वैसे तो हेपेटाइटिस किसी भी मौसम में हो सकता है, लेकिन गर्मियों और मानसून के मौसम में जीवाणुओं के बढ़ने और प्रदूषित खानपान से हेपेटाइटिस के मामले कहीं ज्यादा बढ़ जाते हैं। इस मर्ज को कैसे नियंत्रित किया जाए और इसका इलाज क्या है, इस संदर्भ में विवेक शुक्ला ने कुछ विशेषज्ञ डॉक्टरों से की बात
पांच प्रमुख प्रकार
लिवर शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। हेपेटाइटिस के पांच प्रकार-ए,बी, सी, डी और ई होते हैं। हेपेटाइटिस ए और ई प्रदूषित खाद्य व पेय पदार्र्थों के सेवन से होता है। वहींबी और सी रक्त के जरिए होता है। जैसे रक्त व रक्त के उत्पाद जैसे प्लाज्मा में प्रदूषित र्सिंरज के इस्तेमाल से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण होना। इसी तरह संक्रमित व्यक्ति द्वारा रक्तदान करने से भी यह रोग संभव है। टैटू गुदवाना, किसी संक्रमित व्यक्ति का टूथब्रश और रेजर इस्तेमाल करना और असुरक्षित शारीरिक संपर्क से हेपेटाइटिस बी व सी होने का जोखिम बढ़ जाता है। लंबे समय तक शराब पीने की लत भी हेपेटाइटिस का कारण बन सकती है। हेपेटाइटिस डी उन मरीजों को होता है, जो पहले से ही हेपेटाइटिस बी से ग्रस्त हैं।
लक्षण को जानें
- पेट में दर्द रहना।
- पीलिया (जॉन्डिस)होना।
- भूख न लगना।
- बुखार रहना।
- उल्टियां होना।
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बचाव
- सिर्फ हेपेटाइटिस ए और बी से बचाव के लिए टीके (वैक्सीन्स) उपलब्ध हैं।
- पानी उबालकर या फिल्टर कर पिएं।
- खाद्य व पेय पदार्र्थों की स्वच्छता का ध्यान रखें।
डाइट पर दें ध्यान
- हेपेटाइटिस के रोगियों की समुचित डाइट उनकी बीमारी की स्थिति, उम्र और उनके वजन पर निर्भर करती है। इस संदर्भ में कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
- हेपेटाइटिस में रोगी को भूख नहीं लगती। अगर रोगी कुछ खाता है तो उसका हाजमा खराब हो सकता है। इसलिए रोगी को हल्का-सुपाच्य भोजन देना चाहिए, ताकि उसकी भूख धीरे-धीरे खुले। एक निश्चित अंतराल पर थोड़ी मात्रा में हल्का आहार देते रहना चाहिए, जिसे मेडिकल भाषा में ‘स्माल फ्रीक्वेंट लाइट मील’ कहते हैं।
- पीड़ित व्यक्ति को फ्राई किए गए आहार से परहेज करना चाहिए। इसके बजाय स्टीम से तैयार, रोस्ट किए गए और उबाले गए आहार को वरीयता देनी चाहिए।
- वसायुक्त खाद्य पदार्र्थों या चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्र्थों से परहेज करें या फिर इन्हें कम मात्रा में लें।
- रोगी की ऊर्जा संबंधी बढ़ी हुई जरूरतों की पूर्ति के लिए उसे समुचित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स की जरूरत होती है। इसके लिए उसे खाने के लिए रोटी दें। मरीज जितना खा सके, उसे उतना ही खाने दें। धीरे-धीरे उसकी भूख जब खुलेगी तो वह इच्छा के अनुसार रोटियों खाने लगेगा।
- मरीज को फल दें और घर में तैयार किए गए फलों का रस पिलाएं। पीड़ित व्यक्ति आलू खा सकते हैं, लेकिन तले-भुने रूप में नहीं। सब्जियों को अच्छी तरह से धोएं। मरीज मूली भी ले सकते हैं। छिली हुई सब्जियों को भी अच्छी तरह से धुलें ताकि भविष्य में कोई संक्रमण न हो सके।
- किसी भी तरह की शराब लिवर की शत्रु होती है। इसके सेवन से मर्ज बढ़ता है।
- एक निश्चित अंतराल पर रोगी को पर्याप्त मात्रा में पानी, तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स (जैसे सोडियम और पौटेशियम) देना चाहिए।
इन दोनों हेपेटाइटिस (बी और सी) की कुछ स्थितियां हो सकती हैं...
पहली स्थिति: इसमें बीमारी तो होती है, लेकिन वह स्वत: ठीक हो जाती है।
दूसरी स्थिति: हेपेटाइटिस बी और सी का वायरस लिवर में लगातार सूजन पैदा करता रहता है। यह स्थिति अगर छह माह तक चले तो इसे मेडिकल भाषा में क्रॉनिक हेपेटाइटिस कहते हैं। इस अवस्था में बीमारी का दवाओं से इलाज संभव है।
तीसरी स्थिति: बीमारी तो होती है, लेकिन तात्कालिक तौर पर मरीज उस बीमारी को महसूस नहीं करता, लेकिन अगर वायरस लिवर में बरकरार रह गए तो वे कालांतर में लिवर सिरोसिस और लिवर कैैंसर का कारण बनते हैं।
चौथी स्थिति: लिवर अचानक काम करना बंद कर देता है। इस स्थिति को मेडिकल भाषा में एक्यूट लिवर फेल्यर कहते हैं। यह स्थिति जानलेवा होती है और इसका इलाज लिवर ट्रांसप्लांट है।
हेपेटाइटिस बी कैरियर: शरीर में हेपेटाइटिस बी का संक्रमण हुआ, लेकिन वायरस लिवर को नुकसान नहीं पहुंचा रहा है, किंतु वह वायरस लिवर से बाहर भी नहीं हुआ है। इस स्थिति को मेडिकल भाषा में हेपेटाइटिस कैरियर कहते हैं।
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हेपेटाइटिस ए और ई का इलाज
हेपेटाइटिस ए और ई के इलाज की कोई सुनिश्चित दवा नहीं है। लक्षणों के आधार पर ही इन दोनों हेपेटाइटिस का इलाज किया जाता है। जैसे बुखार के लिए दवा अलग से दी जाती है और पेट दर्द के लिए अलग से। लक्षणों के प्रकट होने पर शीघ्र ही डॉक्टर से संपर्क करें। अपनी मर्जी से दवा न लें।
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