रिलेशनशिप में नहीं होना चाहिए ज्यादा पर्सनल स्पेस, बढ़ जाती हैं दूरिया

दांपत्य जीवन में अपने लाइफ पार्टनर को उसकी रुचि से जुड़े कार्यों, प्रोफेशनल और सामाजिक संबंधों के लिए थोड़ा पर्सनल स्पेस देना गलत नहीं है लेकिन जब इसकी वजह से पति-पत्नी के पास एक-दूसरे के लिए समय न हो तो यह स्थिति चिंताजनक हो जाती है। 
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रिलेशनशिप में नहीं होना चाहिए ज्यादा पर्सनल स्पेस, बढ़ जाती हैं दूरिया

दांपत्य जीवन में अपने लाइफ पार्टनर को उसकी रुचि से जुड़े कार्यों, प्रोफेशनल और सामाजिक संबंधों के लिए थोड़ा पर्सनल स्पेस देना गलत नहीं है लेकिन जब इसकी वजह से पति-पत्नी के पास एक-दूसरे के लिए समय न हो तो यह स्थिति चिंताजनक हो जाती है। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचित्रा दर्गन आनंद कहती हैं, 'अक्सर लोग रिश्तों में पर्सनल स्पेस देने की धारणा को पश्चिमी जीवनशैली का अनुकरण मानते हैं पर वास्तव में ऐसा नहीं है। अगर हम गौर करें तो भारतीय समाज में पुराने समय से ही दांपत्य जीवन में पर्सनल स्पेस की व्यवस्था सहज ढंग से कायम है।

मसलन, गर्मी की छुट्टियों में बच्चों के साथ पत्नी का मायके जाना, पति का अपने दोस्तों से मिलना-जुलना या स्त्रियों की किटी पार्टी जैसी ऐक्टिविटीज़। ऐसी सभी सामाजिक गतिविधियां दांपत्य जीवन में पर्याप्त पर्सनल स्पेस देती हैं। इसलिए एक-दूसरे को अलग से स्पेस देने की ज़रूरत नहीं होती। पति-पत्नी के रिश्ते में पारदर्शिता और सहजता बेहद ज़रूरी है। यह तभी संभव होगा, जब उनके पास आपसी बातचीत के लिए क्वॉलिटी टाइम हो। इसलिए दंपतियों को हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पर्सनल स्पेस की वजह से रिश्ते में दूरियां न बढ़ें।  

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टीनएजर्स की आज़ादी

आजकल जयादातर बाल मनोवैज्ञानिकों द्वारा टीनएजर्स को पर्सनल स्पेस देने की सिफारिश की जाती है, जो कि एक हद तक ज़रूरी भी है। दिक्कत तब शुरू होती है, जब पेरेंट्स अपने बच्चों को पर्सनल स्पेस देकर यह मान लेते हैं कि सब कुछ ठीक ही होगा। वे उनकी गतिविधियों, दोस्तों और आदतों पर ध्यान देना बंद कर देते हैं। कई बार बच्चे पेरेंट्स की ऐसी लापरवाही का गलत फायदा उठाने की कोशिश करते हैं।

बाल मनोवैज्ञानिक गीतिका कपूर कहती हैं, 'उम्र के इस नाजुक दौर में बच्चों पर इस ढंग से नज़र रखने की ज़रूरत होती है कि उन्हें इस बात का आभास न हो कि पेरेंट्स उनकी बातें जानने की कोशिश कर रहे हैं। अगर कभी आपको अपने टीनएजर के बारे में कोई आपत्तिजनक बात मालूम होती है तो भी डांटने के बजाय उसे शांतिपूर्ण ढंग से समझाएं कि ऐसी आदत उसके लिए किस तरह नुकसानदेह साबित हो सकती है।        

दोस्ती और रिश्तेदारी

अगर रिश्तेदारी की बात की जाए तो बेशक आप लोगों के निजी जीवन में ताक-झांक न करें लेकिन उनसे उनका हाल पूछना, मुश्किल हालात में मदद करना, आसपास के लोगों से  जुड़ाव महसूस करना, हर इंसान की नैतिक जि़म्मेदारी है। ऐसे मामलों में अपने इगो को आड़े न आने दें। कई बार लोग छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ होकर अपने करीबी रिश्तेदारों से बातचीत बंद कर देते हैं। मसलन, उसने मुझे शादी में नहीं बुलाया, वह मुझे कभी फोन नहीं करता, इसलिए मैं भी उससे बात नहीं करूंगा/करूंगी। ऐसी नकारात्मक सोच की वजह से लोग अपने कुछ अच्छे रिश्तेदारों के साथ बेवजह दूरी बना लेते हैं।

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जहां तक दोस्ती का सवाल है तो आपने भी यह जुमला  ज़रूर सुना होगा कि दोस्ती में सॉरी और थैंक्यू जैसे शब्दों के लिए कोई जगह नहीं होती। फिर भी आज की व्यस्त जीवनशैली में हमारे पास अपने दोस्तों से मिलने-जुलने का भी समय नहीं होता। फेसबुक पर भले ही दोस्तों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही हो लेकिन निजी जीवन में ऐसे सच्चेे दोस्त कम ही नज़र आते हैं, जोबुरे वक्त में हमारे साथ खड़े हों। आज के दौर में सच्चे दोस्तों को पहचान कर उनके साथ दोस्ती के रिश्ते को मज़बूत बनाना बेहद ज़रूरी है।       

प्रोफेशनल संबंध

यह बात सच है कि ऐसे रिश्तों में सम्मानजनक दूरी और औपचारिकता बहुत ज़रूरी है। ऑफिस में जब तक कोई खुद न बताए, आपको उससे निजी जीवन के बारे में पूछताछ नहीं करनी चाहिए लेकिन जब वह तनावग्रस्त नज़र आए तो उससे परेशानी का कारण जानने की कोशिश ज़रूर करें। ऐसी स्थिति में जहां तक संभव हो, स्वयं आगे बढ़कर अपने कलीग की मदद करें। खासतौर पर अगर आपका कोई सहकर्मी अपने परिवार से दूर अकेला रहता है तो आपके पास उसका पता और मोबाइल नंबर ज़रूर होना चाहिए ताकि किसी आकस्मिक स्थिति में आप उसकी मदद कर सकें। अगर अपनों को पर्सनल स्पेस देने के साथ इन छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा जाए तो रिश्तों में मधुरता बनी रहेगी।

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