नीमन पिक (Niemann-Pick) बच्चों को होने वाली एक दुर्लभ और आनुवांशिक बीमारी है। यह एक आनुवांशिक मेटाबोलिक डिसऑर्डर के रूप में जानी जाती है। इस बीमारी में बच्चों के मस्तिष्क, लिवर, फेफड़े और बोन मैरो में हानिकारक लिपिड जमा हो जाते हैं। नीमन पिक (Niemann-Pick) की स्थिति में बच्चों में कई प्रकार की समस्याएं जन्म लेती हैं। यह बीमारी बच्चों के दिमाग, बोन मैरो के साथ-साथ लिवर और स्प्लीन और नर्व सिस्टम को प्रभावित करती है। यह लाइलाज बीमारी कई बार बच्चों के मौत का कारण भी बन जाती है। इसके शुरूआती लक्षणों में बच्चों को चलने में कठिनाई, बोलने में दिक्कत, दिमागी समस्याएं होती हैं और लिवर का साइज़ बढ़ जाता है। इस बीमारी की वजह से आंखें भी प्रभावित होती हैं और रेटिना के आसपास लाल रंग के धब्बे भी पड़ने लगते हैं। यह बच्चों को होने वाली बेहद गंभीर बीमारी मानी जाती है। इस बीमारी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे-
- लिपिड हिस्टियोसाइटोसिस (Lipid Histiocytosis)
- न्यूरोनल कोलेस्ट्रॉल लिपिडोसिस (Neuronal Cholesterol Lipidosis)
- न्यूरोनल लिपिडोसिस (Neuronal Lipidosis)
- एनपीडी (NPD)
- स्फिंगोमेलिन लिपिडोसिस (Sphingomyelin Lipidosis)
- स्फिंगोमेलिन / कोलेस्ट्रॉल लिपिडोसिस (Sphingomyelin/Cholesterol Lipidosis)
- स्फिंगोमाइलीनेज (Sphingomyelinase Deficiency)
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बच्चों में नीमन पिक बीमारी के प्रमुख लक्षण (Niemann Pick Symptoms)
नीमन पिक बीमारी के लक्षण बीमारी की स्थिति और इसके प्रकार पर निर्भर करती है। टाइप A की स्थिति में बच्चों को जन्म के कुछ महीनों के भीतर ही लक्षण दिखाई देने लगते हैं वहीं टाइप B वाले रोगियों में यह लक्षण सालों तक नही दिखाई देते। नीमन पिक टाइप C1 और C2 से पीड़ित रोगियों में कभी-कभी यह लक्षण काफी सालों तक नहीं दिखाई देते। सामान्य रूप से नीमन पिक बीमारी के कुछ प्रमुख लक्षण ये हैं-
- चलने फिरने में दिक्कत
- आंखों की परेशानी
- नींद संबंधी दिक्कतें
- डिस्टोनिया के लक्षण (Dystonia)
- भोजन निगलने में परेशानी
- कई बार निमोनिया (Recurrent pneumonia)
- चलने फिरने में कठिनाई
- ब्रेन डैमेज
- देखने या सुनने में परेशानी
- डिमेंशिया
नीमन पिक के प्रकार (Types of Nimeann-Pick Disease)
शुरुआत में यह बीमारी 3 महीने तक के बच्चों में देखी जाती है, जिसके बाद यह 1 साल तक शरीर में अपना असर दिखाना शुरू कर देती है। 1 साल के होने तक बच्चों के शरीर में इस बीमारी का व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है। बच्चों के लिवर और प्लीहा (hepatosplenomegaly) की साइज़ का बढ़ना और वजन का कम होना आदि इसके शुरूआती लक्षण माने जाते हैं। नीमन पिक (Niemann-Pick) बीमारी मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है, इसे आनुवांशिक लक्षण, स्थिति और बीमारी के लक्षण के आधार पर तय किया जाता है।
- टाइप A नीमन पिक
- टाइप B नीमन पिक
- टाइप C1 & टाइप C2 नीमन पिक
टाइप A - नीमन पिक (Niemann-Pick) टाइप A इस बीमारी का गंभीर रूप होता है। यह कम उम्र में ही बच्चों को प्रभावित करता है, सबसे ज्यादा टाइप A के केस यहूदी बच्चों में देखे जाते हैं। इस स्थिति में बच्चों का लिवर और प्लीहा बढ़े हुए होते हैं और फेफड़ों को भी काफी नुकसान पहुंचता है। टाइप A के लक्षणों में प्रमुख आंखों में रेटिना के आसपास लाल रंग का निशान जिसे चेरी स्पॉट भी कहा जाता है का होना होता है। आमतौर पर इस स्थिति में बच्चों का जीवित रहना संभव नही होता है।
