
दुनिया में करीब तीस लाख लोगों पर शोध से पता लगा है कि छोटे कद के लोगों को ऊंचे कद के लोगों के मुकाबले दिल की बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। अध्ययन के अनुसार, पांच फीट दो इंच से कम कद वाले महिला-पुरुषों में दिल की बीमारियों का खतरा अधिक होता है। इनमें ऊंचे कद वालों की अपेक्षा दिल की बीमारियों की आशंका डेढ़ गुना अधिक होती है।
यूरोपीय हार्ट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, फिनलैंड के शोधकर्ताओं ने दिल की बीमारियों से जुड़े 52 अध्ययनों के विश्लेषण और व्यवस्थित समीक्षा से यह निष्कर्ष निकाला है। उन्होंने तीस लाख लोगों को अध्ययन में शामिल किया। प्रमुख शोधकर्ता, टैमपीयर विश्वविद्यालय के डा. टुला पाजानेन ने कहा, 'दिल के रोगों के जोखिम में कद को एक महत्वपूर्ण कारक माना जा सकता है। इच्छानुसार वजन तो घटाया जा सकता है, लेकिन लंबाई बढ़ाना वश में नहीं होता। धूम्रपान, शराब की लत और व्यायाम न करने की आदत भी दिल को नुकसान पहुंचाती है।'
यद्यपि यह पता नहीं लग सका है छोटे कद के लोगों में ऐसा क्यों होता है? लेकिन माना जा रहा है कि छोटे कद के लोगों में हृदय की धमनियां भी छोटी होती हैं। ये धमनियां कोलेस्ट्राल जमने के कारण जल्द ही जाम होने लगती हैं। छोटी धमनियों पर खून के प्रवाह और दबाव का भी अधिक असर पड़ता है। इससे दिल की बीमारियां होती हैं।
छोटे कद के पीछे कारण : शोध
यूनिवर्सिटी ऑफ हेलिंस्की के शोधकर्ताओं द्वारा छोटे कद के लोगों पर हुए एक और शोध से पता चला था कि छोटे कद के लेगों के बीएमआई और रक्त संचार के पीछे एक्स क्रोमोजोम को जिम्मेदार होता है। शोधकर्ताओं ने उत्तरी यूरोप के 25,000 लोगों पर किए अध्ययन में माना था कि पुरुषों और महिलाओं के छोटे कद के पीछे एक्स क्रोमोजोम जिम्मेदार है।
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कौन है छोटा
यदि बात बचपन से की जाए तो सभी बच्चों की लंबाई वर्ष में दो बार नापी जानी चाहिये। जन्म के समय बच्चों की औसत लंबाई 75 सेंटीमीटर होती है जो अधिकतर दो वर्ष में बढ़कर 87 सेंटीमीटर हो जाती है। इसके बाद बच्चों की लंबाई साल में औसतन छह सेंटीमीटर बढ़ती है। बच्चे की औसत लंबाई को जानने के लिए उसकी आयु को 6 से गुणा करें और 77 सेंटीमीटर से जोड़ें। यदि किसी बच्चे की लंबाई इससे कम हो या एक वर्ष में 6 सेंटीमीटर से कम बढ़ रही है तो यह एक चिंता का विषय होता है।
कब करें छोटे कद की चिंता
छोटे कद से पीड़ित 25 प्रतिशत बच्चे डॉक्टर के पास तब आते हैं, जब कोई मदद संभव ही नहीं होती है। इसका कारण यह एक भ्रांति है कि बच्चों की लंबाई 20 वर्ष तक ही बढ़ती है। यथार्थ में लड़कियों में 14 वर्ष एवं लड़कों में 16 वर्ष तक शारीरिक विकास लगभग पूरा हो जाता है। उसके बाद लंबाई बढ़ने की संभावना नही होती। लड़कियों में मासिक धर्म आरंभ होने के बाद कम लंबाई बढ़ती है। इस कारण उचित उपचार के लिए लड़कियों को 10 व लड़कों को 12 वर्ष के पहले डॉक्टर से मिलना चाहिये।
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क्या कोई रास्ता है?
यदि बच्चे को गेहूं से एलर्जी एवं थाइराइड के स्तर में कमी है तो इसके उपचार से बच्चों के विकास में बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा ग्रोथ हार्मोन द्वारा बच्चों की लंबाई 20-25 सेंटीमीटर तक बढ़ जाती है। ग्रोथ हॉर्मोन अब ग्रोथ हॉर्मोन की कमी के अतिरिक्त अन्य परिस्थितियों में भी सफलता के साथ प्रयोग हो रहा है। दुर्भाग्य से कई अभिभावक बच्चों की लंबाई बढ़ाने के लिए ओवर द काउंटर दवाईयों का प्रयोग करते हैं, जो कि बिल्कुल गलत और नुकसानदायक है। इन दवाओं का कोई प्रमाणित लाभ नहीं होता है एवं दुष्प्रभाव अधिक होता है।
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