ग्लूकोमा और इसके लक्षणों को जानना है जरूरी

ग्लूकोमा को काले मोतिया के नाम से भी जाना जाता है। ग्लूकोमा और इसके लक्षणों के बारे में इस लेख में विस्तार से जानें।
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ग्लूकोमा और इसके लक्षणों को जानना है जरूरी


ग्लूकोमा को काले मोतिया के नाम से भी जाना जाता है। अधिक उम्र के लोगों की आंखों की यह समस्‍या आम है। लेकिन, आंखों का हर रोग ग्‍लूकोमा नहीं होता। तो, फिर क्‍या होता है ग्‍लूकोमा क्‍या हैं लक्षण, यह बात बेहद जरूरी होता है। इस लेख के जरिये हम इन्‍हीं सब सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे। ग्लूकोमा आंख में होने वाली एक दशा है, जिसमे ऑप्टिक तंत्रिका में नुकसान होने की वजह से दृष्टि को हानि होती है। ऑप्टिक तंत्रिका दृष्टि की सूचना को दिमाग तक ले कर जाती है। ज्यादातर दशाओं में ऑप्टिक तंत्रिका में क्षति तब होती है जब आंख के सामने वाले हिस्से में द्रव्य का दवाब बढ़ जाता है। पर ग्लूकोमा सम्बंधित आंख की क्षति तब भी हो सकती है जब द्रव्य का दबाव सामान्य होता है।

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glaucoma

ग्लूकोमा के ज्यादातर रूपों में जिन्हें प्राइमरी ओपन एंगल ग्लूकोमा भी कहते हैं, द्रव्य आंख में अनियंत्रित घूमता है और समय के साथ इसका दवाब बढ़ता रहता है। इसका अकेला लक्षण दृष्टि का धीरे-धीरे खत्म होना ही होता है। इस बीमारी का एक रूप कम सामान्य रूप न्यून या बंद एंगल ग्लाउकोमा भी होता है। यह अचानक बनता है और आंख में लाली और दर्द पैदा कर देता है। ग्लूकोमा के इस प्रकार में दबाव तेजी से बढ़ता है। ऐसे में आंख में सामान्य द्रव्य का बहाव अवरुद्ध हो जाता है। यह तब होता है, जब एंगल की संरचना हो जाती है।

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विशेषज्ञों अभी तक पता नहीं है कि क्यों ग्लूकोमा के दोनों रूप ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा खुले और बंद दोनों एंगल ग्लूकोमा के साथ आंख के दोष से सम्बंधित कुछ अन्य दुर्लभ बीमारी भी हो सकती हैं। यूनाइटेड स्टेट में ग्लूकोमा अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। जबकि अफ्रीकी अमेरिकी लोगों में यह अंधेपन का मुख्य कारण है। भारत में काला मोतिया अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।

 

ग्लूकोमा के लक्षण 

ग्लूकोमा आंखों की एक आम समस्या है। आमतौर पर ग्लूकोमा के प्रारंभिक लक्षणों को पहचानना काफी मुश्किल होता है, लेकिन जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता जाता है आंखों की ऊपरी सतह और देखने की क्षमता प्रभावित होने लगती हैं। कई बार काला मोतिया गंभीर हो जाता है, जिस कारण अंधापन भी हो सकता है। अक्सर लोग इस बीमारी पर आंखों की कार्यक्षमता कम होने तक ध्यान नहीं देते। काले मोतिया या मोतियाबिंद के दौरान आंख की मस्तिष्क को संकेत भेजने वाली ऑप्टिक तंत्रिकाएं बुरी तरह प्रभावित होती है। और उनकी कार्यक्षमता धीमी हो जाती है। इससे दूसरी आंख पर अधिक दबाव पड़ता है यह स्थिति काफी खतरनाक होती है।

यह बहुत महत्वपूर्ण हैं कि आप ग्लूकोमा की पहचान प्रारंभिक अवस्था में ही कर लें क्योंकि एक बार ग्लूकोमा पूरी तरह होने के बाद इसको ठीक करना काफी मुश्किल हो जाता है। लेकिन समय रहते यदि ग्लूकोमा के लक्षणों को पहचान लिया जाए तो मरीज को नेत्रहीन होने से बचाया जा सकता है।

 

शुरुआत में ही जांच जरूरी

ग्लूकोमा का शुरुआती अवस्था में पता लगाने के लिए जरूरी है कि आप समय-समय पर अपनी आंखों की जांच कराएं। 40 वर्ष की आयु के बाद आपके लिए यह और भी जरूरी हो जाता है कि आप किसी अच्छे नेत्र विशेषज्ञ से आंखों की नियमित जांच करवाते रहें। इस नियमित जांच में विजन टेस्ट भी शामिल होना चाहिए। इसके अलावा आई प्रेशर मेजरमेंट और कम रोशनी में आंखों के रेटिना, ऑप्टिक नर्व इत्यादि का परीक्षण करवाते रहना भी जरूरी होता है। यदि आपको इस बीमारी को लेकर कोई शंका हो तो आपको डॉक्टर से सलाह लेकर कुछ अन्य विशेष टेस्ट जैसे- गोनियोस्कोपी, कम्यूटराइज्ड फिल्ड टेस्ट, सेंट्रल कॉर्नील थिकनेस और नर्व फाइबर आदि भी करवाने चाहिए।

 

चश्‍मे का नंबर बदलना

चश्मे का नंबर बार-बार बदलना, अंधेरे में देर से नजर आना, रोशनी में अलग-अलग रंग दिखना ग्लूकोमा के संकेत हो सकते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जानकारी के अभाव में लोगों को इस बीमारी का पता देर से चलता है और तब तक यह बीमारी लाइलाज हो चुकी होती है। ग्लूकोमा को ‘साइलेंट साइट स्नैचर’ भी कहा जाता है क्योंकि इसकी वजह से आंखों को होने वाली क्षति गंभीर होती है। देश में इस रोग के बारे में जागरूकता बहुत कम है। लेकिन सतर्कता बरतने पर इससे बचा जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में करीब 70 करोड़ लोग ग्लूकोमा से ग्रस्त हैं। वहीं इस रोग के संबंध में हुए सर्वे और अनुसंधानों से पता चला है कि आज देश में लगभग एक करोड 20 लाख लोग ग्लूकोमा के शिकार हैं।

 

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Image Source: Getty

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