
बड़ो को देखकर भी उन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए आगे निकल जाना, किसी की मदद न करना, बातचीत में असभ्य भाषा का इस्तेमाल और दूसरों की असुविधा का खयाल न रखना, आजकल कुछ टीनएजर्स में अकसर ऐसी आदतें नज़र आती हैं।
बड़ो को देखकर भी उन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए आगे निकल जाना, किसी की मदद न करना, बातचीत में असभ्य भाषा का इस्तेमाल और दूसरों की असुविधा का खयाल न रखना, आजकल कुछ टीनएजर्स में अकसर ऐसी आदतें नज़र आती हैं। यह देखकर आपको भी बहुत बुरा लगता होगा लेकिन खास उम्र के बाद उनके व्यवहार में बदलाव लाना मुश्किल है। अगर आप प्ले स्कूल जाने वाले नन्हे बच्चे की मां हैं और भविष्य में उसे ऐसी आदतों से बचाना चाहती हैं तो उसकी परवरिश के प्रति सचेत रहें ताकि उसके व्यक्तित्व में अच्छे संस्कारों के बीज विकसित हों।
घर है पहला स्कूल
आमतौर पर दो-ढाई साल की उम्र में बच्चे बड़ों के निर्देशों को समझने लगते हैं और उनमें अच्छी आदतें विकसित करने के लिए इसी उम्र से पेंरेंट्स को सचेत हो जाना चाहिए। भाई-बहनों या दोस्तों के साथ छीना-झपटी और मारपीट जैसी आदतों को ज्य़ादातर पेरेंट्स बाल सुलभ हरकतें समझकर अनदेखा कर देते हैं पर बाद में उन्हें बदलना मुश्किल हो जाता है। इस संबंध में सर गंगाराम हॉस्पिटल की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ.आरती आनंद कहती हैं, 'यही वह उम्र है, जब बच्चों को शेयरिंग सिखाने की ज़रूरत होती है।
अगर आपके घर में एक से ज्य़ादा बच्चे हों तो उनके लिए अलग-अलग चीज़ें लाने के बजाय चॉकलेट या वेफर्स का एक बड़ा पैकेट लेकर आएं। फिर बड़े बच्चे को पैकेट सौंपते हुए उससे कहें कि इसे तुम सबके साथ शेयर करोगे। इससे उसमें शेयरिंग के साथ जि़म्मेदारी की भी भावना विकसित होगी। अगर घर में एक ही बच्चा हो तो उसे दोस्तों के साथ शेयरिंग सिखाना बहुत ज़रूरी है। छुट्टियों में आप उसे अपने वैसे दोस्तों या रिश्तेदारों के घर लेकर जाएं, जहां उसके हमउम्र बच्चे हों। कभी-कभी पेरेंट्स को जानबूझकर उनसे कुछ चीज़ें मांगनी चाहिए ताकि उनमें शेयरिंग की आदत बनी रहे।
प्ले ग्राउंड में अनुशासन
रोज़ाना शाम को बच्चों को अपने साथ पार्क जैसे किसी सार्वजनिक स्थल पर ज़रूर ले जाएं। उनके समाजीकरण के लिए यह बहुत ज़रूरी है। वहां अगर वह किसी दोस्त को धक्का देकर गिराने या उसके साथ मारपीट जैसी हरकतें करे तो इसे बच्चे की मासूम शरारत समझकर इग्नोर न करें, बल्कि उसे प्यार से समझाएं कि अगर कोई तुम्हारे साथ भी ऐसा करे तो तुम्हें कैसा लगेगा? इससे बच्चों में इम्पैथी यानी दूसरों की तकलीफ समझने की भावना विकसित होगी।
पार्क में कई बार बच्चे झूले पर सबसे पहले बैठने के लिए मचलने लगते हैं। ऐसे में आप उन्हें अपनी बारी का इंतज़ार करना सिखाएं। साथ ही बच्चों को यह बताना भी बहुत ज़रूरी है कि सभी को खेलने का समान अवसर मिलना चाहिए। इस तरह खेल-खेल में बच्चे अनुशासन के नियम भी सीख जाएंगे।
सिखाएं एंगर मैनेजमेंट
छोटी-छोटी बातों के लिए बच्चों का रूठना या जि़द करना स्वाभाविक है। उनके ऐसे किसी व्यवहार पर ओवर रिएक्ट करने के बजाय धीरे-धीरे उन्हें यह समझाना बहुत ज़रूरी है कि तुम्हारी हर बात नहीं मानी जाएगी। कई बार बच्चे गुस्से में तोडफ़ोड़ या मारपीट जैसे हिंसक व्यवहार करने लगते हैं। अगर कभी आपका बच्चा रो-चिल्लाकर किसी चीज़ के लिए जि़द करे तो उस वक्त उसकी कोई भी मांग पूरी न करें। इससे उस तक यह $गलत संदेश जाएगा कि जि़द करके मम्मी-पापा से अपनी हर बात मनवाई जा सकती है। ऐसी स्थिति में पहले उससे शांत रहने को कहें। फिर जब वह शालीनतापूर्वक आपके सामने अपनी कोई मांग रखता है तभी उसकी बात मानें।
बड़ों का सम्मान
बच्चों की शरारतें और प्यारी-प्यारी बातें सभी को अच्छी लगती हैं पर कई बार बातचीत के दौरान वे अपशब्दों का भी प्रयोग करते हैं। किसी बात पर नाराज़ होकर बड़ों के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं। ज्य़ादातर परिवारों में लोग बच्चों को मना करने के बजाय उनकी ऐसी हरकतों पर हंसते हैं। इससे उन्हें ऐसा लगता है कि मेरा यह व्यवहार लोगों को अच्छा लगता है। इसलिए जब भी आपका बच्चा कोई ऐसी हरकत करे तो उसे रोकना बहुत ज़रूरी है। अगर बच्चों के दादा-दादी साथ रहते हैं तो पेरेंट्स की यह जि़म्मेदारी बनती है कि वे इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे भी उनके प्रति केयरिंग रवैया अपनाएं। बुज़ुर्गों की मदद करना और उनकी बातें ध्यान से सुनना जैसी आदतें बच्चों में छोटी उम्र से ही विकसित होनी चाहिए।
सिखाएं विनम्रता का पाठ
केवल परिवार के साथ ही नहीं बल्कि आसपास के उन सभी लोगों के प्रति विनम्र व्यवहार अपनाना चाहिए, जो किसी न किसी भी रूप में हमारे मददगार होते हैं। मसलन घरेलू सहायक, ड्राइवर, सफाई कर्मचारी और सिक्युरिटी गार्ड आदि। बच्चे को समझाएं कि ये सभी लोग हमारी मदद करते हैं, इसलिए हमें इनके साथ प्यार से पेश आना चाहिए। उसमें ऐसी आदत विकसित करें कि वह ऐसे लोगों के लिए अंकल-आंटी या भैया-दीदी जैसे सम्मान सूचक संबोधनों का प्रयोग करे। अगर आप रोज़मर्रा के सामान खरीदने बाज़ार जाती हैं तो अपने बच्चे को भी अपने साथ लेकर जाएं। उसे सिखाएं कि अगर रास्ते में कोई परिचित अंकल-आंटी मिलें तो उन्हें नमस्ते ज़रूर करना चाहिए। इससे उसे सामाजिक व्यवहार सीखने में मदद मिलेगी।
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