टांगों में सूजन और दर्द, हो सकते हैं इस खतरनाक बीमारी के संकेत

शरीर की नसों में मौजूद ब्लड क्लॉट्स जब ब्लडस्ट्रीम में फैलते हैं, तो इनके फटने का भी डर होता है और अगर ऐसा हो जाए, तो इस फटे हुए क्लॉट को एम्बोलस कहते हैं। यह फेफड़ों की आर्टरीज़ तक पहुंचकर खून का प्रवाह रोक सकता है।
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टांगों में सूजन और दर्द, हो सकते हैं इस खतरनाक बीमारी के संकेत


डीवीटी यानी डीप वेन थ्रॉम्बोसिस। यह ब्लड क्लॉट होता है, जो शरीर की नसों की गहराई में बन जाता है। ब्लड क्लॉट तब होता है जब खून गाढ़ा हो जाता है। ज़्यादातर ब्लड क्लॉट्स टांग के निचले हिस्से या जांघ पर होते हैं। शरीर की नसों में मौजूद ब्लड क्लॉट्स जब ब्लडस्ट्रीम में फैलते हैं, तो इनके फटने का भी डर होता है और अगर ऐसा हो जाए, तो इस फटे हुए क्लॉट को एम्बोलस कहते हैं। यह फेफड़ों की आर्टरीज़ तक पहुंचकर खून का प्रवाह रोक सकता है।

इस स्थिति को पल्मनेरी एम्बोलिज़म या पीई कहते हैं। यह बेहद ही खतरनाक होती है। यह फेफड़ों और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकती है और मृत्यु का कारण भी बन सकती है। टांग के निचले हिस्से या शरीर के अन्य अंगों के मुकाबले, जांघों में ब्लड क्लॉट्स के फटने का डर ज़्यादा होता है। ब्लड क्लॉट्स स्किन के पास मौजूद नसों में ज़्यादा होते हैं, लेकिन ये वाले ब्लड क्लॉट्स फटते नहीं हैं और इनसे पीई होने का खतरा भी नहीं होता।

शरीर की नसों में ब्लड क्लॉट्स या डीवीटी होने के कारण क्या हैं?


शरीर में ब्लड क्लॉट्स तभी होते हैं, जब नसों की अंदरूनी परत डैमेज हो जाती है। फिज़िकल, कैमिकल या बायोलॉजिकल फैक्टर्स के चलते नसों में गंभीर इंजरी हो सकती है, सूजन आ सकती है या इम्यूनिटी कम हो सकती है। सिर्फ यही नहीं, सर्जरी के कारण भी नसें प्रभावित हो सकती हैं। ऐसे में ब्लड क्लॉट्स होने के चांस बढ़ जाते हैं। सर्जरी के बाद खून का प्रवाह कम हो जाता है, क्योंकि मरीज़ कम चलता-फिरता है। अगर आप लंबे समय से बिस्तर पर हैं, बीमार हैं या यात्रा कर रहे हैं, तब भी ब्लड फ्लो कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में खून गाढ़ा हो जाता है। जीन्स या फैमिली हिस्ट्री के कारण भी कई बार ब्लड क्लॉटिंग का रिस्क बढ़ जाता है। और-तो-और, हार्मोन थेरेपी या गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से भी क्लॉटिंग का रिस्क ज़्यादा हो जाता है।   

किन लोगों को डीवीटी का रिस्क होता है?


1- जिन लोगों की डीवीटी की हिस्ट्री रही हो।
2- जो लोग उस कंडीशन में हों, जिसमें ब्लड क्लॉट होने की संभावना ज़्यादा होती है।
3- प्रेग्नेंसी और जन्म देने के बाद के पहले 6 हफ्ते।
4- जो लोग कैंसर का ट्रीटमेंट ले रहे हों।
5- 60 साल से ऊपर के लोग
6- ओबेसिटी
7- स्मोकिंग

डीवीटी के लक्षण?


1- टांगों में सूजन या टांगों की नसों में सूजन
2- खड़े होने या चलने पर टांगों में दर्द या वीकनेस
3- टांग के उस हिस्से का गर्म हो जाना जिसमें सूजन या दर्द हो
4- टांग के प्रभावित हिस्से का लाल या कोई और रंग में बदल जाना
5- पल्मनेरी एम्बॉलिज़म


पीई के लक्षण?


1- सांस लेने में दिक्कत
2- गहरी सांस लेने से दर्द होना
3- खांसी करते वक्त खून निकलना
4- तेज़ी से सांस का चलना और दिल की धड़कनें भी तेज़ हो जाना

डीवीटी का ट्रीटमेंट?


डॉक्टर्स दवाओं और थेरेपीज़ के ज़रिए डीवीटी का इलाज करते हैं। इस उपचार में डॉक्टर का लक्ष्य होता है-

1- ब्लड क्लॉट को बड़ा होने से रोकना
2- ब्लड क्लॉट को फटने से रोकना, ताकि वो फेफड़ों तक ना पहुंच पाए
3- दूसरा ब्लड क्लॉट होने का चांस कम करना

इसके अलावा डॉक्टर्स खून को पतला करने की भी दवाई देते हैं। इसे रेगुलर लेनी होती है। इसका कोर्स लगभग 6 महीने का होता है। इस दवाई को लेने से खून पतला हो जाता है और ब्लड क्लॉट बड़ा नहीं होता। जो ब्लड क्लॉट बन चुका है, यह दवाई उसे ब्रेक नहीं कर सकती। ब्लड क्लॉट्स बॉडी में समय के साथ अब्ज़ॉर्ब  होते हैं। ब्लड थिनर्स को पिल की फॉर्म में ले सकते हैं, इंजेक्शन या फिर नस में एक ट्यूब डालकर भी लिया जा सकता है। लेकिन, ब्लड थिनर्स का साइड इफेक्ट है ब्लीडिंग। ब्लीडिंग तब होती है, जब दवाईयों के कारण खून ज़्यादा पतला हो जाता है। यह घातक भी हो सकता है। कई बार ब्लीडिंग अंदरूनी होती है। इसीलिए, डॉक्टर्स मरीज़ों का बार-बार ब्लड टेस्ट करवाते रहते हैं। इन टेस्ट्स में पता चल जाता है कि खून के जमने के कितने चांस हैं।

 

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