नवजात शिशु के संतुलित शारीरिक और मानसिक विकास के लिए मां के दूध को सर्वोत्तम आहार माना गया है। फिर भी ब्रेस्ट फीडिंग और लैक्टेशन पीरियड के बारे में कई तरह की धारणाएं प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ निराधार होती हैं तो कुछ में सच्चाई भी होती है। दिल्ली स्थित फोर्टिस ला फाम हॉस्पिटल की सीनियर गाइनी कंसल्टेंट डॉ. मधु गोयल यहां बता रही हैं कुछ ऐसी ही धारणाओं और उनसे जुड़े सच के बारे में।
धारणा : सिज़ेरियन डिलिवरी के बाद दी जाने वाली दवाओं के साइड इफेक्ट से मां के शरीर में दूध बनने की प्रक्रिया रुक जाती है।
सच : यह धारणा बिलकुल गलत है। सिज़ेरियन डिलिवरी का लैक्टेशन से कोई संबंध नहीं है। हां, ऑपरेशन के बाद अगर कोई स्त्री पौष्टिक आहार न ले और खानपान के मामले में लापरवाही बरते तो उसके साथ ऐसी दिक्कत आ सकती है।
धारणा : मां के पहले दूध में गंदगी होती है। इसलिए जन्म के तुरंत बाद शिशु को फीड नहीं कराना चाहिए।
सच : डिलिवरी के थोड़ी ही देर बाद मां के स्तनों से पीले रंग के गाढ़े चिपचिपे पदार्थ का स्राव होता है, जिसमें कोलोस्ट्रम नामक ऐसा तत्व होता है, जो शिशु के इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाता है। इससे ही ताउम्र उसका शरीर हर तरह के इन्फेक्शन से लडऩे में सक्षम होता है। इसीलिए डिलिवरी के बाद, शुरुआती कुछ घंटों को गोल्डन आवर कहा जाता है। कोशिश यही होनी चाहिए कि शिशु को यथाशीघ्र मां का दूध मिल जाए।
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धारणा : लेट कर फीड कराने से शिशु को इयर इन्फेक्शन हो सकता है।
सच : यह बात आंशिक रूप से सच है क्योंकि लेट कर फीड कराते समय ज्य़ादातर स्त्रियां शिशु के सिर की पोजि़शन का ध्यान नहीं रखतीं, जिससे उसके कान में दूध चला जाता है और इसी वजह उसे इयर इन्फेक्शन हो सकता है। ऐसी समस्या से बचने के लिए अपने एक हाथ से शिशु का सिर हलका सा ऊपर की ओर उठाएं। इसके अलावा फीड देने के बाद उसे कंधे पर सीधा लिटा कर, पीठ थपथपाते हुए डकार दिलाना न भूलें।
धारणा : डिलिवरी के बाद दूध, जीरा और अजवायन जैसी चीज़ों का सेवन पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए।
सच : यह बात बिलकुल सच है कि कुछ खास चीज़ों के सेवन से मां के शरीर में दूध बनने की क्षमता बढ़ जाती है। ऐसे खाद्य पदार्थों को ग्लैक्टोगॉग्स कहा जाता है। इसीलिए पुराने ज़माने से ही डिलिवरी के बाद स्त्रियों को जीरे का पाउडर या हलवा खिलाने की परंपरा रही है। प्रसव के बाद स्त्रियों के पेट में गैस बनने की समस्या बहुत ज्य़ादा होती है और उसी से बचाव के लिए उन्हें अजवायन का पानी पिलाया जाता है।
धारणा : मां के खानपान से शिशु की सेहत प्रभावित होती है।
सच : यह बात पूरी तरह सच है। मां के भोजन में मौज़ूद सभी आवश्यक तत्व दूध के माध्यम से शिशु के शरीर में जाते हैं। इसीलिए लैक्टेशन पीरियड के दौरान स्त्रियों को ऐसा पौष्टिक आहार लेने की सलाह दी जाती है, जिसमें कैल्शियम, प्रोटीन, आयरन, विटमिंस और मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में मौज़ूद हों। हां, जिन चीज़ों में प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्य़ादा होती है, उन्हें पचाना थोड़ा मुश्किल होता है। इसलिए राजमा, छोले, मशरूम और नॉनवेज का अधिक मात्रा में सेवन करने से मां के साथ शिशु को भी पेटदर्द और पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
धारणा : बुखार या सर्दी-ज़ुकाम की स्थिति में शिशु के लिए मां का दूध नुकसानदेह साबित होता है। लैक्टेशन पीरियड में किसी भी तरह की दवा का सेवन नहीं करना चाहिए।
सच : यह धारणा बिलकुल गलत है। कोई भी स्वास्थ्य समस्या होने पर उसे दूर करने के लिए दवाओं का सेवन ज़रूरी है। इस दौरान डॉक्टर की सलाह के बिना अपने मन से कोई भी दवा न लें। जहां तक सर्दी-ज़ु$काम से होने वाले इन्फेक्शन का सवाल है तो ब्रेस्ट फीडिंग से इसका कोई सीधा संबंध नहीं है बल्कि ज्य़ादातर समय मां के साथ रहने की वजह से शिशु को ऐसी समस्या होती है। इसलिए मामूली रूप से बीमार होने पर शिशु को फीड कराना पूर्णत: सुरक्षित है।
