गु्र्दे यानी किडनी शरीर के बहुत ही जरूरी अंग हैं। गुर्दे खून को साफ करते हैं और फिल्टर पदार्थ को मूत्र में बदलते हैं। गुर्दों के सही से काम न करने पर शरीर रोग ग्रसित हो जाता है। इस लेख के माध्यम से हम आपको बता रहे हैं गुर्दे संबंधी बीमारी और उसके प्रकार के बारे में।
गुर्दों की कार्य प्रणाली
गुर्दे रीढ़ की हड्डी के दोनों सिरों पर फली जैसे आकार के दो अंग होते हैं। हमारे गुर्दे रक्त में मौजूद विकारों को छान कर साफ करते हैं और शरीर को स्वच्छ रखते हैं। रक्त को साफ कर मूत्र बनाने का कार्य भी गुर्दों के द्वारा ही पूरा होता है। गुर्दे रक्त में उपस्थित अनावश्यक कचरे को मूत्रमार्ग से शरीर से बाहर निकाल देते हैं। फिल्टर मूत्र के माध्यम से शरीर के गंदे एवं हानिकारक पदार्थ जैसे यूरिया, क्रिएटिनिन और अनेक प्रकार के अम्ल बाहर निकल जाते हैं।
गुर्दे लाखों छलनियों तथा लगभग 140 मील लंबी नलिकाओं से बने होते हैं। गुर्दों में उपस्थित नलिकाएं छने हुए द्रव्य में से जरूरी चीजों जैसे सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम आदि को दोबारा सोख लेती हैं और बाकी अनावश्यक पदार्थों को मूत्र के रूप में बाहर निकाल देती हैं। किसी खराबी की वजह से यदि एक गुर्दा कार्य करना बंद कर देता है तो उस स्थिति में दूसरा गुर्दा पूरा कार्य संभाल सकता है।
गुर्दे शरीर को विषाक्त होने से बचाते हैं और स्वस्थ रखते हैं। गुर्दों का विशेष संबंध हृदय, फेफड़ों, यकृत और प्लीहा (तिल्ली) के साथ होता है। हृदय एवं गुर्दे परस्पर सहयोग के साथ कार्य करते हैं। इसलिए जब किसी को हृदयरोग होता है तो उसके गुर्दे भी बिगड़ने की आशंका बनी रहती है। जब गुर्दे खराब होते हैं तो रोगी का रक्तचाप बढ़ जाता है और वह धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है।
जानकारी के अभाव के कारण या लापरवाही की वजह से किडनी की बीमारियों का प्रारम्भिक अवस्था में पता न चल पाना गंभीर परिणामों जैसे मृत्यु का भी का कारण बन सकता है। किडनी के लिए मधुमेह, पथरी और हाईपरटेंशन बडे़ जोखिम कारक हैं।
गुर्दे संबंधी बीमारियों के कारण
विशेषज्ञों के अनुसार किडनी के मरीजों में से लगभग एक चौथाई में किडनी में गड़बड़ी का कोई सटीक कारण ज्ञात नहीं है। मधुमेह के रोगियों की बड़ी तादाद किडनी की बीमारी से ग्रसित है, वहीं दूसरी ओर किडनी की बीमारी से ग्रस्त एक तिहाई लोग मधुमेह पीड़ित होते हैं। इससे एक बात साफ होती है कि इन दोनों का आपस में गहरा संवंध है। लंबे समय तक हाईपरटेंशन का शिकार रहे लोगों को भी किडनी की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
किडनी की बीमारी के लिए दूषित खान-पान और वातावरण को मुख्य कारण माना जाता है। गंदा मांस, मछली, अंडा, फल और भोजन और गंदे पानी का सेवन गुर्दे की बीमारी की वजह बन सकता है। बढ़ते औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और वाहनों के कारण पर्यावरण प्रदूषण बढ़ गया है। भोजन और पेय पदार्थों में भी कीटाणुनाशकों, रासायनिक खादों, डिटरजेंट, साबुन, औद्योगिक रसायनों के अंश पाएं जाते हैं। ऐसे में फेफड़े और जिगर के साथ ही गुर्दे भी सुरक्षित नहीं हैं। गुर्दों के मरीजों की संख्या दिन पर दिन बढ़ रही है।
गुर्दे संबंधी बीमारियों के प्रकार
एक्यूट किडनी समस्याएं
एक्यूट किडनी समस्याएं बहुत ही तेजी से होती हैं। हालांकि इलाज के बाद अधिकांश मामलों में यह परेशानी ठीक हो जाती है और गुर्दे आराम से काम करते हैं।
क्रोनिक किडनी समस्याएं
क्रोनिक किडनी समस्याएं, किडनी की बीमारियों में आम हैं। ये तब होती है जब किडनी खराब हो या तीन माह या इससे अधिक समय से काम नहीं कर रही हो। इसका यदि ठीक प्रकार से इलाज न हो तो क्रोनिक किडनी समस्या बढ़ती जाती है। वृक्क रोग में क्रोनिक किडनी रोग के पांच चरण होते हैं। किडनी समस्या के अंतिम चरण में गुर्दे केवल पंद्रह प्रतिशत ही कार्य कर पाते हैं।
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