कहते हैं दांत जैसी दूसरी कोई चक्की नहीं होती। ये न केवल आपको खूबसूरत बनाते हैं बल्कि इनके बिना आपकी जिंदगी भी बहुत मुश्किल हो जाती है। इतना सब जानते हुए भी हममें से अधिकतर लोग अपने दांतों के प्रति सजग नहीं होते और आखिर में उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आज हम आपको दांतों से जुड़ी ऐसी बीमारियों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आपका जानना बहुत जरूरी है।
पायरिया
पायरिया एक मसूड़ों की बीमारी है। देखा जाए तो पायरिया एक खतरनाक रोग है। इस रोग से बचने के लिए हमें अपने दांतों और मसूड़ों की अच्छी तरह सफाई करनी चाहिए। डॉक्टर रुचिर कहते हैं कि पायरिया के मरीजों को अपने डॉक्टर की बात को गंभीरता से लेना चाहिए। दिन में 2 बार ब्रश और रात को सोने से पहले अच्छी तरह कुल्ला करना चाहिए। इससे हमारे मसूड़े और दांत साफ रहते हैं। इसके अलावा रेगुलर चेकअप कराना बहुत जरूरी है।
मसूड़ों से खून आना, मुंह से बदबू आना, कोई चीज को चबाते वक्त दांतों का हिलना जैसा महसूस होना या दांतों की कमजोरी महसूस करना पायरिया की शुरुआती निशानी है। ऐसे लक्षण महसूस होने पर जल्द से जल्द हमें दंत चिकित्सक से मिलना चाहिए और इलाज कराना चाहिए। मिश्रा कहते हैं कि पायरिया के शुरुआती लक्षण देखते ही इसका इलाज करा लेना चाहिए क्योंकि पायरिया जब हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो हम इससे बचने में हमें सफलता बढ़ी मुश्किल से मिलती है।
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दांतों में टारटर
टारटार (जिसे कैल्कलस भी कहा जाता है), एक तरह का प्लेक हीं होता है जो दांतों की सतह पर जमा होता है और बहुत सख्त होता है। इसका निर्माण गम लाइन के पास या उसके नीचे हो सकता है? मसूड़ों के उत्तकों (टिश्यूज़) को परेशान कर सकता है और ज्यादा से ज्यादा प्लेक जमने को प्रेरित कर सकता है। यह कैविटीज़ और मसूड़ों के रोग जैसी अन्य गंभीर रोगों का कारण भी बनता है। दांत और मसूड़ों को रोगग्रस्त करने के अलावा टारटार कास्मेटिक समस्याएं भी पैदा करता है। (चाय-काफी या ध्रूमपान करने पर दांत दागदार हो जाते हैं) जिससे दांतों की सुन्दरता नष्ट होती है। अतः अगर आपको चाय–काफी पीना पसंद हो तो टारटार को कभी पनपने न दें।
दंत क्षरण
दांतो से जुड़ा एक और रोग है जिसमें जीवाणु के द्वारा की गई जैविक क्रियाएं दांतों को क्षतिग्रस्त कर देती है, जिसे दंत छिद्र भी कहते है। दंत छिद्र दो जीवाणुओं के कारण होता है पहला स्ट्रेप्टोकॉकस म्युटान्स और दूसरा लैक्टोबैसिलस। दंत क्षय दांतों में क्षारिय अम्ल के कारण होता है, दंत क्षय के अध्ययन को क्षयविज्ञान कहते हैं।
प्लेक की समस्या
प्लेक हरेक की दांतों में होता है। आप जैसे ही अपने दांत साफ करके हटते हैं, प्लेक का बनना शुरू हो जाता है। मुश्किल से इसे पूरी तरह बनने में एक घंटे भी नहीं लगते होंगे और इसे रोजाना अच्छी तरह से साफ नहीं किया गया तो फिर इसे कठोर टारटार के रूप में तब्दील होने में ज्यादा देर नहीं लगेगा। जैसे-जैसे इसमें बैक्टीरिया की बढ़ोतरी होती जाती है, प्लेक भी बढ़ता चला जाता है। कैविटी और मसूडों के रोगों के लिए इसे हीं प्रमुख माना जाता है। प्लेक में मौजूद बैक्टीरिया शुगर (कार्बोहाइड्रेट) के रूप में परिवर्तित हो जाता है और खाद्य पदार्थ के साथ मिश्रित होकर अम्ल का निर्माण करता है।
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मसूड़ों की सड़न
मसूड़ों और दांतों की अगर सही प्रकार सफाई न की जाए, तो उनमें सड़न और बीमारी के कारण सांसों में बदबू हो सकती है। कई बार खराब पेट या मुंह की लार का गाढ़ा होना भी इसकी वजह होती है। प्याज और लहसुन आदि खाने से भी मुंह से बदबू आने लगती है। इससे बचने के लिए लौंग, इलायची चबाने से इससे छुटकारा मिल जाता है। थोड़ी देर तक शुगर फ्री च्यूइंगगम चबाने से मुंह की बदबू के अलावा दांतों में फंसा कचरा निकल जाता है और मसाज भी हो जाती है। इसके लिए बाजार में माउथवॉश भी मिलते हैं।
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