बच्चे के मानसिक विकास में बाधा डालती हैं ये 2 मामूली चीजें

जिस तरह बच्‍चे के शरीर का विकास उनके खानपान पर निर्भर करता है। 
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बच्चे के मानसिक विकास में बाधा डालती हैं ये 2 मामूली चीजें

जिस तरह बच्‍चे के शरीर का विकास उनके खानपान पर निर्भर करता है। उसी तरह उनके मानसिक विकास के लिए भी कई स्तर होते हैं। दुनिया में आने के बाद नवजात का स्वास्थ्य अच्‍छा हो और उसका संपूर्ण विकास हो, शायद यह संभव भी नहीं है। क्योंकि कुछ समस्यायें और बीमारियां जन्मजात होती हैं और उनका असर बच्चे के विकास पर दिखाई देता है। बच्चे की लंबाई कम होने के अलावा बच्चे का मानसिक विकास ठीक से न हो पाने के लिए प्रमुख रूप से हर्मोंस ही जिम्मेदार होते हैं। बच्चे को यह कमी जन्म से होती है जो कि जीवनभर उनको झेलनी भी पड़ती है। आज हम आपको इन दो प्रमुख हार्मोन और उनसे होने वाली समस्याओं के बारे में विस्तार से बताएंगे। आइए जानते हैं—

बच्‍चे के शारीरिक विकास के साथ उसके दिमाग का विकास भी स्‍वस्‍थ और पौष्टिक आहार पर निर्भर करता है। यदि आपके बच्‍चे के आहार में दिमाग के विकास के लिए जरूरी सभी पौष्टिक तत्‍व हैं तो उसके दिमाग का विकास भी तेजी से होता है। सामान्‍यतया व्‍यक्ति के दिमाग का पूर्ण विकास 5 साल की उम्र तक हो जाता है। ऐसे में उसके खानपान का विशेष ध्‍यान रखना चाहिए। अपने बच्‍चों को ऐसा आहार दीजिए जिससे उनका दिमाग तेज बने। इसलिये बच्‍चे के डायट चार्ट में जरूरी प्रोटीन ,कार्ब और फैटी एसिड वाला आहार शामिल कीजिए। इससे बच्‍चे का शरीर और दिमाग में ऊर्जा का स्‍तर बना रहता है और बच्‍चे की सोचने और समझने की छमता बेहतर होती है। 

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थायरॉइड हार्मोन

यह हार्मोन शरीर के लिए बहुत जरूरी होते हैं, ये मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित रखते हैं। जन्म के बाद इस हार्मोन की कमी होती है तो बच्चे का दिमागी विकास ठीक से नहीं हो पाता है, वह मंदबुद्धि हो सकता है। सामान्यतया पैदा होने के 2 साल के भीतर बच्चे का दिमागी विकास हो जाता है, लेकिन 3 साल की उम्र के बाद अगर उसमें हार्मोन की कमी होती है तो उसके मानसिक विकास की बजाय शारीरिक विकास जैसे लंबाई व वजन प्रभावित होने लगते हैं।

जानें थायरॉइड हार्मोन के लक्षण और उचार

जन्म के समय यदि बच्चा स्वस्थ है लेकिन उसके शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी है तो इसके लक्षण 2-3 महीने में ही दिखने लगते हैं। हाइपोथायरॉइडिज्म में बच्चे को अंबलाइकल हर्निया (नाभि का फूलना), कब्ज, लंबे समय तक पीलिया जैसी बीमारी होने लगती हैं और वह शारीरिक रूप से कम सक्रिय भी रहता है। इसके लिए टी-3, टी-4, टीएसएच जांचों के अलावा जरूरत पड़ने पर स्कैन और सोनोग्राफी भी की जाती है। हार्मोंस की इस कमी को दवाओं से नियंत्रित किया जाता है। चिकित्सक की सलाह पर बच्चे की देखभाल और परवरिश करें।

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दूसरा हार्मोस

यह ऐसा हार्मोन है जिसकी कमी जन्मजात होती है। इसमें जन्म के बाद पिट्यूटरी ग्रंथि की बनावट में विकृति से हार्मोन कम बनते हैं। इसके लक्षण हैं – ब्लड में शुगर की कमी, लंबे समय तक पीलिया, कम लंबाई और बच्चा अपनी वास्तसविक उम्र से छोटा दिखता है।

ग्रोथ हार्मोस की जांच और उपचार

ग्रोथ हार्मोन लेवल ब्लड से बेसिल एंड स्टीम्यूलेटेड, एमआरआई व म्यूटेशन एनालिसिस की जांच की जाती है। इसके उपचार के लिए इंजेक्शन लगाए जाते हैं। कई बार चोट लगने, ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन, रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी व पिट्यूटरी ग्रंथि के क्षतिग्रस्त होने से भी हार्मोंस की कमी होती है।

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