सा करते हैं। इस उम्र के बच्चों को 'न' को स्वीकार करना समझाएं।

12 से 18 साल के बच्चों को समझाएं कुछ जरूरी बातें

आमतौर पर 12-13 साल की उम्र से बच्चों को किशोर यानी टीनेजर माना जाने लगता है। अगर सही परवरिश की जाए, तो इस उम्र तक आपके बच्चे काफी समझदार हो जाते हैं। कुछ बच्चे, जिनकी परवरिश ठीक नहीं होती है या जो एडीएचडी जैसे डिस्ऑर्डर का शिकार होते हैं, वो इसी उम्र में सबसे ज्यादा हिंसक और गुस्सैल होते हैं। मां-बाप को अपने 12 से 18 साल के बच्चे को कुछ बातें जरूर समझानी चाहिए।

इस उम्र में बहुत सारे बच्चे प्यार का मतलब 'सेक्स' समझते हैं। उन्हें सेक्स और इंटीमेसी में अंतर समझाएं। बच्चे को प्यार की पवित्रता और रिश्तों का महत्व बताएं, ताकि वो अपने से बड़ों के आपसी रिश्तों को समझ सके।

बच्चे को इस बारे में बताएं कि किसी भी व्यक्ति के शरीर के आसपास एक हाथ के बराबर दूरी वाला दायरा उसका पर्सनल स्पेस होता है, जिसमें जाने से पहले उस व्यक्ति से पूछना और बहुत जरूरी है। उन्हें यह भी समझाएं कि उनके 1 हाथ का दायरा भी उनका पर्सनल स्पेस है, जिसके दायरे में मां-बाप, भाई-बहन और पुराने दोस्त ही आ सकते हैं।

नोट- ऊपर बताई गई टिप्स के अलावा भी रोजमर्रा की बहुत सारी बातें हैं, जिनपर आपको अपने बेटे से बात करनी चाहिए। आप जहां भी यह पाते हैं कि आपका बेटा लड़कियों के लिए कोई खास परसेप्शन बना रहा है या स्टीरियोटाइप बना रहा है, तो उसे तुरंत टोकें और समझाएं। इसी तरह हम उन्हें इस बात का एहसास दिला सकते हैं कि लड़के और लड़कियां बराबर होते हैं।

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