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गर्भ से लेकर जन्म होने तक, बच्चे में कब-कैसे शुरू होती है पाचन की प्रक्रिया

बच्चे का पाचन तंत्र बड़ों से काफी अलग होता है। उसके पाचन तंत्र में गर्भ में रहने से लेकर 8-9 महीने की उम्र तक काफी बदलाव आते हैं। आइए जानते हैं बच्चे के डाइजेस्टिव सिस्टम के बारे में।
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गर्भ से लेकर जन्म होने तक, बच्चे में कब-कैसे शुरू होती है पाचन की प्रक्रिया


गर्भ में पल रहे भ्रूण को सभी प्रकार का पोषण मां के शरीर से प्लैसेंटा के द्वारा मिलता है। लेकिन जन्म लेने के बाद बच्चे का पाचन तंत्र इतना विकसित हो जाता है कि वो दूध या तरल चीजों को पचा सके। बच्चे के पहले भोजन, मां के दूध से पोषण प्राप्त करते हुए शिशु का पाचन तंत्र धीरे-धीरे विकसित होता है। एलांटिस हेल्थ केयर के मैनेजिंग डायरेक्टर एंड इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर मनन गुप्ता बताते हैं कि जब बच्चा छह महीने से बड़ा होता है, तो उसका पाचन तंत्र ठोस भोजन का पाचन करने और उनसे पोषण प्राप्त करने के लिए तैयार हो जाता है। पाचन तंत्र भोजन के बड़े टुकड़ों को छोटे टुकड़ों में तोड़ने का काम करता है। जबकि टूटे हुए टुकड़ों से पोषक तत्वों को अवशोषित करने का काम पेट में अच्छे बैक्टीरिया करते हैं। आइए जानते हैं बच्चे के पाचन तंत्र से जुड़ी पूरी जानकारी।

गर्भ में कैसे शुरू होती है पाचन की क्रिया

मां के पेट में तीसरे सप्ताह से गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल सिस्टम बढ़ने लगता है। चौथे सप्ताह तक आंत के तीन अलग-अलग भाग भ्रूण की लंबाई के मुताबिक फैल जाते हैं। धीरे-धीरे गर्भ में ही पाचन से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण अंग जैसे-  मुंह, सलाइवा ग्लैंड, पेट, छोटी आंत, बड़ी आंत आदि बनते हैं। ये सभी पाचन तंत्र के अंग मां के पेट में ही विकसित हो जाते हैं लेकिन वे जन्म लेने तक काम नहीं करते हैं।

जन्म के समय पाचन तंत्र

जन्म के बाद नवजात का पाचन तंत्र स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन जन्म के समय जब शिशु मां की योनि से बाहर आता है, तब माइक्रोफ्लोरा के माध्यम से रोगाणुओं के प्रति सुरक्षा मिलती है। यह भी नवजात शिशु के पाचन तंत्र को विकसित करने में योगदान देता है। इस विकास में आंतों का माइक्रोबियल इको सिस्टम भी शामिल है। इस दौरान बच्चे के वजन में 5 से 7% कमी भी आ सकती है।

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पाचन तंत्र का विकास तब भी जारी रहता है जब बच्चा मां का दूध पीना शुरू करता है। बच्चे के जन्म के बाद पहला दूध कोलोस्ट्रम कहलाता है। ये दूध एंटीबॉडी और पोषक तत्वों जैसे फैट, विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है। ये बच्चे के विकास में मदद करता है। साथ ही ये दूध माइक्रो ऑर्गेनिज्म के विकास में मदद करता है, जो बच्चे के पाचन तंत्र के लिए जरूरी है। बच्चे के शरीर में बदलाव के कारण कुछ ही दिनों में उनके वजन में कमी आ सकती है।

baby digestive system

समय से पहले जन्म

बच्चे का समय से पहले जन्म होने पर पाचन तंत्र अच्छी तरह से काम नहीं कर पाता। समय से पहले जन्म होने पर शिशु मां के दूध को पचाने के लिए तैयार नहीं होता। दूध में मौजूद प्रोटीन का पूरा पाचन करने के लिए पाचक रसों जैसे बाइल रस और पैंक्रियाज रस के साथ-साथ पाचक एंजाइमों व स्टार्च को पचाने के लिए एमाइलेज साथ ही लिपिड को पाचन के लिए लाइपेज की जरूरत होती है। इसी वजह से बच्चे को जन्म के बाद मां का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है।

पाचन ट्रैक्ट लाइनिंग टिश्यू 

बच्चे के पाचन तंत्र में एक परत होती है जिसे म्यूकस कहते हैं, जो पाचन तंत्र को हानिकारक रोग और भोजन में पाए जाने वाले खराब पदार्थो से बचाने का काम करती है। जब बच्चे का जन्म होता है, उस समय यह ज्यादा मजबूत नहीं होती। इसलिए बच्चे को पाचन से संबधित समस्या हो सकती है जैसे संक्रमण और सूजन का होना। इन सभी संक्रमणों और सूजन को मां के दूध में पाए जाने वाले एंटीबॉडी द्वारा खत्म किया जा सकता है। ऐसा तब तक जारी रहता है तब तक बच्चे का पाचन तंत्र मजबूत नहीं हो जाता।

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6 महीने तक ठोस भोजन नहीं देना चाहिए

मां का दूध पीने वाले बच्चे को छः महीने बाद ठोस भोजन दे सकते हैं। लेकिन बिल्कुल ठोस पदार्थों का पाचन करना बच्चे के लिए मुश्किल होगा क्योंकि कार्बोहाइड्रेट को पचाने वाले एंजाइम छह से सात महीने की उम्र में विकास होते हैं इसलिए तरल ठोस (सेमी लिक्विड) चीजें या मुलायम चीजें ही शिशु को देनी चाहिए। गैस्ट्रिक लाइपेज जो फैट को पचाने में मदद करते हैं वह 6 से 9 महीने की उम्र के बीच विकसित होते हैं। 

इसलिए गर्भ में पल रहे भ्रूण में पाचनतंत्र तो विकसित हो जाते हैं लेकिन वो अंग जन्म के बाद ही काम करना शुरू करते हैं।

 

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