सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी की एक प्रेरणास्पद कविता तो सबने सुनी है कि || कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती || संसार में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपनी असीम इच्छाशक्ति से ऐसे कामों को अंजाम दिया जो औरो के लिए लगभग असंभव था। ऐसे ही एक शख्स थे केरोली टेकक्स। केरोली, हंगरी आर्मी की सेना में सैनिक और एक बेहतरीन पिस्टल शूटर थे। शूटर होने के साथ-साथ एक बेहद ही महान देशभक्त बनकर उभरे। बात 1938 की है, जब हंगरी ओलिंपिक पदकों के लिए तरसता था। ऐसे में हंगरी के नेशनल गेम्स के दौरान एक आर्मी मेन ने गोल्ड जीत कर पूरे देश की आशाओ को जैसे उड़न दे दी थी। उनके प्रदर्शन को देखते हुए पूरे हंगरी वासियों को विश्वास हो गया था कि 1940 के ओलंपिक्स में केरोली देश के लिए गोल्ड मैडल जीतेगा।
ऐसे में किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, सेना में प्रशिक्षण के दौरान केरोली के सीधे हाथ में ग्रेनेड फट गया और उसका सीधा हाथ (जिससे वो निशाना साधता था) काटना पड़ गया। जब खबर अखबारों में छपी तो हंगरी में मातम सा छा गया। जब करौली को इस बात का एहसास हुआ तो उसने दृढ इच्छा शक्ति दिखाई और अपने उलटे हाथ से निशाने बाजी का अभ्यास शुरू किया। काफी अरसे के बाद 1939 में होने वाले हंगरी के नेशनल गेम में वो अचानक से लोगों के सामने आता है और गेम्स में भाग लेने की बात कहकर सबको आश्चर्य में डाल देता है। उसे गेम्स में भाग लेने की इजाजत मिली और उसने पिस्टल शूटिंग में भाग लेकर चमत्कार करते हुए गोल्ड मैडल जीत लिया।
लोग अचंभित रहे जाते है, आखिर ये कैसे हो गया। जिस हाथ से वो एक साल पहले तक लिख भी नहीं सकता था, उसे उसने इतना ट्रेन्ड कैसे कर लिया की वो गोल्ड मैडल जीत गया। लोगों के लिए ये एक मिरेकल था केरोली को देश विदेश में खूब सम्मान मिला। पूरे हंगरी को फिर विश्वास हो गया की 1940 के ओलंपिक्स में पिस्टल शूटिंग का गोल्ड मैडल केरोली ही जीतेगा। पर वक़्त ने फिर केरोली के साथ खेल खेला और 1940 के ओलंपिक्स वर्ल्ड वार के कारण कैंसिल हो गए। लेकिन इस पर करौली ने हार नही मानी और 1948 ही नही 1952 के ओलिंपिक में गोल्ड पर निशाना लगा अपने देश का गौरव बढ़ाया। उस इवेंट में लगातार दो बार गोल्ड जीत के केरोली ने इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरो में लिखवा लिया। केरोली ने असीम इच्छासक्ति से वो कर के दिखाया जिसके बारे में हम और आप सोच भी नहीं सकते।
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Image Source : nla.gov.au
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