ऐसा माना जाता है कि अगर ये चक्र सुसुप्त यानी सो रहे हैं तो आपका जीवन भी नीरस है। इसलिए परम आनंद के साथ मोक्ष प्राप्ति के लिए भई इनको जाग्रत करना बहुत जरूरी है। जाग्रत होने के बाद ये शरीर के साथ मन और आत्मा को किस तरह प्रभावित करते हैं, इसके बारे में इस लेख में विस्तार से बात करते हैं।
क्या हैं चक्र
चक्र एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ पहिया होता है। ये शरीर के अंदर स्थिति वे बिंदु हैं जिनसे शरीर को ऊर्जा मिलती है, मुख्यत: ये सात प्रकार के होते हैं। ये चक्र शरीर के विभिन्न अंगों तथा मन एवं बुद्धि के कार्य को सूक्ष्म-ऊर्जा प्रदान करते हैं। ये व्यक्ति की सूक्ष्मदेह से संबंधित होते हैं। इनको कुंडलिनी चक्र भी कहा जाता है।
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मूलाधार चक्र
यह गुदा और लिंग के बीच चार पंखुड़ियों वाला आधार चक्र है। प्राणायाम करके, अपना ध्यान मूलाधार चक्र पर केंद्रित करके मंत्र का उच्चारण करने से यह जागृत होता है। इसका मूल मंत्र ‘लं’ है। धीरे-धीरे जब यह चक्र जाग्रत होता है तो व्यक्ति में लालच खत्म हो जाता है और व्यक्ति को आत्मीय ज्ञान प्राप्त होने लगता है। यह लालच को समाप्त करता है।
स्वाधिष्ठान चक्र
मूलाधार चक्र के ऊपर और नाभि के नीचे स्थित होता है स्वाधिष्ठान चक्र, इसका सम्बन्ध जल तत्व से होता है। इस चक्र के जाग्रत हो जाने पर शारीरिक समस्या और विकार, क्रूरता, आलस्य, अविश्वास आदि दुर्गुणों का नाश होता है। शरीर में कोई भी विकार जल तत्व के ठीक न होने से होता है। इसका मूल मंत्र ‘वं’ है।
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मणिपूर चक्र
यह तीसरा चक्र है जो नाभि से थोड़ा ऊपर होता है। यौगिक क्रियाओं से कुंडलिनी जागरण करने वाले साधक जब अपनी ऊर्जा मणिपूर चक्र में जुटा लेते हैं, तो वो कर्मयोगी बन जाते हैं। यह चक्र प्रसुप्त पड़ा रहे तो लालच, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय आदि के कारण मन प्रभावित रहता है। जबकि इस चक्र के जाग्रत होने के बाद ये विकृतियां समाप्त हो जाती हैं।
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अनाहत चक्र
यह चक्र व्यक्ति के सीने में रहता है। इस चक्र को जाग्रत करने के लिए व्यक्ति को हृदय पर ध्यान केंद्रित कर मूल मंत्र ‘यं’ का उच्चारण करना चाहिए। अनाहत चक्र जाग्रत होते ही बहुत सारी सिद्धियां प्राप्त होती है। यह सोता रहे तो कपट, तनाव, अहं यानी मोह और अहंकार से मनुष्य भरा रहता है।
विशुद्ध चक्र
यह चक्र गले में रहता है। इसे जाग्रत करने के लिए व्यक्ति को कंठ पर ध्यान केंद्रित कर मूल मन्त्र ‘हं’ का उच्चारण करना चहिये। इसके जाग्रत होने से व्यक्ति अपनी वाणी को सिद्ध कर सकता है। इस चक्र के जाग्रत होने से संगीत विद्या सिद्ध होती है, मस्तिष्क अधिक क्रियाशील हो जाता है और सोचने समझने की शक्ति बेहतर हो जाती है।
आज्ञा चक्र
आज्ञा चक्र भ्रू मध्य अर्थात दोनों आंखों के बीच में केंद्रित होता है। इस चक्र को जाग्रत करने के लिए व्यक्ति को मंत्र ‘ॐ’ का जाप करना चाहिए। इसके जाग्रत होने से इंसान को आत्म ज्ञान प्राप्त होता है।
सहस्रार चक्र
सहस्रार चक्र व्यक्ति के मष्तिष्क के मध्य भाग में स्थित होता है। बहुत कम लोग होते हैं जो इस चक्र को जाग्रत कर पाते हैं, क्योंकि इसे जाग्रत करना बहुत ही मुश्किल काम है। इस चक्र को जाग्रत कर व्यक्ति परम आनंद को प्राप्त करता है और सुख-दुःख का उस पर कोई असर नहीं होता है।
नोट: अगर आप भी इन कुंडलिनी चक्र को जाग्रत करना चाहते है तो पहले किसी योग विशेषज्ञ से परामर्श करें।
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