किसी स्वस्थ जवान इंसान की सिर्फ आंत में ही करीब 100 खरब बैक्टीरिया मौजूद होते हैं। ये अलग-अलग प्रकार के होते हैं और इनके हितों के बीच टकराव पैदा होने से बीमारियां उपजती हैं। लेकिन पेट के विकारों को नज़रअंदाज़ करना सेहत के लिये नुकसानदायक होता है। पिछले दो दशकों में हुए शोधों से पता चला कि पूरी तरह स्वस्थ रहने के लिए आंतों का स्वस्थ रहना बेहद जरूरी होता है। आंतों की सेहत पर जीवनशैली का जबरदस्त असर होता है। ज्यादा कैलोरी वाले जंक फूड, शराब का अधिक सेवन, रेशेदार भोजन और हरी सब्जियां न खाने से पाचन तंत्र के रोगों का खतरा बढ़ जाता है और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है। गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग, इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम, फंक्शनल डिस्पेप्सिया, मोटापा, लीवर में फैट जमना और पेप्टिक अल्सर जैसे रोग लाइफस्टाइल से जुड़े गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोगों में शामिल हैं।
अकसर तनाव में रहने से भी आपका हाजमा खराब हो सकता है। तनाव होने पर आम तौर पर एड्रिनल ग्रंथियों से एड्रेनैलिन और कॉर्टिसॉल नाम के हार्मोनों का स्राव होता है। तनाव की वजह से पूरे पाचन तंत्र में जलन होने लगती है जिससे पाचन नली में सूजन आ जाती है और इस सबका नतीजा यह होता है कि पोषक तत्वों का शरीर के काम आना कम हो जाता है।
लंबे समय तक जारी रहने पर तनाव की वजह से इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम और पेट में अल्सर जैसी पाचन संबंधी तकलीफें हो सकती हैं। जांच के लिए डॉक्टरों के पास जाने वाले रोगियों की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि गैस्ट्रोइसोफेगल रीफ्लक्स (जीईआरडी) अब पाचन संबंधी सामान्य रोग बन गया है। जीईआरडी में असल में पेट के अंदर मौजूद अम्ल यानी एसिड इसोफेगस (भोजन नली) में वापस चले जाते हैं। इससे सीने में जलन तो होती ही है, उल्टी की शिकायत भी होती है। इसके अलावा फेफड़े, कान, नाक या गले की भी कई तकलीफें आ पड़ती हैं। इसके साथ कई परेशानियां जुड़ी हैं। मसलन, इसोफेगस में छाले और संकुचन जैसी परेशानियां भी हो जाती हैं। जीईआरडी अगर लंबे समय तक रह गया तो एक नई अवस्था आ सकती है, जिसका नाम है बैरेट्स इसोफेगस और इसका अगर समय पर इलाज न किया गया तो इसोफेगस का कैंसर भी हो सकता है।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोगों के कारण
जीवन शैली इस तरह के रोग बेहिसाब शराब और सिगरेट पीने, फास्ट फूड ज्यादा खाने और काम के वक्त दफ्तर में तनावपूर्ण स्थितियां बनने से होते हैं। जेनेटिक कारण इस बारे में ताजा अध्ययनों से पता चला है कि जेनेटिक रचना में एकाएक आए किसी तरह के बदलाव के कारण पैंक्रियाइटिस और पित्ताशय की पथरी जैसे रोग अधिक होते हैं। आसपास का परिवेश और स्वच्छता साफ-सफाई की कमी से हेपेटाइटिस और तपेदिक जैसे संक्रमण होते हैं।
टॉप स्टोरीज़
टकराव पैदा होने से बीमारियां उपजती हैं। लेकिन पेट के विकारों को नज़रअंदाज़ करना सेहत के लिये नुकसानदायक होता है।
पिछले दो दशकों में हुए शोधों से पता चला कि पूरी तरह स्वस्थ रहने के लिए आंतों का स्वस्थ रहना बेहद जरूरी होता है। आंतों की सेहत पर जीवनशैली
का जबरदस्त असर होता है। ज्यादा कैलोरी वाले जंक फूड, शराब का अधिक सेवन, रेशेदार भोजन और हरी सब्जियां न खाने से पाचन तंत्र के रोगों का
खतरा बढ़ जाता है और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है। गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग, इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम, फंक्शनल डिस्पेप्सिया,
मोटापा, लीवर में फैट जमना और पेप्टिक अल्सर जैसे रोग लाइफस्टाइल से जुड़े गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोगों में शामिल हैं।
अकसर तनाव में रहने से भी आपका हाजमा खराब हो सकता है। तनाव होने पर आम तौर पर एड्रिनल ग्रंथियों से एड्रेनैलिन और कॉर्टिसॉल नाम के हार्मोनों
का स्राव होता है। तनाव की वजह से पूरे पाचन तंत्र में जलन होने लगती है जिससे पाचन नली में सूजन आ जाती है और इस सबका नतीजा यह होता है
कि पोषक तत्वों का शरीर के काम आना कम हो जाता है।
लंबे समय तक जारी रहने पर तनाव की वजह से इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम और पेट में अल्सर जैसी पाचन संबंधी तकलीफें हो सकती हैं। जांच के लिए
डॉक्टरों के पास जाने वाले रोगियों की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि गैस्ट्रोइसोफेगल रीफ्लक्स (जीईआरडी) अब पाचन संबंधी सामान्य रोग बन
गया है। जीईआरडी में असल में पेट के अंदर मौजूद अम्ल यानी एसिड इसोफेगस (भोजन नली) में वापस चले जाते हैं। इससे सीने में जलन तो होती ही है,
उल्टी की शिकायत भी होती है। इसके अलावा फेफड़े, कान, नाक या गले की भी कई तकलीफें आ पड़ती हैं। इसके साथ कई परेशानियां जुड़ी हैं। मसलन,
इसोफेगस में छाले और संकुचन जैसी परेशानियां भी हो जाती हैं। जीईआरडी अगर लंबे समय तक रह गया तो एक नई अवस्था आ सकती है, जिसका नाम
है बैरेट्स इसोफेगस और इसका अगर समय पर इलाज न किया गया तो इसोफेगस का कैंसर भी हो सकता है।