शिशु को भी प्रभावित कर सकता है प्रेग्नेंसी में डेंगू! ऐसे करें बचाव

गर्भावस्था हर महिला के जीवन का सबसे सुनहरा दौर होता है। 
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शिशु को भी प्रभावित कर सकता है प्रेग्नेंसी में डेंगू! ऐसे करें बचाव

गर्भावस्था हर महिला के जीवन का सबसे सुनहरा दौर होता है। हर महिला चाहती है कि वो अपनी प्रेग्नेंसी के एक-एक पल को महसूस करें। लेकिन कई बार गर्भावस्था के वक्त कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में डेंगू या चिकनगुनिया से पीड़ित होने पर इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। डेंगू और चिकनगुनिया का प्रभाव गर्भवती महिलाओं और सामान्य लोगों पर एक जैसा ही होता है। सबसे बड़ी बात ये है कि प्रेग्नेंसी के वक्त एक महिला के लिए खुद का ध्यान रखना ही एक चुनौती होता है। ऐसे में डेंगू या चिकनगुनिया जैसे घातक रोग होने पर कई स्वास्थ्य पर कई बुरे असर पड़ने का डर रहता है।

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क्या हैं डेंगू या चिकनगुनिया के कारण?

चिकनगुनिया और डेंगू होने का खतरा आजकल के बदलते मौसम में ज्यादा रहता है। आजकल मच्छरों का आतंक अपेक्षाकृत ज्यादा रहता है। जिसके चलते बीमारियां भी उसी गति से फैलती हैं। ऐसे में मानसून में इसकी संभावनाएं ज्यादा हो जाती हैं। ये मच्छर दिन के समय ज्यादा काटते है। सुबह और दोपहर के समय में खासतौर से इसकी संभावनाए ज्यादा बढ़ जाती हैं। डेंगू वायरस के चार प्रकार होते हैं। अगर आप इनमें से किसी एक से पीड़ित हो गए हैं तब भी बाकी तीनों के प्रति अतिसंवेदनशील बने रहते हैं।

डेंगू या चिकनगुनिया के लक्षण

  • तेज बुखार, कंपकपी
  • मंसूड़ों से खून रिसना
  • स्वाद ना आना, डिहाईड्रेशन
  • शरीर और सिर में तेज दर्द
  • उल्टी और जी मिचलाना
  • कई मामलों मे प्लेटलेट्स कम हो जाना
  • शरीर के ऊपरी हिस्से में रैशेज
  • प्लेटलेट्स कम होने की वजह से ब्लूप्रेशर कम होना

गर्भावस्था में डेंगू 

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अपने आसपास सफाई करें। कई बार ये मच्छर सफाई वाली जगह पर भी हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आपको अपने घर के कूलर, फूलदान और जहां कहीं भी पानी जमा होने की जगह हो, को साफ कराते रहना चाहिए। अपने आसपास की सफाई पर आपको ध्यान देना चाहिए। समय समय पर अल्ट्रासाउंड के साथ अपनी जांच भी कराते रहें। ताकि डेंगू या चिकनगुनिया का सही समय पर पता चल सके।

डेंगू या चिकनगुनिया के लिए गर्भस्थ महिला का इलाज भी सामान्य मरीजों की तरह ही होता है। इसकी पहचान के लिए रक्त परीक्षण किया जाता है। डिहाइड्रेशन, उल्टी आदि की समस्या से बचने के लिए ढेर सारा पानी और ताजा जूस पीने की सलाह दी जाती है ताकि एम्ब्रायोनिक फ्लूड का स्तर सामान्य बना रहें। बुखार को नियंत्रण में रखने और जोड़ो मांसपेशियो के दर्द के लिए पेन किलर दी जाती है। गर्भावस्था के दौरान बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी तरह की दवा का सेवन नुकसानदायक हो सकता है। ऐसे में एस्प्रिन या उससे संबधित दवाइयों का सेवन बिल्कुल भी ना करें।

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