क्या आप जानते हैं कि आपके पसंदीदा नाश्ते में शुगर की मात्रा कितनी है? आपका जवाब होगा कि हां हम अपने नाश्ते के पैकेट के ऊपर, साइड में या नीचे पढ़ कर इसकी मात्रा की जानकारी प्राप्त कर लेंगे। लेकिन जनाब आपको बता दें कि ऐसी कोई जानकारी आपको इन पैकेजिंग्स पर नहीं मिलेगी। क्योंकि यह जानकारी छापी ही नहीं जाती है। दरअसल वर्तमान लेबलिंग मानकों के अनुसार निर्माता उत्पाद निर्माण के दौरान इस्तेमाल मीठे की मात्रा को पैकेट पर छापने के लिए बाध्य नहीं है। लेकिन यह सब जल्द ही बदल सकता है, और एक बड़े पैमाने पर इस नए प्रस्ताव के लिए एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) को धन्यवाद देना चाहिए।
2014 के शुरुआत में एजेंसी ने पोषण तथ्यों लेबल के लिए प्रस्तावित परिवर्तनों की एक सरणी दस्तावेज जारी किया। इसके अनुसार खाद्य निर्माताओं को शुगर के साथ-साथ टोटल शुगर व एडिड शुगर (ऐसी कोई भी शुगर जो प्राकृतिक रूप से खाद्य पदार्थ में उत्तपन्न न हुई हो) को लिस्ट करना होगा। यह शर्त बड़े खाद्य निर्माता के मुंह में एक कड़वा स्वाद जरूर छोड़ गयी है।
अब, एफडीए इस मुद्दे पर 18,000 से अधिक सार्वजनिक टिप्पणियों की समीक्षा कर रहा है। डॉक्टर व संस्थाएं जैसे, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन आदि इसमें उनका समर्थन कर रहे हैं। कई खाद्य उत्पादक संगठनों (दी अमेरिकन बेवरीज एसोसिएशन एंड शुगर एसोसिएशन आदि) ने इसकी अवधि में विस्तार के लिए अपील प्रस्तुत की है, हालांकि एफडीए ने इसे रद्द कर दिया है।
हम सभी जानते हैं कि बहुत अधिक चीनी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनती है, तो फिर इतनी बहस क्यों?
इसे समझने के लिए सबसे पहले, इससे जुड़े इतिहास को जानना होगा। पहले ही खाद्य निर्माता ट्रांस फैट को लेकर विवद में फंस चुके थे। 2006 से, जबसे एफडीए ने ट्रांस वसा लेबलिंग को अनिवार्य किया है, अवयव डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से गायब हो गये हैं। क्योंकि कुछ प्रोडक्ट उनके हाई शुगर कोंटेंट के कारण उपभोक्ताओं के बीच कम लोकप्रीय हो सकते हैं और उनकी बिक्री में कमी आ सकती है।
दूसरी बात यह कि, यहां एक वैज्ञानिक अपूर्णता है, क्योंकि अभी तक कोई निश्चित अनुसंधान नहीं हुआ है जो यह दर्शाता हो कि एडिड शुगर, प्राकृतिक शुगर की तुलना में शरीर के लिए अधिक हानिकारक होती है। एफडीए लेखकों ने कहा कि वे स्वाभाविक शुगर और एडिड शुगर के बीच के अंतर पर काम कर रहे हैं। लेकिन यदि सभी शुगर समान हैं तो इनकी गणनाओं को लेकर परेशानी कैसी?
इसलिए उपभोक्ताओं को ये पूरा अधिकार है कि वे जान पाएं कि उनके द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे खाद्य पदार्थों में सभी प्रकार के शुगर की सही-सही मात्रा क्या है।
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