
शिजोफ्रेनिया एक प्रकार का मानिसक रोग है, इसके रोगी को विभिन्न प्रकार की आवाजें सुनाई देती हैं। इस बीमारी से ग्रस्त लोग खुद को सभी से अलग कर लेते हैं। शिजोफ्रेनिया एक खतरनाक समस्या है, इस बीमारी से ग्रस्त रोगियों में टाइप2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। आप यही सोच रहे होंगे कि डायबिटीज तभी होता है जब ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ती है, ऐसे में शिजोफ्रेनिया का क्या योगदान हो सकता है। इस लेख में हम आपकी इसी बात का समाधान करते हैं और इन दोनों के बीच के संबंध की जानकारी विस्तार से लेते हैं।
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ऐसा क्यों होता है
सामान्यतया शिजोफ्रेनिया की समस्या 30 साल की उम्र के बाद होती है। जो लोग इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं उनको टाइप2 डायबिटीज होने का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। शारीरिक गतिविधि न करने और एंटीसाइकोटिक दवाओं के प्रयोग के कारण ऐसा होता है।
शोध के अनुसार
शिजोफ्रेनिया और डायबिटीज के बीच संबंध को जानने के लिए लंदन के किंग कॉलेज ने शोध किया। शोध में यह देखा गया कि लोगों को डायबिटीज होने की संभावना शिजोफ्रेनिया होने के साथ ही होने लगती है या फिर एंटीसाइकोटिक दवाओं के प्रयोग के बाद ऐसा होता है। इसमें अनियमित दिनचर्या और अस्वस्थ खानपान की भी जांच की गई। इस शोध में यह खुलासा हुआ कि शिजोफ्रेनिया के मरीजों को टाइप2 डायबिटीज होने की संभावना सामान्य लोगों की तुलना में तीन गुना अधिक रहती है।
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शोध में यह पाया गया कि, शिजोफ्रेनिया को नियंत्रित करने के लिए जो प्रयास किये गये उससे इंसुलिन का स्तर बढ़ता जाता है और इंसुलिन प्रतिरोध होने लगता है। इसके कारण ही टाइप2 डायबिटीज होने का खतरा अधिक होता है। यानी शिजोफ्रेनिया सीधे तौर पर टाइप2 डायबिटीज से संबंधित है।
इस शोध में यह भी खुलासा हुआ कि शिजोफ्रेनिया के साथ तनाव भी बढ़ता जाता है, और इसके कारण ही तनाव के लिए जिम्मेदार हार्मोन कार्टिसोल का स्तर बढ़ता है। यह भी डायबिटीज के खतरे को बढ़ाता है।
क्या है शिजोफ्रेनिया
शिजोफ्रेनिया एक मानसिक है, इससे ग्रस्त इंसान को हमेशा तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। उसे हमेशा यही लगता है कि दूसरे लोग उसके खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं। इससे ग्रस्त रोगी खुद को सबसे हटकर समझते हैं, उनको लगता है कि उनसे अधिक शक्तिशाली दूसरा कोई नहीं। इस स्थिति में मरीज की सोचने और समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है। वह कोई भी निर्णय नहीं ले सकते हैं। इससे ग्रस्त रोगी हमेशा तनाव में रहते हैं और खुद को समाज से अलग कर लेते हैं। ऐसे लोगों को हमेशा देखभाल की जरूरत पड़ती है।
इसलिए शिजोफ्रेनिया से ग्रस्त रोगी के साथ परिवार के सदस्यों को रहने की सलाह दी जाती है। जिससे वे उनका ख्याल रख सकें। ऐसे रोगियों को नियमित रूप से चिकित्सक के पास भी ले जायें।
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