बच्चों के दिमागी विकास को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं स्क्रीन वाले डिवाइसेज, जानें कैसे?

पिछले एक दशक में जिस तरह से स्क्रीन वाले डिवाइसेज का इस्तेमाल लोगों में बढ़ा है, उसके गंभीर परिणाम अब दिखने शुरू हो गए हैं। आजकल बच्चे भी पूरे दिन इन डिवाइसेज से घिरे रहते हैं। ये डिवाइस बच्चों के दिमाग को किस तरह प्रभावित कर रहे हैं, आइये जानें।
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बच्चों के दिमागी विकास को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं स्क्रीन वाले डिवाइसेज, जानें कैसे?

क्या आपने कभी सोचा है कि आपका बच्चा दिन में अमूमन कितने समय तक स्क्रीन वाले डिवाइसेज का इस्तेमाल करता है? या क्या आपने कभी ये सोचा है कि इन डिवाइसेज के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों को क्या परेशानियां हो सकती हैं? स्क्रीन वाले डिवाइसेज में स्मार्टफोन्स, लैपटॉप, आइपैड, टीवी, कंप्यूटर आदि शामिल हैं।
पिछले एक दशक में जिस तरह से स्क्रीन वाले डिवाइसेज का इस्तेमाल लोगों में बढ़ा है, उसके गंभीर परिणाम अब दिखने शुरू हो गए हैं। आजकल बच्चे भी पूरे दिन इन डिवाइसेज से घिरे रहते हैं। दो-तीन साल के बच्चे भी मोबाइल और लैपटॉप पर गेम खेलने, गाने सुनने, वीडियो देखने और इन डिवाइसेज को ऑपरेट करने में सहज हो गए हैं। कई बार तो बच्चे इन डिवाइसेज के इतने आदी हो जाते हैं कि इनके न मिलने पर हंगामा शुरू कर देते हैं। इन सभी का बच्चों पर इतना बुरा प्रभाव पड़ रहा है कि इससे बच्चों का दिमागी और शारीरिक दोनों अवरुद्ध हो रहे हैं। आइये आपको बताते हैं कि ये डिवाइसेज बच्चों पर किस तरह प्रभाव डाल रहे हैं।

सीमित हैं फायदे मगर नुकसान है ज्यादा

ऐसा नहीं है कि बच्चे इन डिवाइसेज का सही उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं करते हैं। कई बार बच्चे इन डिवाइसेज के माध्यम से एजुकेशनल एप्स, एजुकेशनल टीवी शोज और एजुकेशनल एक्टिविटीज देखते और करते हैं जिससे उनका ज्ञान तो बढ़ता ही है साथ ही कॉन्फिडेंस और कम्यूनिकेशन स्किल भी सुधरती है। लेकिन इन डिवाइसेज का सीमित इस्तेमाल जरूरी है। एक शोध में पाया गया है कि आजकल शहरों में टीन एज बच्चे आमतौर पर 7 से 8 घंटे स्क्रीन देखते हैं। शोध में पाया गया है कि स्क्रीन वाले इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज की वजह से बच्चों का मानसिक और व्यवहारिक देर से शुरू हो रहा है जिसके कारण बच्चों में कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं।

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क्यों पड़ता है प्रभाव

बच्चों का इन डिवासेज को इस्तेमाल करने का उद्देश्य भले बहुत अच्छा हो लेकिन इसके नुकसानों से नहीं बचा जा सकता है। अब सवाल उठता है कि बड़े भी कंप्यूटर पर दिनभर काम करते हैं, तो उनपर क्या इसका प्रभाव नहीं पड़ता है? तो जवाब ये है कि बड़ों पर भी इन डिवाइसेज का प्रभाव पड़ता है मगर वो प्रभाव बच्चों पर पड़ने वाले प्रभावों से अलग हैं और कम चिंताजनक हैं। दरअसल बच्चों के दिमाग का विकास आमतौर पर पैदा होने के बाद 17-18 सालों तक चलता है। इसके बाद समझदारी बढ़ती है मगर दिमाग के अंदरूनी विकास की गति धीमी हो जाती है।

कैसे पड़ता है प्रभाव

अब अगर बच्चा बचपन से इन इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन वाले डिवाइसेज का इस्तेमाल करता है तो उसका दिमागी विकास इससे प्रभावित होता है। इन डिवाइसेज की वजह से दिमाग में विकसित होने वाली कई महत्वपूर्ण सेल्स पैदा होने के साथ ही धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं, जिससे बच्चा कुछ विशेष कामों में पीछे रह जाता है। खास बात ये है कि इनमें से ज्यादातर सेल्स का विकास दोबारा नहीं हो पाता है और बच्चों को उस खास दिमागी विकृति के साथ ही जीवन गुजारना पड़ सकता है।

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क्या हो सकती हैं परेशानियां

इन डिवाइसेज के इस्तेमाल आमतौर पर बच्चों को जो परेशानियां होती हैं वो हैं- किसी चीज पर फोकस न कर पाना, ध्यान न लगा पाना, दिमाग एकाग्र न होना, चीजें जल्दी भूल जाना, सही-गलत के निर्णय क्षमता में कमी, एटीट्यूड में बदलाव, लोगों की बातों को ठीक तरह से न समझ पाना और इसी कारण कई बार बद्तमीजी और जिद्दीपन का स्वभाव अपना लेना आदि कई परेशानियां हैं।

बच्चों का दिमाग

पैदा होने के बाद तीन साल की उम्र तक बच्चों का दिमाग तेजी से विकसित होता है। इस दौरान ही आस-पास की चीजों के प्रति और सामाजिक प्राणी के रूप में लोगों से व्यवहार की बातें दिमाग सीखता है। इस दौरान जो दिमाग विकसित होता है वही आगे दिमाग के विकास और ज्ञान के लिए आधार का काम करता है। प्राकृतिक चीजों से दिमाग को एक खास तरह का स्टिमुली या उत्तेजक मिलता है, जो दिमाग को ज्यादा से ज्यादा विकसित करने में मदद करता है। मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट जैसी चीजों में ये स्टिमुली नहीं होता है इसलिए इस उम्र के बच्चों के लिए ये घातक होता है। इसलिए इस दौरान बच्चों को ज्यादा से ज्यादा चीजें देखना, समझना, खेलना-कूदना और सीखना चाहिए। मगर इन डिवाइसेज की आदत पड़ने पर बच्चे ये कीमती समय इन डिवाइसेज में ही खपा देते हैं और ये जरूरी ज्ञान उन्हें नहीं मिल पाता है या कम मिल पाता है।

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