
मक्खन और अन्य वसायुक्त पदार्थों को दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता था। लेकिन, वास्तविकता यह हे कि ये इतने बुरे नहीं हैं, जितना कि इनके बारे में माना जाता रहा है।
दिल की सेहत के लिए मक्खन, क्रीम और अन्य वसा युक्त खाद्य पदार्थों को अच्छा नहीं माना जाता। लेकिन, एक ताजा वैज्ञानिक अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि इस तरह के खाद्य पदार्थ आपके दिल को नुकसान कम और फायदा अधिक पहुंचाते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मानना कि उच्च वसा युक्त आहार धमनियों के लिए अच्छा नहीं है, वैज्ञानिक शोध की गलत व्याख्या पर आधारित है। डॉक्टरों का कहना है कि हृदय रोग के लिए संतृप्त वसा की भूमिका लेकर व्याप्त भ्रांतियों को तोड़ने की जरूरत है।
स्वीडन जैसे कुछ पश्चिमी देशों ने अभी आहार संबंधी ऐसे दिशा-निर्देशों का पालन करना शुरू कर दिया है, जिसमें वसा तो अधिक हो, लेकिन कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम हो। ब्रिटेन में कार्यरत कार्र्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर असीम मल्होत्रा ने कहा है कि बीते दशकों से क्रीम और मक्खन का सेवन कम करने और पतले मांस का सेवन करने की सलाह के बाद भी कार्डियोवस्कुलर खतरे में इजाफा ही हुआ है। डॉक्टर मल्होत्रा ने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल बेवसाइट bmj.com पर एक बहस चला रहे हैं, जिसमें संतृप्त वसा को 'शैतान' के रूप में साबित करने की चुनौती दे रहे हैं।
1970 के दशक में किये गए एक महत्वपूर्ण शोध में हृदय रोग और ब्लड कोलेस्ट्रॉल के बीच संबंध तलाशे गए थे। इस शोध में यह बात सामने आयी थी कि संतृप्त वसा में पायी जाने वाली कैलोरी के कारण रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है, जो हृदय रोग का अहम कारण है।
लेकिन, डॉक्टर मल्होत्रा का कहना है कि तलाशा गया यह संबंध, कारण नहीं है। लंदन की क्रोयडन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में इंटरवेनशल कार्डियोलॉजिस्ट स्पेशलिस्ट, डॉक्टर मल्होत्रा कहते हैं कि फिर भी लोगों का यह सलाह दी जाती है कि अपनी रोजाना ऊर्जा जरूरत का तीस फीसदी से अधिक वसा के रूप में न लें और संतृप्त वसा का हिस्सा तो दस फीसदी ही रखें। उन्होंने आगे कहा कि हालिया शोधों में संतृप्त वसा और कार्डियोवस्कुलर बीमारियों के बीच संबंधों के बारे में पता नहीं चला है। बल्कि इनके जरिये संतृप्त वसा को दिल के लिए अच्छा ही माना गया है।
1956 में मोटापे पर प्रकाशित एक शुरुआती शोध में यह बात सामने आयी थी कि वसा वजन कम करने में अधिक सहायक है। इसमें लोगों को तीन ग्रुप में बांटा गया था। तीनों को अलग-अलग प्रकार का आहार दिया था। एक ग्रुप को 90 फीसदी वसा, दूसरे को 90 फीसदी कार्बोहाइड्रेट और तीसरे को नब्बे फीसदी प्रोटीन युक्त भोजन दिया गया। इसमें पाया गया कि जिन लोगों ने वसा युक्त आहार किया है, उनका वजन अधिक कम हुआ।
नेशनल ओबेसिटी फोरम के डॉक्टर डेविड हेसलेम का कहना है कि यह माना जाता है कि रक्तवाहिनियों में अधिक वसा होने के पीछे संतृप्त वसा युक्त आहार होता है। लेकिन नवीनतम वैज्ञानिक प्रमाण इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट और विशेष रूप से चीनी इस समस्या की मूल में है।
अमेरिका में हुए एक अन्य शोध में यह पाया गया कि कम वसा युक्त भोजन लेना वास्तव में कम कार्बोहाइड्रेट भोजन लेने के मुकाबले बुरा था। डॉक्टर मल्होत्रा का कना है कि अमेरिका में मोटापा काफी तेजी से बढ़ा है, बावजूद इसके कि लोग अपने पहले के मुकाबले कम कैलोरी युक्त भोजन कर रहे हैं ।
हाल ही में स्वीडिश काउंसिल ऑन हेल्थ टेक्नोलॉजी के मूल्यांकन में यह बात सामने आयी कि उच्च वसा युक्त भोजन ब्लड शुगर स्तर को सुधारता है, ट्राइग्लिसराइड को कम कर गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है। यह सब इंसुलिन प्रतिरोध के लक्षण हैं। और मधुमेह का मूल कारण है। इतना ही नहीं वजन कम करने के सिवाय इसका कोई और 'दुष्प्रभाव' नहीं होता।
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