कोलोरेक्टल कैंसर से चिकित्सा

कोलोरेक्टल कैंसर के मरीज का उपचार कई कारकों पर निर्भर होता है, जिसमें इसका आकार और स्थान, कैन्सर की स्टेज़, यह दोबारा हुआ है या नहीं, मरीज की वर्तमान स्थिति एवं अवस्था आदि शामिल होते हैं। आइए कोलोरेक्‍टल कैंसर की चिकित्‍सा के बारे में जानें।
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कोलोरेक्टल कैंसर से चिकित्सा


कोलोरेक्टल कैंसर को पेट का कैंसर या बड़ी आंत्र के कैंसर भी कहा जाता है, इसमें बृहदान्त्र, मलाशय और एपेंडिक्स में होने वाली कैंसर वृद्धि भी शामिल है।

मरीज का उपचार कई कारकों पर निर्भर होता है, जिसमें इसका आकार और स्थान, कैंसर की स्टेज़, यह दोबारा हुआ है या नहीं, मरीज की वर्तमान स्थिति एवं अवस्था आदि शामिल होते हैं।

एक अच्छा विशेषज्ञ मरीज को सभी उपलब्ध उपचार के विकल्प बताता है। उपचार के लिए कई विधियां उपलब्ध हैं, इनमें सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, और टारगेटेड थैरेपी शामिल हैं।

cancer treatment

कोलोरेक्‍टल कैंसर की चिकित्सा के लिए प्राथमिक विधि है सर्जरी। सर्जरी के बाद आप कीमोथेरेपी या रेडियेशन थेरेपी ले सकते हैं। सर्जरी की सीमा और सर्जरी की आवश्यकता बीमारी की स्थिति पर निर्भर करती है और इस बात पर भी निर्भर करती है कि आपका कैंसर कोलन का है या रेक्टम का। रेक्टल कैंसर की कुछ स्थितियों में रेक्टम के निकाले जाने के बाद मरीज़ को कीमोथेरेपी और रेडियेशन थेरेपी दी जाती है। आपरेशन के दौरान कैंसर की क्या स्थिति पायी गयी आगे की चिकित्सा इस बात पर निर्भर करती है।


कोलन के कैंसर की अलग–अलग चरण स्टेज है ड्यू‍क ऐस्टर कोलर, एजेसी और टी एन एम स्टेज की चिकित्सा के साथ दी जाती है :

स्टेज 0

इस स्टेज में कैंसर कोलन की आंतरिक सतह पर या रेक्ट‍ल लाइनिंग पर होता है। ऐसे में पालिप या कैंसर को निकालने के लिए समय–समय पर टेस्‍ट और जांच की सलाह दी जाती है।

 

स्टेज 1

कैंसर रेक्टम की आतंरिक दीवार पर या कोलन की आंतरिक परत में बढ़ जाता है, लेकिन यह कोलन की दीवार नहीं तोड़ता। सामान्यत: सर्जरी के बाद किसी और प्रकार के चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती।

 

स्टेज 2 

कैंसर पूरी तरह से कोलन और रेक्टल दीवार पर फैल जाता है, लेकिन यह आस–पास की लिम्फ नोड्स को प्रभावित नहीं करता। ऐसी स्थिति में सर्जरी के बाद कीमोथेरेपी दी जाती है। रेक्टल कैंसर से बचाव के लिए सर्जरी के बाद कीमोथेरेपी और रेडियेशन दिया जाता है।

 

स्टेज 3 

इस स्‍टेज पर कैंसर आसपास के लिम्फ नोड्स में भी फैल चुका होता है, लेकिन शरीर के दूसरे भागों में नहीं फैलता है। कोलन कैंसर से बचने के लिए कीमोथेरेपी दी जाती है और रेक्टल कैंसर से बचाव के लिए सर्जरी के बाद और पहले रेडियेशन और कीमोथेरेपी दी जाती है।

 

स्टेज 4

इस स्टेज में कैंसर शरीर के दूसरे अंग में भी फैल चुका होता है मुख्यत: जिगर या फेफड़ों में। सर्जरी के बाद चिकित्सा के लिए कीमोथेरेपी और रेडीयेशन थेरेपी दोनों दी जाती हैं। बढ़े हुए कैंसर के कारण रेक्टम ब्लाक हो जाता है। कभी–कभी कैंसर को पूरी तरह से उस जगह से निकालना होता है जहां से इसके फैलने की सम्भावना रहती है।

Treatment of cancer


कोलन कैंसर में सर्जरी के द्वारा कैंसर से प्रभावित क्षेत्र को और लिम्फ नोड्स के आसपास के कुछ सामान्य सेल्स को निकाल दिया जाता है। कोलन के दो छोर को दोबारा जोड़ा जाता है, जिससे कि कोलन ठीक प्रकार से काम कर सके। कभी–कभी शुरुआती कैंसर को कोलनोस्कोपी के सहारे निकाल दिया जाता है। वे लोग जिनके जीवन में पहले कभी कोलन कैंसर की सर्जरी हुई है, उन्हें कोलोस्टोमी कराने की आवश्यकता नहीं होती। कोलनोस्कोपी में पेट में एक सुराग किया जाता है और कोलन को मल त्याग के लिए एक नया मार्ग दिखाया जाता है। कैंसर के सेल्स को निकालने की यह प्रक्रिया अस्थाई रूप से या आपात सर्जरी के रूप में की जाती है।

आपरेशन के बाद स्वस्थ होने का समय बहुत से कारणों पर निर्भर करता है जैसे कि व्यक्ति की उम्र, स्वास्‍थ्‍य और सर्जरी की स्थिति।

रेक्टल कैंसर की स्थिति में बीमारी की स्टेज को देखते हुए कीमोथेरेपी और रेडियेशन थेरेपी के साथ सर्जरी की जाती है। कीमोथेरेपी और रेडियेशन सर्जरी से पहले और बाद में की जाती है। रेक्टल कैंसर में इस्तेमाल की जाने वाली सर्जिकल प्रक्रिया कैंसर के स्थान और स्टेज पर निर्भर करती है। वो हैं :

  • पालीपेक्टामी : इस प्रक्रिया के दौरान उन पालिप को निकाला जाता है जो कि ट्यूमर की जीरो स्टेज में होता हैं।
  • लोकल एक्सीज़न : इस प्रक्रिया के दौरान रेक्टम के आंतरिक सतह से बाहरी कैंसर के सेल्स को और आसपास के टिश्यूज़ को निकाल दिया जाता है और एनल कैनाल का प्रयोग किया जाता है।
  • लो एन्टेरियर रीसेक्शन : अधिकतर रेक्ट‍ल कैंसर की स्थिति में इस प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसका प्रयोग सिर्फ उस स्थिति में नहीं होता जबकि ट्यूमर एनल स्फिंकटर के पास हो। कोलन और रेक्टम को दोबारा जोड़ दिया जाता है और ऐसे में कोलोस्टोमी का प्रयोग नहीं होता है।

 

 

 

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