
यदि आपके सामने कोई गाली गलौज करे तो आप निःसंदेह यही सोचेंगे कि वह व्यक्ति बदतमीज और फूहड़ है। यही नहीं उसके समझदारी का अंदाजा लगाते हुए यही सोचेंगे कि उसकी सोचने समझने की क्षमता बिल्कुल न के बराबर है। यही कारण है कि वह अपने क्रोध और भावनाओं को अपशब्दों के जरिये दूसरों के सामने व्यक्त कर रहा है। लेकिन सही मायनों में गौर करें तो सच्चाई इससे इतर है। हाल फिलहाल में हुए तमाम शोध अध्ययनों ने इस बात की पुष्टि की है कि अपशब्द बोलने वालों के पास बेहतरीन शब्दकोश होते हैं। उनके पास अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा शब्द सूची होती है।
मनोचिकित्सकों का दावा है कि अपशब्द बोलने वाले न सिर्फ ‘प्रेसेंस ऑफ माइंड’ में बेहतर होते हैं बल्कि उनकी शब्द सूची में ऐसे ऐसे शब्द पाए जाते हैं जो आम लोगों के पास बमुश्किल ही होते हैं। असल में इस तरह के शब्द बोलने में 18 से 22 साल की आयु के युवा ही शामिल होते हैं। सामान्यतः माना यही जाता है कि 18 साल की उम्र से लेकर 22 साल की उम्र तक के युवा ही नए और अपशब्दों का इस्तेमाल बेझिझक करते हैं। इसके पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल मौजूदा युवा पीढ़ी बोलने या करने से पहले कुछ नहीं सोचती। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके बारे में क्या सेाचेगा, उनके बोले हुआ का किसी पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
असल में यही वो युवा वर्ग है जिसमें वे अपने कॅरिअर की नींव रखने की कोशिश करते हैं। संघर्ष करते हैं और आगे बढ़ने के लिए बेतहाशा मेहनत करते हैं। ऐसे में उन्हें न पीछे मुड़कर देखना पसंद आता है और न ही किसी की परवाह करना उनके लिए प्राथमिकता का विषय है। सीखने की इस आयु में उनके पास अपशब्दों की बेशुमार सूची होती है। वे तुरत फुरत सोचने में माहिर होते हैं। अनावश्यक किसी फैसले में पहुंचने के लिए समय बर्बाद करने में भी इन्हें विश्वास नहीं होता।
कहना यह चाहिए कि अपशब्द बोलने वाले सामान्य सोच के परे होते हैं। उनके पास अपनी समझ होती है। ऐसे लोग नकारात्मक कम होते हैं। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि हर अपशब्द बोलने वाला व्यक्ति हर समय समझदार होने के पैमाने में फिट बैठते हैं। मनोचिकित्सकों ने अध्ययनों के दौरान पाया है कि आमतौर पर लोग एक ही किस्म की गाली देते हैं। लेकिन अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि अपशब्दों का उपयोग करने वालों के पास जानवरों की एक लम्बी फेहरिस्त होती है। उन्हें अन्य लोगों की तुलना में अधिक जानवरों के नाम याद होते हैं। यही नहीं उनकी भाषा में भी ठीक ठाक पकड़ होती है।
शोधकर्ताओं ने शोध के दौरान तमाम शब्दों को अलग अलग श्रेणी में विभाजित किये थे। इसमें कुछ गालियां थीं, कुछ अपमानजनक शब्द थे तो कुछ यौन दुर्व्यवहार से जुड़े अपशब्द। देखा यह गया कि अपशब्दों का उपयोग करने वालों के पास इस तरह के शब्दों का भण्डार होता है। हालांकि इस तरह की गालियां निंदात्मक है। लेकिन यह भी देखा जाता है कि इस तरह की गालियों का उपयोग करने वाला इन शब्दों का उपयुक्त उपयोग समझते हैं।
कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि अपशब्द बोलने वाले हमेशा नासमझ हों, ऐसा नहीं है। उनके पास न सिर्फ बुरे शब्दों का भी भण्डार पाया जाता है वरन उनके पास अच्छे शब्दों की भी लम्बी चैड़ी सूची होती है। कहा जा सकता है कि ऐसे लोग सही शब्दों का उपयुक्त समय में उपयुक्त इस्तेमाल से वाकिफ होते हैं।
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