अस्थमा यानी दमा एक गंभीर बीमारी है, जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है। ये श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। इस बीमारी में इन नलिकाओं के भीतर सूजन हो जाती है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देता है और किसी भी बेचैन करने वाली चीज के स्पर्श से यह तीखी प्रतिक्रिया करता है। जब नलिकाएं प्रतिक्रिया करती हैं, तो उनमें संकुचन होता है और उस स्थिति में फेफड़े में हवा की कम मात्रा जाती है। इससे खांसी, नाक बजना, छाती का कड़ा होना, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ आदि जैसे लक्षण पैदा होते हैं।
अस्थमा को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। लेकिन इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है, ताकि इसका मरीज सामान्य जीवन व्यतीत कर सके। अस्थमा का दौरा पड़ने से श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती है। इससे मरीज की मौत भी हो सकती है।
अस्थमा के लक्षण
अस्थमा दो प्रकार से होता है। अस्थमा का धीरे-धीरे उभरना या एकाएक भड़कना। जब अस्थमा एकाएक भड़कता है तो उससे पहले खाँसी का दौरा होता है, किंतु जब अस्थमा धीरे-धीरे उभरता है तो उससे पहले आमतौर पर श्वास प्रणाली में संक्रमण हो जाया करता है। अस्थमा का दौरा जब तेज होता है तो दिल की धड़कन और साँस लेने की रफ्तार दोनों बढ़ जाती हैं तथा रोगी बेचैन व थका हुआ महसूस करता है। उसे खाँसी आ सकती है, सीने में जकड़न महसूस हो सकती है, बहुत अधिक पसीना आ सकता है और उलटी भी हो सकती है। दमे के दौरे के समय सीने से आनेवाली साँय-साँय की आवाज तंग श्वास नलियों के भीतर से हवा बाहर निकलने के कारण आती है। अस्थमा के सभी रोगियों को रात के समय, खासकर सोते हुए, ज्यादा कठिनाई महसूस होती है।
अस्थमा का इलाज डॉक्टर की पूर्ण देख-रेख में किया जाना चाहिए। इसका इलाज कई बार लंबा चलता है। कुछ दवाएं स्थायी रूप से लेनी पड़ती हैं और कुछ अस्थमा के दौरे आने पर, या फिर दौरों की रोकथाम के लिए।
ब्रांकोडायलेटर
ब्रांकोडायलेटर वायु-मार्ग के आसपास कि मांस-पेशियों को आराम देता है, हवा के प्रभाव में सुधार लाता है। आमतौर पर इसे सांस के द्वारा लिया जाता है। यह श्वसन यंत्र के द्वारा साँस में जा सकता है या नेबूलाइजर के साथ लिया जा सकता है। यह अलग अलग नाम और ब्रांड्स के नाम से बेच जाता है। सांस संबंधी हल्की समस्या होने पर इसका उपयोग किया जाता है। अगर अस्थमा का दौरा पड़ता है तो इसे लेने से बहुत ज्यादा लाभ नहीं होता। क्योंकि ये काम शुरू करने में लंबा समय लेते हैं। इसका उपयोग अन्य दवाओं के साथ किया जाना चाहिए।
सूजन कम करने की दवाएं
एंटी-इनफ्लेमेटरी दवाएं दमा के दौरे को रोकने के लिए नियमित तौर पर ली जाती हैं। ये दवाएं सूजन को कम करती हैं और बलगम का बनना कम होता है तथा वायु-मार्ग की मांस-पेशियों की जकड़न भी कम होती है। वे लोग जिन्हें सप्ताह में दो बार दमा के दौरे आते हैं, उन्हें यह दवाएं लेनी चाहिएं। कोर्टीकोसटर दवा हल्के और गंभीर दौरों को रोक सकती है। कुछ ऐसी दवाएं हैं जो दौरा आने से पहले, स्थिति समझ आने पर ले लेनी चाहिए। जैसे किसी जानवर के संपर्क में आने से या व्यायाम करने के बाद। क्रोमोलीन सोडइम और नेडोक्रोमिल दौरा आने से पहले खा लेने से दौरा नहीं आता। लेकोट्रीईन दवा भी सूजन को कम करने में मदद कर सकती है।
डॉक्टर कोर्टीकोस्टेरायड दवा भी देते हैं जैसे प्रेडीनिसोन। दमा के भड़कने पर कोर्टीकोस्टेरायड एक या दो सप्ताह तक आहार के साथ लिया जाता है। कोर्टीकोस्टेरायड के साथ दूसरी दवाएं भी ली जा सकती हैं।
ओमालीजम्ब (क्सोलैर) सूजन को रोकती है। इससे गंभीर ऐलर्जी काबू मे आती है। कुछ लोगों को इंजेक्शन के द्वारा भी इसकी दवाएं दी जाती हैं। ये इंजेक्शन महीने में एक बार लगाया जाता है। ध्यान रहे, इंजेक्शन डॉक्टर या अनुभवी के द्वारा दी दिया जाना चाहिए। क्योंकि इससे रिऐक्शन का खतरा रहता है, और जान तक जा सकती है। अस्थमा के रोगियों को इम्यूनो थेरेपी से लाभ होता है। यह काफी प्रभावी है। यह उन लक्षणों को हल्का करती है जिससे एलर्जी होती है।
इन सबके बावजूद, अगर मरीज की अवस्था गंभीर है तो उसे तुरंत अस्पताल लेकर जाना चाहिए। अस्पताल में ऑक्सीजन दिए जाने से मरीज को आराम मिलता है।
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