टाइप B (Juvenile Onset)- यह आमतौर पर थोड़े बड़े बच्चों में पाया जाता है, हालांकि टाइप A और टाइप B के लक्षण लगभग समान होते हैं। यह स्थिति टाइप A के जितनी गंभीर नही मानी जाती है। टाइप बी नीमन पिक की स्थिति में बच्चों के फेफड़ों में संक्रमण, खून में प्लेटलेट्स की कमी और स्फिंगोमाइलीनेज नामक एक एंजाइम की कमी भी पाई जाती है। इस स्थिति में सामान्यतः बच्चे अधिक उम्र तक जीवित रहते हैं।
टाइप C1 & टाइप C2 - नीमन पिक टाइप सी के दो प्रकार हैं C1NP और C2NP। यह बच्चों में बढती उम्र के साथ देखा जाता है, यह स्थिति प्रमुखतः प्रोटीन की कमी से होती है। नीमन पिक टाइप C1 और C2 के लक्षण समान होते हैं लेकिन अलग-अलग आनुवांशिक कारणों से यह बीमारी होती है। इस प्रकार की बीमारी से पीड़ित मरीजों में डिस्टोनिया, लिवर संबंधी समस्याएं, फेफड़ों की बीमारी आदि होती है।
नीमन पिक बीमारी के कारण (What Causes Niemann Pick)
नीमन पिक एक आनुवांशिक और लाईलाज बीमारी मानी जाती है, जिसके होने के कई कारण हो सकते हैं। माता-पिता की जीन में कुछ दिक्कतें बच्चों को इस बीमारी का शिकार बना देती हैं। नीमन पिक टाइप A और B प्रमुखतः SMPD जीन में म्यूटेशन के कारण होता है। यह जीन एसिड स्फिंगोमाइलीनेज नामक एंजाइम की उत्पत्ति करता है जिसकी वजह से यह बीमारी बच्चों में पहुंचती है। एसिड स्फिंगोमाइलीनेज लिपिड (फैट) के रूप में होता है जो ऑटोसोमल रिसेसिव इनहेरिटेंस (autosomal recessive inheritance) की सहायता से बच्चों में पहुँचते हैं। यह लिपिड बच्चों के मस्तिष्क और फेफड़े, तिल्ली, और लिवर सहित ऊतकों और अंगों को नीमन पिक टाइप A और टाइप B से ग्रसित करता है। NPC1 और NPC2 के होने के पीछे का कारण प्रोटीन की कमी माना जाता है। कोशिकाओं में लिपिड और कोलेस्ट्रॉल की अधिकता होती है और प्रोटीन की कमी के ये मुख्य कारण होते हैं। नीमन पिक C1 और C2 की स्थिति में ऊतक और अंगों को अधिक नुकसान पहुंचता है।
कैसे पता लगाते हैं इस बीमारी का? (Niemann Pick Disease Diagnosis)
नीमन पिक बीमारी में खून या बोन मैरो की जांच की जाती है। इस बीमारी में टेस्ट के माध्यम से केवल बीमारी का पता लगाया जा सकता है। माता-पिता के अन्दर टाइप A और टाइप B के संक्रमण का पता लगाने के लिए डीएनए टेस्ट भी होता है। बायोप्सी और स्किन टेस्ट से भी इसके मरीजों का परीक्षण कर चिकित्सक इस बीमारी का पता लगाते हैं। नीमन पिक बीमारी में होने वाले प्रमुख टेस्ट
- बोन मैरो टेस्ट
- ब्लड टेस्ट
- बायोप्सी
- स्लिट-लैंप आई टेस्ट
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नीमन पिक बीमारी का इलाज (Niemann Pick Disease Treatment)
नीमन पिक एक आनुवांशिक और लाईलाज बीमारी है, इसका अभी तक कोई इलाज नहीं है। नीमन पिक संक्रमण होने पर सामान्यतः बच्चों की जान न्यूरोलॉजिकल डैमेज की वजह से चली जाती है। इस बीमारी के प्रभाव को कम करने के लिए कई तरीके के ट्रीटमेंट मरीजों को दिए जाते हैं। टाइप A नीमन पिक वाले रोगियों के लिए अभी तक किसी भी प्रकार का प्रभावशाली उपचार नही मिला है लेकिन टाइप B के कुछ रोगियों में देखा गया है कि बोन मैरो रिप्लेसमेंट से उनकी हालत में सुधार आया है। एंजाइम रिप्लेसमेंट और जीन थैरेपी का भी सहारा इसके इलाज के लिए लेते हैं। इस बीमारी का पता लगाने के लिए कई प्रकार के टेस्ट जैसे लिवर टेस्ट, ब्लड सैंपल या बायोप्सी और स्किन टेस्ट आदि किये जाते हैं। इस बीमारी में मरीजों को अतिरिक्त देखभाल की जरुरत होती है। बोन मैरो रिप्लेसमेंट, एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी और जीन थेरेपी सहित तमाम अन्य तरीके से चिकित्सक इसका इलाज भी करते हैं लेकिन इनके परिणाम ज्यादा सकारात्मक नहीं देखे गए हैं। भारत में इस बीमारी के बेहद कम मरीज देखे जाते हैं लेकिन यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में इसका प्रकोप अधिक देखा गया है।
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