सांस और त्वचा संबंधी कई रोग जैसे अस्थमा और एलर्जी का कोई पुख्ता इलाज एलोपैथी में नहीं हैं। लेकिन अब घरेलू नुस्खों की अनमोल औषधि यानी नमक की एक खास थेरेपी से मरीजों को राहत मिल रही है। चिकित्सा की नई तकनीक 'सॉल्ट रूम थेरेपी' से पुराने अस्थमा मरीजों का इलाज किया जा रहा है। प्राकृतिक नमक पाचक एवं बैक्टीरिया को दूर कर व दर्दनाशक होता है। इस तकनीक में अत्यंत सूक्ष्म कण श्वांस नली के जरिये संक्रमण को दूर करते हैं। नमक की दीवारों और बर्फ जैसे फर्श वाले इस रूम में कुछ मिनट बिताकर आप तरोताजा महसूस कर सकते हैं। दवाइयों से छुटकारा दिलाने वाली इस अद्भुत चिकित्सा थेरेपी का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता।
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क्या है 'सॉल्ट रूम थेरेपी'
यह एक दवा-रहित प्राकृतिक चिकित्सा तकनीक है। जिसमें कमरे को नमक की गुफा का रूप दिया जाता है। आठ से दस टन नमक के जरिए यह सॉल्ट रूम बनाया गया है। इस रूम में एक साथ छ: लोगों के बैठने की व्यवस्था होती है। इस रूम के बाहर लगे हेलो जेनरेटर के जरिये रूम में फार्माग्रेट सोडियम क्लोराइड युक्त हवा दी जाती है। यहां का तापमान और जलवायु को नियंत्रित कर मरीजों को एक घंटे तक रूम में रखा जाता है। इस दौरान मरीज की सांस से नमक के कण सांस की नली से होते हुए फेफड़े तक पहुंचते हैं। चूंकि नमक बैक्टीरिया नाशक होता है, इसलिए सांस से अंदर पहुंचे नमक के कणों से हर तरह के इंफेक्शन से राहत मिलनी शुरू हो जाती है। इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि एक घंटे के सेशन में मरीज सिर्फ 16 एमजी नमक ही इनहेल करता है। यह थेरेपी ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए भी हानिकारक नहीं होती है।
डॉक्टरों का कहना है कि पूरी तरह से ड्रग फ्री होने के कारण इस थेरेपी को आजमाने के लिए ऐसे लोग भी पहुंच रहे हैं, जिन्हें नींद नहीं आती या खांसी-सर्दी की तकलीफ होती है। एक घंटे के इस सेशन का आनंद लेने के लिए वयस्क मरीज ही नहीं बल्कि बच्चे भी इस थेरेपी को पसंद कर रहे हैं।
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कैसे काम करती है 'सॉल्ट रूम थेरेपी'
'सॉल्ट रूम थेरेपी' के रूम को लगभग सात हजार किलो नमक की मदद से एक गुफा का रूप दिया गया है। यहां हेलो जेनरेटर की मदद से मरीज की बीमारी के आधार पर रूम के तमाम सॉल्ट पार्टिकल्स को नियंत्रित किया जाता है। रूम में खास तरह के नमक को उचित मात्रा में हवा में घोला जाता है और ब्रीज टॉनिक प्रो से नमक को पिघलने से रोका जाता है। एक घंटे के सेशन में मरीज की सांस से नमक कण फेफड़े तक पहुंचते हैं। वेंटिलेटर सिस्टम मरीजों को इन्फेक्शन से बचाती है और मरीज के बाहर आते ही रूम को दोबारा बैक्टेरिया फ्री करता है। पहले सेशन से सांस की समस्या में बदलाव महसूस किया जा सकता है।
एक सेशन, एक घंटे का होता है। डॉक्टरों का दावा है कि 15 से 20 सेशन में बीमारी पूरी तरह खत्म हो जाती है। इस थेरेपी के पीछे बहुत ही सिंपल साइंस है। श्वांस नली में ऐंठन की वजह से आई सूजन को नमक कम करता है। इस थेरेपी का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक सौ में से 98 लोगों को इससे जबरदस्त फायदा मिला है। अस्थमा रोग के अलावा क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, साइनोसाइटिस, खांसी, सोराइसिस व एग्जिमा आदि का इलाज संभव हैं।
नमक के अति सूक्ष्म कणों को हवा में घोलने वाले उपकरण हेलो जेनेरेटर युक्त इस कक्ष में नमक की प्राकृतिक खदान जैसा वातावरण तैयार किया जाता है। एक लेजर लाइट कक्ष में नमी, तापमान एवं नमक की मात्रा पर नियंत्रण रखती है। हेलो जेनेरेटर उपकरण से निकले नमक के सूक्ष्म कण आंख से नहीं देखे जा सकते, लेकिन वे सांस के साथ शरीर के अंतिम हिस्से तक पहुंच कर वहां के पानी को सोखने की क्षमता रखते हैं। इससे सांस की नलियों में हवा का आना-जाना आसानी से होने लगता है और सांस की नलियों का रास्ता पहले जैसे ही खुल जाता है। इससे बलगम में सुधार होता है और ब्लॉकेज खत्म हो जाती है।
विदेशों में हुई लोकप्रिय
यह पुरानी थेरेपी है, जिसका विदेशों में काफी चलन है। अपने देश में भी इसे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। जर्मन की खदानों में प्राकृतिक नमक के वाष्पीकरण से मजदूरों में सांस एवं एलर्जिक बीमारियां नहीं पाई गई, जिसको परखते हुए वहां पर क्लीनिकों में साल्ट रूप थेरेपी का प्रचलन बढ़ गया। अमेरिका एवं यूरोपियन देशों में इस थेरेपी पर शोध कर अन्य रोगों के लिए भी कारगर पाया गया है।
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