दूध में जो प्रोटीन पाया जाता है, उसका लगभग एक तिहाई भाग बीटा केसीन का होता है, जो हाई क्वालिटी का प्रोटीन है। दूध में आम तौर पर दो प्रकार का बीटा केसीन ए-1 और ए-2 पाया जाता है। डेयरी की गायों में लगभग 15 प्रकार के बीटा केसीन की जानकारी हासिल हो चुकी है। इनमें ए-1 और ए-2 बीटा केसीन प्रमुख हैं।
कितना नुकसानदेह और फायदेमंद
अनेक लोगों की दलील है कि ए-1 बीटा केसीनयुक्त दूध आंतों में सूजन पैदा कर सकता है। इससे पाचन संस्थान की कार्य प्रणाली पर खराब असर पड़ता है, लेकिन वैज्ञानिक शोध-अध्ययनों से इस तरह की बातों की पुष्टि नहींहुई है। यह सही है कि जो लोग ए-1 बीटा केसीनयुक्त दूध पचाने में एलर्जी या किसी अन्य कारण से समस्या महसूस करते हैं, वे दही, मट्ठा आदि खाद्य पदार्थ ले सकते हैं।
कैसे करें पहचान
दूध को देखकर इसके ए-1 और ए-2 बीटा केसीन युक्त होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता परंतु पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) आधारित परीक्षण द्वारा इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। इस विधि में दूध के नमूनों से डीएनए या डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड निकाला जाता है तथा ए-1 या ए-2 से संबंधित जीन की पहचान की जाती है। यह परीक्षण महंगा होने के कारण आसानी से सुलभ नहीं है। जब तक देश में ए-1 और ए-2 दूध को प्रमाणित करने के लिए कोई संस्था नहीं बनती, तब तक लोग इस विषय में जागरूक नहीं हो सकते।
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नहीं हुआ कोई अध्ययन
कुछ लोग कहते हैं कि ए1 दूध पीने से बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज होने की आशंकाएं बढ़ सकती हैं। फिलहाल किसी वैज्ञानिक संस्थान ने मनुष्य में ए-1 बीटा केसीन के डायबिटीज पर पड़ने वाले प्रभाव का कोई अध्ययन नहीं किया गया है। केवल एक परीक्षण किया गया है जिसका निष्कर्ष है कि ए-1 बीटा केसीन के कारण हृदय की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ए-1 और ए-2 बीटा केसीन का व्यक्ति के हृदय और धमनियों पर लगभग एक जैसा प्रभाव ही देखा गया है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि ए-1 बीटा केसीन के सेवन से हृदय रोग होने का खतरा होता है। बहरहाल अधिकतर अध्ययनों में निकले परिणामों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इस दिशा में फिलहाल पर्याप्त अनुसंधान करने की आवश्यकता है ताकि किसी तर्कसंगत परिणाम तक पहुंचा जा सके।
बात अपने देश की
देश की भैंसों की लगभग शत-प्रतिशत नस्लें केवल ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध देती हैं। इसी तरह देश में लगभग 92 फीसदी गाएं भी ए 2 दूध दे रही हैं। इसलिए भारत में ए 1 और ए 2 को लेकर कोई विवाद नहीं है। दिल्ली-एनसीआर की चीफ न्यूट्रीशनिस्ट शुभदा भनौत के अनुसार फिलहाल मुझे इस बात बात की जानकारी नहीं है कि सरकार ने ए1 और ए 2 दूध के मामले को संज्ञान में लिया है या नहीं। इस संदर्भ में सरकार ने फिलहाल कोई बड़े कदम नहीं उठाएं हैं, क्योंकि इस मामले ने देश में तूल ही नहीं पकड़ा है और यहां ए1 और ए2 दूध की कोई समस्या नहीं है। भारत में पाई जाने वाली होल्सटीन व जर्सी नस्लों में भी अधिकतर ए-2 बीटा केसीन के जीन ही पाए जाते हैं। इसलिए यहां पर ए-2 बीटा केसीन युक्त दूध के बाजारों की संभावना नगण्य है।
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विवाद की वजह
बीटा कैसीन एक प्रोटीन है और इसके दो प्रमुख तत्व ए 1 और ए 2 हैं। ए1 और ए 2 के मध्य सिर्फ 1 अमीनो एसिड का फर्क होता है। ए 1 दूध जब पचता(डाइजेस्ट) हैं, तब एक नुकसानदेह तत्व बनता है,जबकि ए 2 के साथ ऐसा नहीं होता।, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ए-1 दूध लेने से डायबिटीज होने का खतरा शायद बढ़ सकता है या फिर हृदय रोगों के होने का जोखिम बढ़ सकता है। इन दिनों ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका समेत कई देशों में ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध एक अलग ब्रांड के नाम से बेचा जा रहा है। यह दूध सामान्य दूध की कीमत से कुछ अधिक दाम पर बिकता है। कुछ लोग ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध को प्रमोट करने में जुटे हैं। सच्चाई तो यह है कि भारत में ए1 और ए2 दूध को लेकर कोई समस्या या विवाद नहीं है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि देशों की बात अलग है।
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