धारणा : ब्रेस्ट फीडिंग से दोबारा कंसीव करने की आशंका नहीं रहती।
सच : यह बात आंशिक रूप से सच है। इसी वजह से लैक्टेशन पीरियड के दौरान ज्य़ादातर स्त्रियां परिवार-नियोजन के साधनों का इस्तेमाल बंद कर देती हैं। यह बात सच है कि इस दौरान स्त्री की ओवरी में एग्स नहीं बनते क्योंकि डिलिवरी के बाद कुछ महीनों तक स्त्रियों के पीरियड्स में भी अनियमितता रहती है। इसलिए अगर कोई मां शिशु को अपना दूध पिला रही है तो उसके कंसीव करने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है पर यह बात सभी स्त्रियों पर समान रूप से लागू नहीं होती। इसलिए लैक्टेशन पीरियड के दौरान भी परिवार नियोजन के साधनों का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।
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धारणा : दूध बनने की मात्रा फीडिंग की आवृत्ति पर निर्भर करती है।
सच : यह मानव शरीर का स्वाभाविक मेकैनिज्म है कि उसमें ज़रूरत के अनुसार आवश्यक तत्वों की आपूर्ति स्वत: घटती-बढ़ती रहती है। इसीलिए जब मां नियमित रूप से शिशु को ब्रेस्ट फीड कराती है तो शरीर में दूध बनने की प्रक्रिया भी तेज़ी से होती है। मेडिकल साइंस की भाषा में इसे सकिंग रिफ्लेक्स कहा जाता है। इसी वजह से पुराने समय में भी अकसर ऐसा कहा जाता था कि शिशु को कुछ घंटों के अंतराल पर नियमित फीड देने से मां के स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ती है। इसी तरह यह बात भी सच है कि शिशु की ज़रूरत के अनुसार मां का शरीर तुरंत अपना रिस्पॉन्स देता है, जिसे लेट डाउन रिफ्लेक्स कहा जाता है। इसी वजह से जब शिशु को भूख लगती है तो मां के शरीर में दूध बनने की प्रक्रिया अपने आप तेज़ हो जाती है। इसके विपरीत जब मां शिशु को फीड कराना बंद कर देती है तो दूध बनने की प्रक्रिया अपने आप रुक जाती है।
धारणा : मां का दूध शिशु के ब्रेन के लिए फायदेमंद होता है।
सच : यह बात बिलकुल सच है। मां के दूध में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शिशु के मानसिक विकास में मददगार होते हैं। इसके अलावा वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से भी यह तथ्य सामने आया है कि जिन बच्चों को ब्रेस्ट फीड कराया जाता है, भविष्य में मां के साथ उनका भावनात्मक जुड़ाव ज्य़ादा मज़बूत होता है और वे आत्मविश्वास से परिपूर्ण होते हैं।
धारणा : शिशु को छह माह तक केवल मां का दूध ही देना चाहिए।
सच : आमतौर पर डॉक्टर्स द्वारा यह सलाह दी जाती है कि शुरुआती छह महीने तक शिशु को केवल मां का ही दूध देना चाहिए। यह बात बिलकुल सच है कि मां के दूध में शिशु के लिए सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मौज़ूद होते हैं। इसलिए शुरुआती छह महीने तक उसे पानी भी देने की ज़रूरत नहीं होती। हां, किसी वजह से अगर मां को ऐसा लगता है कि उसके दूध से शिशु का पेट नहीं भर पा रहा तो वह उसे ऊपर से गाय का दूध या किसी अच्छी कंपनी का डिब्बाबंद बेबी फूड दे सकती है।
धारणा : शिशु को फीड न कराने वाली स्त्रियों में ब्रेस्ट कैंसर की आशंका बढ़ जाती है।
सच : यह सच है कि शिशु को फीड कराने वाली स्त्रियों में ब्रेस्ट कैंसर की आशंका कम होती है पर यह कहना गलत होगा कि शिशु को दूध न पिलाने वाली स्त्रियों को ब्रेस्ट कैंसर हो जाता है।
धारणा : शिशु को फीड कराने से ब्रेस्ट की शेप ख्रराब हो जाती है।
सच : यह बात पूरी तरह से सच नहीं है। सही फिटिंग की ब्रा पहनने से ऐसी कोई समस्या नहीं होती। अगर किसी स्त्री को ऐसी समस्या हो, तब भी एक्सरसाइज़ की मदद से उसे आसानी से दूर किया जा सकता है।
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