रोजमर्रा की भागदोड़ भरी जिंदगी में न जाने शरीर कितनी बीमारियों के चपेट में आ रहा है। ऐसे में गैजेट्स के बढ़ते चलन के कारण काफी देर तक एक ही पॉस्चर मे बैठने से रीढ़ की हड्डी पर बुरा असर पड़ता है। इस समस्या को स्लिप डिस्क या डिस्लोकेटेड डिस्क कहते हैं। आजकल 10 में से 7 व्यक्ति कमर दर्द की समस्या से पीडि़त हैं। कमर दर्द की यह समस्या धीरे-धीरे बढ़कर स्लिप डिस्क में बदल जाती है। बदलते जीवनशैली के कारण यह समस्या युवाओं में भी देखने को मिल रही है। लेकिन कुछ व्यायाम के जरिए इस समस्या में आराम पाया जा सकता है, तो आइए हम आपको बताते हैं कि इसके उपचार और व्यायाम तरीकेों के बारे में।
क्यों होती है यह समस्या
स्लिप डिस्क को जानने के लिए रीढ़ की बनावट को समझना जरूरी है। स्पाइनल कॉर्ड या रीढ़ की हड्डी पर शरीर का पूरा वजन होता है। यह शरीर को गतिमान रखता है साथ ही इससे पेट, गर्दन, छाती और नसों की सुरक्षा भी होती है। स्पाइन वर्टिब्रा से मिलकर बनती है। यह सिर के निचले हिस्से से शुरू होकर टेल बोन तक होती है। स्पाइन को तीन भागों में बंटा है - गर्दन या सर्वाइकल वर्टिब्रा, छाती (थोरेसिक वर्टिब्रा) और लोअर बैक (लंबर वर्टिब्रा)।
स्पाइन कॉर्ड की हड्डियों के बीच कुशन जैसी एक मुलायम चीज होती है, जिसे डिस्क कहा जाता है। ये डिस्क एक-दूसरे से जुड़ी होती है और वर्टिब्रा के बिलकुल बीच में स्थित होती हैं। गलत तरीके से काम करने, पढ़ने, उठने-बैठने या झुकने से डिस्क पर लगातार जोर पडता है। इससे स्पाइन के नर्व्स पर दबाव आ जाता है जो कमर में लगातार होने वाले दर्द का कारण बनता है।
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क्या है स्लिप्ड डिस्क
स्लिप्ड डिस्क कोई बीमारी नहीं, शरीर की मशीनरी में तकनीकी खराबी है। वास्तव में डिस्क स्लिप नहीं होती, बल्कि स्पाइनल कॉर्ड से कुछ बाहर को आ जाती है। डिस्क का बाहरी हिस्सा एक मजबूत झिल्ली से बना होता है और बीच में तरल जैलीनुमा पदार्थ होता है। डिस्क में मौजूद जैली कनेक्टिव टिश्यूज के सर्कल से बाहर की ओर निकलता है और आगे बढ़ा हुआ हिस्सा स्पाइन कॉर्ड पर दबाव बनाता है। कई बार उम्र के साथ-साथ यह तरल पदार्थ सूखने लगता है या फिर अचानक झटके या दबाव से झिल्ली फट जाती है या कमजोर हो जाती है तो जैलीनुमा पदार्थ निकल कर नसों पर दबाव बनाने लगता है, जिसकी वजह से पैरों में दर्द या सुन्न होने की समस्या होती है।
क्या है उपचार
रीढ़ की हड्डी में बहुत तेज दर्द हो रहा हो तो एक्स-रे या एमआरआइ माइलोग्राफी (स्पाइनल कॉर्ड कैनाल में एक इंजेक्शन के जरिये) के जरिये इस समस्या का निदान होता है। जांच के दौरान स्पॉन्डलाइटिस, डिजेनरेशन, ट्यूमर, मेटास्टेज जैसी समस्या का भी पता चल जाता है। स्लिप्ड डिस्क के ज्यादातर मरीजों को आराम करने और फिजियोथेरेपी से राहत मिल जाती है। इसमें दो से तीन हफ्ते तक पूरा आराम करना चाहिए।
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दर्द कम करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर पेन-किलर, मांसपेशियों को आराम पहुंचाने वाली दवाएं या कभी-कभी स्टेरॉयड्स भी दिए जाते हैं। फिजियोथेरेपी भी दर्द कम होने के बाद ही कराई जाती है। अधिकतर मामलों में सर्जरी के बिना भी समस्या का समाधान हो जाता है। ऑर्थोपेडिक्स और न्यूरो विभाग के विशेषज्ञ जांच के बाद सर्जरी का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय तब लिया जाता है, जब स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव बढ़ने लगे और मरीज का दर्द इतना बढ़ जाए कि उसे चलने, खड़े होने, बैठने या अन्य सामान्य कार्य करने में समस्या हो। उपचार के बाद मरीज को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की सलाह दी जाती है।
एक्सरसाइज के टिप्स
चूंकि यह कमर की समस्या है, इसलिए इसमें सभी व्यायाम नहीं किये जा सकते हैं। इस समस्या से राहत पाने के लिए आप निम्न व्यायाम कर सकते हैं –
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एब्डोमिनल आइसोमेट्रिक
यह व्यायाम जमीन पर, चटाई पर या बेड पर किया जा सकता है। इसमें पैरों के जरिये पेट और कमर की मांसपेशियों पर खिंचाव आता है जिससे दर्द से राहत मिलती है।
क्रंचेज
इसे करने के लिए पेट के बल चटाई बिछाकर लेट जायें। फिर टखनों पर अपने शरीर के हिस्से को ऊपर की तरफ उठायें, पैरों की उंगलियों और कोहनी पर आपके शरीर का भार होना चाहिए। इसे आराम से करें। शुरूआत में 5-10 सेकेंड ही करें, बाद में समय को बढ़ा सकते हैं।
लुंबर रोल एक्सरसाइज
इसे करने के लिए चटाई पर सीधे लेट जायें। अपने घुटनों को मोड़ लीजिए, फिर हाथों को दोनों तरफ सीधा फैला लें। उसके बाद पैरों को बायें और दायें दोनों तरफ घुमायें। प्रत्येक तरफ 5-5 बार यह प्रक्रिया दोहरायें।
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