एक्सपर्ट्स हमेशा से कहते रहे हैं कि डिजायर्स का संबंध शरीर से ज्यादा दिमाग से होता है। फिलहाल जो नए सर्वे आ रहे हैं, उनमें भी ब्रेन के इसी खेल को सही साबित करने की कोशिश की जा रही है। एक अध्ययन में कहा गया है कि जिन स्त्रियों में इमोशनल इंटेलिजेंस (ईआई) अधिक होती है, उनकी डिजायर्स भी अच्छी होती है। किंग्स कॉलेज लंदन में दो हजार से अधिक परिवारों पर किए गए इस अध्ययन में पाया गया है कि ऐसी स्त्रियां अपनी भावनाओं और अहसास को लेकर तो जागरूक होती ही हैं, वे दूसरों की भावनाओं का भी बेहतर खयाल रख पाती हैं। संबंधों के लिहाज से ऐसी समझदारी बेहद जरूरी होती है। कुछ एक्सपट्र्स का मानना है कि पति-पत्नी के बीच अच्छे और नियमित संबंध हैं तो इससे स्त्री का आईक्यू स्तर भी बढ़ता है। यह एक दिलचस्प बात है, जिसे इस आधार पर कहा जाता है कि नियमित और अच्छे सेक्स संबंधों से एस्ट्रोजन स्तर में वृद्धि होती है, जिससे मस्तिष्क की गतिविधियां भी बढ़ती हैं।
कुछ तो फर्क है
इससे पहले कई शोधों में कहा गया कि स्त्री और पुरुष के मस्तिष्क में अंतर होता है। यह अंतर उनके जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है, सेक्स संबंधों को भी लेकिन पिछले वर्ष एक अध्ययन ऐसा भी हुआ, जिसने पुराने शोधों को गलत साबित कर दिया। इसमें कहा गया कि स्त्री-पुरुष के मस्तिष्क में कोई फर्क नहीं होता। शोध जो भी बताएं, आम जीवन में हम पाते हैं कि कुछ खास कार्यों को पुरुष बेहतर ढंग से कर पाते हैं तो कुछ को स्त्रियां बेहतर तरीके से कर पाती हैं। एक्सपट्र्स भी मानते हैं कि पुरुषों में सीखने-समझने की क्षमता तो होती है लेकिन वे एक बार में एक कार्य को बेहतर कर पाते हैं, जबकि स्त्रियों की स्मरण-शक्ति, सामाजिक स्किल्स और संवाद-क्षमता अच्छी होती है। इससे उनमें मल्टीटास्किंग और समस्याओं का सही हल ढूंढने जैसी काबिलीयत भी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है।
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दिमाग पर इतना जोर क्यों
दिलचस्प बात यह है कि इस तरह के शोध होते रहते हैं। कभी एक नतीजा निकलता है तो तुरंत बाद कोई दूसरा शोध पहले शोध के नतीजों को नकार देता है। सवाल यह भी है कि कुछ लोगों या खास वर्ग समूहों पर हुए इन शोधों को क्या हर समाज पर लागू किया जा सकता है? शोध में शामिल लोगों की सामाजिक-भौगोलिक-मानसिक और भावनात्मक संरचनाएं अलग-अलग हो सकती हैं। इसलिए संबंध के स्तर पर स्त्री-पुरुष की इस भिन्नता को मस्तिष्क के दायरे में रहकर ही क्यों ढूंढा जाए? इससे किसी को फर्क भी क्या पड़ता है?
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दिल की चाभी दिमाग में
अब जरा सामान्य स्त्रियों के मन में झांकने की कोशिश करें। कुछ समय पूर्व वैवाहिक मामलों की एक सलाहकार ने बातचीत के दौरान बताया था कि संबंध की इच्छा भी व्यक्ति के संपूर्ण शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। शिक्षा, आत्मनिर्भरता, स्वास्थ्य, संबंध और आर्थिक स्तर का भी संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर, शिक्षित, जीवन से संतुष्ट स्त्री की संबंध लाइफ भी अच्छी होती है। इसकी वजह यह है कि वे संबंधों में अपनी बात, पसंद-नापसंद, इच्छाओं और अपेक्षाओं को रखने की क्षमता रखती हैं। हां, यह भी सच है कि मस्तिष्क की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि वह एक चाभी है, जिससे दिल के बंद दरवाजे को खोला जा सकता है। दिमाग सोचेगा, कल्पना करेगा, तभी वह उस खास ऐक्टिविटी के प्रति लगाव भी महसूस कर पाएगा।
ज्य़ादा मत सोचो
कई बार ऐसा भी माना जाता है कि संबंधों में वे स्त्रियां ज्यादा खुश रह पाती हैं, जो ज्यादा नहीं सोचतीं। बौद्धिक और संवेदनशील होना कई बार रिश्ते के आड़े भी आता है। ऐसा माना जाए तो हर सर्वे फेल हो जाता है। हालांकि आम जीवन में ऐसा देखा जाता है कि निरपेक्ष भाव से काम करने वाली स्त्रियां जीवन से ज्यादा संतुष्ट दिखती हैं। शायद यही वह कारण है कि ज्यादातर सेक्सोलॉजिस्ट्स इस बात पर सहमत होते हैं कि स्त्रियों का सबसे बड़ा इरॉटिकजोन उनका दिमाग ही होता है। इसमें कैद दिल की चाभी को जिस दिन ढूंढ लिया जाएगा, रिश्तों के पजल भी हल कर लिए जाएंगे।
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